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अयोध्या मामला: 'दोनों पक्षों में किसी के पास टाइटल के ठोस सबूत नहीं'

अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद पर मंगलवार को 39 वें दिन सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों, हिन्दू और मुस्लिम के पास विवादित स्थल के टाइटल के ठोस और पर्याप्त सबूत नहीं हैं। ऐसे में साक्ष्य...

अयोध्या मामला: 'दोनों पक्षों में किसी के पास टाइटल के ठोस सबूत नहीं'
नई दिल्ली, श्याम सुमन Wed, 16 Oct 2019 05:14 AM
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अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद पर मंगलवार को 39 वें दिन सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों, हिन्दू और मुस्लिम के पास विवादित स्थल के टाइटल के ठोस और पर्याप्त सबूत नहीं हैं। ऐसे में साक्ष्य कानून की धारा 110 के तहत किसी एक पक्ष को भूमि स्वामी कैसे घोषित किया जा सकता है। दोनों के पास सबूत नहीं हैं तो क्या भूमि किसी तीसरे पक्ष यानी सरकार को दी जा सकती है। 

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने यह विचार उस वक्त जाहिर किया जब हिन्दू पक्षकार के वकील ने दलील दी कि भूमि मालिकाना हक उनके पक्ष में घोषित किया जा सकता है। क्योंकि विवादित स्थल पर उनका कब्जा अबाधित और लगातार रहा है। इस आधार पर साक्ष्य कानून की धारा 110 के तहत उनके पक्ष में मालिकाना हक की कल्पना की जा सकती है। 

इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि समस्या यह है कि न तो आपके पास और न ही मुस्लिम पक्ष के पास ये इस बात के पर्याप्त सबूत हैं उनके पास टाइटल के मजबूत साक्ष्य हैं। ऐसे में धारा 110 की कल्पना का प्रयोग नहीं किया जा सकता। वहीं, इसमें प्रतिकूल कब्जे की बात भी नहीं आ रही क्योंकि दोनों ही पक्ष का विवादित स्थल पर कब्जा रहा है। ऐसे में क्या ये जमीन सरकार को दी जा सकती है। इस बीच मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन कहा कि कोर्ट के पास ये मुद्दा नहीं है जो परासरण उठा रहे हैं। मुद्दा यह है कि क्या ये मस्जिद थी या नहीं और उसका वक्फ किया गया था या नहीं। 

परासरण ने कहा कि वह धवन के हस्तक्षेप का नजरअंदाज कर रहे हैं क्योंकि वह कोर्ट के निर्देश पर धारा 110 के बारे में व्यवस्था बयान कर रहे हैं। परासरण ने कहा, यदि यह मजिस्द वक्फ की थी तो मुतवल्ली कौन था यह नहीं बताया गया, बिना मुतवल्ली के वक्फ नहीं हो सकता। ये सिद्ध करने का दायित्व उनका है। जिसे वह नहीं कर पाए हैं। 

कोर्ट को गलत अनुवाद दिया

राम लला विराजमान के वकील वैद्यनाथन ने जवाब में कहा कि मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में गलत अनुवाद पेश किया और उसके आधार पर बताया कि मस्जिद की देखरेख के वास्ते कोर्ट ब्रिटिश सरकार से 1860 में लगान मुक्त ग्रांट मिली थीं। इससे जाहिर होता है कि सरकार ने जन्मस्थान मस्जिद को मान्यता दी थी। जबकि यह गलत है, हाईकोर्ट में दस्तावेजों का जो तर्जुमा पेश किया गया था उसमें यह नहीं था। इस आधार पर हाईकोर्ट ने भी माना था कि 1528 में बाबर के बाद से 1860 तक मस्जिद के लिए ग्रांट मिलती रही, यह संभव नहीं है। 

हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों में तीखी बहस 

वैद्यनाथन ने कहा कि मस्जिद के निर्माण के बाद उसका जनता को समर्पण भी सिद्ध नहीं हुआ है। जब ये सिद्ध नहीं हुआ तो वे अब प्रतिकूल कब्जे और मस्जिद के लंबे समय से प्रयोग में रहने की बात कर रहे हैं। इससे ये साफ होता है कि यहां मंदिर था देवता था जिसके खिलाफ प्रतिकूल कब्जा मांगा जा रहा है। इस बीच जस्टिस एसए बोबड़े ने पूछा कि क्या इस बारे में दलीलें दी गई थीं मस्जिद बाबर ने बनाई और उसे समर्पित किया था।

वैद्यनाथन ने कहा कि यह दलीलें थीं लेकिन अब इन्हें नहीं उठाया जा रहा है। धवन कुछ कहने के लिए खड़े हुए तो वैद्यनाथन ने कहा कि वह लगातार र्रंनग कमेंटरी कर रहे हैं। यह उचित नहीं है कोर्ट में कुछ अनुशासन होना चाहिए। धवन ने कहा कि यदि उन्हें दिक्कत हो रही हैं तो बहस बंद कर दें। वैद्यनाथन ने कहा कि वह कौन होते हैं। बहस के लिए कोर्ट ही कुछ कह सकता है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने हस्तक्षेप किया और धवन से कहा कि हर बात में उन्हें कोर्ट को बताने की जरूरत नहीं है। जब आपने गलत आधार पेश किए हैं तो विरोधी पक्ष उन्हें उठाएगा ही। इस पर धवन ने माफी मांगी और सुनवाई आगे बढ़ी। 

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