विधानसभा चुनाव नतीजे: राजस्थान-मध्यप्रदेश में अब भी सवर्णों का दबदबा
हिंदी भाषी राज्य राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस की जीत को 2014 के बाद हुई पहली बड़ी सियासी उठापटक माना जा रहा है। लेकिन इस बदलाव का कोई खास प्रभाव विधायकों के जातीय और सामाजिक समीकरण पर नहीं...
हिंदी भाषी राज्य राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस की जीत को 2014 के बाद हुई पहली बड़ी सियासी उठापटक माना जा रहा है। लेकिन इस बदलाव का कोई खास प्रभाव विधायकों के जातीय और सामाजिक समीकरण पर नहीं पड़ा है। अब भी दोनों विधानसभाओं में सर्वण जातियों का प्रतिनिधित्व उनकी आबादी के अनुपात में कहीं अधिक है।
दोनों राज्यों की चुनी गई विधानसभा के विश्लेषण से यह तथ्य सामने आया है कि एक चौथाई से भी कम विधानसभा सीटों पर निर्वाचित विधायकों की जातियों में बदलाव हुआ है। वहीं सवर्णों का प्रतिनिधित्व राजस्थान और मध्यप्रदेश की नई विधानसभा में क्रमश: 27 और 37 फीसदी है, जो उनकी आबादी के अनुपात में कहीं अधिक है।
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सवर्णों में भी राजपूतों का बढ़ा कद
राजस्थान और मध्यप्रदेश में निर्वाचित सवर्ण विधायकों में भी राजपूत समुदाय का प्रतिनिधित्व बढ़ा है। सवर्ण जाति के चुने गए कुल विधायकों में 40 फीसदी हिस्सेदारी अकेले राजपूत जाति की है। राजपूतों के बढ़ते कद का खामियाजा ब्राह्मणों को भुगतना पड़ा है और उनका प्रतिनिधत्व कम हुआ है।
कुछ जातियों का ही दबदबा
राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा के कम से कम आधे विधायक केवल पांच जातियों से आते हैं। ये हैं ब्राह्मण, राजपूत, बनिया, जाट और मीणा। रोचक तथ्य यह है कि राजस्थान में मीणा अनुसूचित जनजाति वर्ग में आता है, इसके बावजूद राजनीति पर उसकी मजबूत पकड़ है। वहीं, मध्यप्रदेश में थोड़ी विविधता है। इसके बावजूद दोनों दलों के 40 फीसदी विधायक ब्राह्मण, राजपूत, बनिया, कुर्मी, गुर्जर और यादव जाति से आते हैं।
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दलों में दिखी समानता
जाति आधारित प्रतिनिधित्व में स्थायीत्व दिखने की वजह दलों में इस मुद्दे पर एक समान नीति है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही प्रत्याशियों का चुनाव स्थानीय स्तर पर प्रभावशाली नेताओं में से करते हैं। जहां तक रही समावेशी दृष्टिकोण की तो पार्टियां प्रतीकात्मक आधार पर ही छोटे समुदायों को प्रतिनिधित्व देती हैं।
राजस्थान : 1962 में 60% से अधिक विधायक सवर्ण थे, जो 2018 में 27 फीसदी रह गए, लेकिन आबादी के अनुपात में कहीं अधिक है।
मध्यप्रदेश : सर्वण जातियों का प्रतिनिधित्व में 1962 के मुकाबले 2018 में गिरावट आई है, लेकिन इसकी गति राजस्थान के मुकाबले कम रही।
ओबीसी और मध्यवर्ती विधायकों की उपजातियां
राजस्थान
जाट
गुर्जर
यादव
बिश्नोई
माली
अन्य ओबीसी
मध्यप्रदेश
कुर्मी
यादव
गुर्जर
तेली
पवार
अन्य ओबीसी
राजस्थान : ओबीसी विधायकों में सबसे अधिक दबदबा जाटों का है
मध्यप्रदेश : कुर्मी,यादव और गुर्जर का प्रभाव, पर अन्य जातियों को भी प्रतिनिधित्व
स्रोत : त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डाटा, अशोक यूनिवर्सिटी