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धर्मांतरण पर आदेश से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कहा- वयस्क चुन सकते हैं अपना धर्म

देश में कोई भी वयस्क अपने मन मुताबिक धर्म को अपना सकता है और उसे ऐसा करने की पूरी आजादी है। धर्मातरण पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही है। अधिवक्ता और...

धर्मांतरण पर आदेश से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कहा- वयस्क चुन सकते हैं अपना धर्म
हिन्दुस्तान ,नई दिल्लीFri, 09 Apr 2021 02:16 PM
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देश में कोई भी वयस्क अपने मन मुताबिक धर्म को अपना सकता है और उसे ऐसा करने की पूरी आजादी है। धर्मातरण पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही है। अधिवक्ता और बीजेपी लीडर अश्विनी उपाध्याय ने अपनी अर्जी में शीर्ष अदालत से काला जादू, अंधविश्वास और धोखाधड़ी से धर्मांतरण कराने पर बैन लगाने की मांग की थी। अदालत ने इस याचिका को खारिज कर दिया और उपाध्यय को फटकार भी लगाई। कोर्ट ने कहा, '18 साल से अधिक आयु के व्यक्ति को धर्म चुनने से रोकने की हम कोई वजह नहीं मानते।' इसके साथ ही अदालत ने कहा कि यह पीआईएल पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन जैसी हो गई है, जिसका मकसद लोकप्रियता हासिल करना है।

शीर्ष अदालत ने संविधान का जिक्र करते हुए कहा कि अनुच्छेद 25 में प्रचार की बात कही गई है, जो धर्म की आजादी देता है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से सुनवाई से इनकार के बाद उपाध्याय ने अपनी अर्जी को वापस ले लिया। उपाध्याय का कहना है कि वह इस संबंध में कानून मंत्रालय और विधि आयोग के समक्ष अपनी बात रखेंगे। अधिवक्ता ने अपनी अर्जी में सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि वह केंद्र और राज्य सरकारों को काला जादू, अंधविश्वास और धोखाधड़ी से धर्मांतरण को रोकने के लिए आदेश जारी करे। याचिका में मांग की गई थी कि धर्मांतरण विरोधी कानूनों के पालन के लिए एक कमिटी के गठन का आदेश दिया जाना चाहिए, जिसका काम धोखाधड़ी से धर्मांतरण के मामलों की निगरानी करना होगा।

अर्जी में दिया सरला मुद्गल केस का हवाला, जानें- क्या है मामला
देश में जबरन धर्मांतरण, काला जादू के मामलों का उदाहरण देते हुए अश्विनी उपाध्याय ने यह मांग की थी। यही नहीं उन्होंने 1995 के सरला मुद्गल केस का भी जिक्र किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को धर्मांतरण रोधी कानून लाने पर विचार करने को कहा था। सरला मुद्गल केस में सुप्रीम कोर्ट के उद्धरण का उपाध्याय ने जिक्र किया। इस फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था, 'इस कानून में यह प्रावधान किया जा सकता है कि जो भी व्यक्ति अपना धर्म बदलता है, वह पहली पत्नी को तलाक दिए बिना दूसरा विवाह नहीं कर सकता। यह प्रावधान सभी लोगों पर लागू होना चाहिए, भले ही वे हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन या बौद्ध कोई भी हों। इसके अलावा मेंटनेंस और उत्तराधिकार को लेकर भी कानून बनाया जाना चाहिए।'

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