ऑटो ड्राइवर मुंबई छोड़ आ रहे भदोही, कहा- 2 महीने से बिना काम गुजारा हुआ मुश्किल
महानगरी मुंबई, दिल्ली समेत अन्य बड़े शहरों से लगातार लोग अपने गांवों की ओर पलायन कर रहे हैं। कोरोना लॉकडाउन के चलते अधिकतर चीजें बंद हैं, ऐसे में किराए के मकान में रहकर करीब दो महीने से...
महानगरी मुंबई, दिल्ली समेत अन्य बड़े शहरों से लगातार लोग अपने गांवों की ओर पलायन कर रहे हैं। कोरोना लॉकडाउन के चलते अधिकतर चीजें बंद हैं, ऐसे में किराए के मकान में रहकर करीब दो महीने से पूरे परिवार के साथ बैठना अब उन लोगों के लिए मुश्किल होता जा रहा है।
हाईवे पर ऐसे कई ऑटो दिख जाएंगे जो अपने परिवारों के साथ शहरों की तरफ से पलायन कर रहे हैं। लॉकडाउन के चलते काम नहीं होने के बाद एक ऐसा ही ऑटो ड्राईवर महाराष्ट्र को छोड़कर उत्तर प्रदेश के भदोही के लिए चला है। समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए ऑटो ड्राइवर ने कहा, “पिछले 2 महीने से हमारे पास कोई काम नहीं था। बिना पैसे के हमारे लिए गुजारा करना मुश्किल हो गया था।” ऐसी ही स्थिति अन्य जगहों पर भी है। लोग उद्यगो धंधा नहीं चल पाने की वजह से बेचैन है और उनके लिए दिन गुजारना संकट बनता जा रहा है।
Bhopal: Auto drivers from Maharashtra who left the state due lack of work amid lockdown are heading towards their respective states. An auto driver on his way to Bhadohi(UP) said,"We are in trouble without work from past 2 months. It has become difficult to sustain without money" pic.twitter.com/VYGC7K8iJt
— ANI (@ANI) May 11, 2020
मुंबई से साइकिल से ही गांव के लिए निकले प्रवासी
मुंबई आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग का वह हिस्सा जो महाराष्ट्र के ठाणे जिले से गुजरता है उसमें दूर दूर तक कहीं कोई छाया नहीं है और इस चिलचिलाती धूप में प्रवासी मजदूर साइकिलों से ही अपने गृह राज्यों की ओर निकल पड़े हैं।कोरोना वायरस से सर्वाधिक प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में हजारों की संख्या में प्रवासी कामगार हैं जो अब पैदल ही या साइकिलों से उत्तर प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों के लिए निकल पड़े हैं। पिछले दो दिन में कामगारों के पैदल ही गृह राज्यों की ओर बढ़ने की घटना में तेजी से वृद्धि हुई है।
कामगारों का एक समूह साइकिल से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के लिए रवाना हुआ है। कम से कम 80 किलोमीटर की यात्रा कर चुके रामजीवन निषाद कहते हैं,'' ट्रक से यात्रा का खर्च 3,500 है, बस से यात्रा करने में इससे दोगुना खर्च आएगा और मेरे पास सिर्फ 700 रुपए हैं।
अन्य कामगारों की भी कमोबेश यही कहानी है। उनका कहना है कि पांच सप्ताह के लॉकडाउन में उनके सब्र का बांध टूट गया और उनकी बचत भी खत्म हो गई जिसके कारण उन्हें मुंबई से साइकिल से ही अपने घर लौटने में भलाई समझ आई। जिन लोगों के पास साइकिल नहीं थी उन लोगों ने यात्रा के लिए साइकिलें खरीदीं। इन कामगारों में किसी प्रकार का गुस्सा या द्वेष नहीं दिखाई दिया। दिखा तो बस डर कि अगर वे झुग्गी बस्ती इलाकों में रहते तो उन्हें भी संक्रमण अपनी चपेट में ले लेता।
कुछ कामगारों ने बताया कि उन्होंने चिकित्सकों से फिटनेस प्रमाणपत्र बनवाया था कि उन्हें प्रवासी कामगारों को ले जा रही विशेष ट्रेन में सीट मिल जाएगी लेकिन वह भी व्यर्थ रहा। कई लोगों ने कहा कि इतने पैसे में तो वे तीन वक्त का खाना खा लेते। इस पूरे मार्ग में कई झुंड़ में प्रवासी मजदूर जाते दिखाई देंगे जिन्हें न तो आगे जाने का रास्ता पता है और न ही ये पता है कि वे कब अपने घर पहुंचेंगे।