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दुनिया के लिए राहत: आ गई RNA आधारित तीसरी कोरोना वैक्सीन, नॉर्मल फ्रीज में भी रखा जा सकेगा, क्या है यह तकनीक?

दुनियाभर में कोरोना के कहर के बीच जर्मनी से एक राहत की खबर आई है। जर्मनी की एक कंपनी ने तीसरी आरएनए वैक्सीन क्योरवैक तैयार कर ली है। वैक्सीन के अंतिम चरण के परीक्षण के नतीजे अगले हफ्ते जारी होने की...

दुनिया के लिए राहत: आ गई RNA आधारित तीसरी कोरोना वैक्सीन, नॉर्मल फ्रीज में भी रखा जा सकेगा, क्या है यह तकनीक?
हिन्दु्स्तान टीम,नई दिल्लीFri, 07 May 2021 08:50 AM
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दुनियाभर में कोरोना के कहर के बीच जर्मनी से एक राहत की खबर आई है। जर्मनी की एक कंपनी ने तीसरी आरएनए वैक्सीन क्योरवैक तैयार कर ली है। वैक्सीन के अंतिम चरण के परीक्षण के नतीजे अगले हफ्ते जारी होने की उम्मीद है। इस वैक्सीन को सामान्य फ्रीज में भी रखा जा सकेगा। महामारी के शुरुआती दौर में दर्जनों कंपनियों ने जहां वायरस रोधी टीका बनाने की जद्दोजहद शुरू की। इस दौरान कुछ पुराने तरीके अपनाए और मरे हुए वायरस से वैक्सीन बनानी शुरू की। दूसरी तरफ कुछ कंपनियों ने जोखिमभरा तरीका अपनाया, जिसे आरएनए तकनीक कहते हैं। इनमें से कुछ कंपनियों के पास को अभी तक किसी अधिकृत वैक्सीन बनाने का अनुभव भी नहीं था। जोखिम लेने का फायदा भी हुआ। दो कंपनियों फाइजर-बायोएनटेक और मॉडर्ना का आरएनए आधारित कोरोना टीका परीक्षण में सफल रहा और दोनों काफी असरदार भी पाई गईं। इन दोनों वैक्सीन ने अब तक 90 देशों में लाखों लोगों को सुरक्षा प्रदान की है। 

दुनिया के कई हिस्सों में जहां कोरोना से होने वालों वालों मौतों की की संख्या बढ़ रही है, वहां तक इन दोनों वैक्सीन की पहुंच बहुत कम हैं। इसका प्रमुख कारण इन दोनों वैक्सीन का रखरखाव है। इन दोनों वैक्सीन को रखने के लिए करीब -80 डिग्री सेल्सियस का तापमान चाहिए। जोकि इन देशों में संभव नहीं है। इसी बीच जर्मनी में जो वैक्सीन विकसित की है, उसका रखरखाव अपेक्षाकृत आसान है।

क्योरवैक के नतीजों को लेकर विशेषज्ञ काफी उत्साहित
टीका विशेषज्ञ क्योरवैक वैक्सीन के नतीजे को लेकर काफी उत्साहित हैं। क्योंकि फाइजर और मॉडर्ना की तरह इसके लिए डीप फ्रीजर की जरूरत नहीं होगी। यह सामान्य फ्रीज में भी रखी जा सकेगी। इसका मतलब हुआ कि यह वैक्सीन दुनियाभर के देशों में आसानी से पहुंच सकेगी।

क्या होती है आरएनए तकनीक
इसे वैक्सीन के विकास का सबसे आधुनिक तरीका माना जाता है। इसमें शरीर के आरएनए और डीएनए का इस्तेमाल कर इम्युन प्रोटीन विकसित किया जाता है। जो कि वायरस के संक्रमण को ब्लॉक करने का काम करता है और शरीर की कोशिकाओं को कोरोना वायरस के संक्रमण से सुरक्षित रखता है। 

इन टीकों पर टिकी निगाहें
मैरीलैंड की कंपनी नोवावैक्स की अपने प्रोटीन आधारित टीके के लिए जल्द ही अमेरिकी प्राधिकरण से अनुमति मांगने की उम्मीद हैं।
भारत में फार्मा कंपनी बॉयोलॉजिकल ई भी प्रोटीन आधारित टीके का परीक्षण कर रही है जिसे टेक्सास के शोधकर्ताओं ने बनाया है। 

फाइजर-बायोएनटेक और मॉडर्ना
अमेरिका में इस्तेमाल हो रही है फाइजर-बायोएनटेक और मॉडर्ना की कोविड वैक्सीन, दोनों मैसेंजर आरएनए वैक्सीन हैं 
इन्हें तैयार करने में वायरस के आनुवांशिक कोड के एक हिस्से का इस्तेमाल किया जाता है
 दोनों ही वैक्सीन की दो खुराक दी जाती हैं। फाइजर की वैक्सीन को स्टोरेज के लिए -80 से -60 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है
 मॉडर्ना वैक्सीन को -25 से -15 डिग्री में 6 महीने के लिए रखा जा सकता है

ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका
ब्रिटेन और भारत में इस्तेमाल में लाई जा रही ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन वायरल वेक्टर वैक्सीन है।
इसके दोनों डोज एक दूसरे से अलग होते हैं। इसकी भी दो खुराक दी जाती है।
इस वैक्सीन को दो डिग्री सेल्सियस से लेकर आठ डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच छह महीने के लिए रखा जा सकता है।

स्पुतनिक वी 
रूस में इस्तेमाल की जाने वाली स्पुतनिक वी वैक्सीन की दोनों खुराकों में दो अलग अलग सामग्री का इस्तेमाल होता है।
इनमें दो अलग अलग किस्म के एडिनोवायरस वेक्टर का इस्तेमाल किया गया है।
इसको माइनस 18.5 डिग्री सेल्सियस तापमान में स्टोर किया जाता है।
 इस वैक्सीन का इस्तेमाल भारत में भी हो रहा है।

कोवैक्सीन 
भारत बॉयोटेक की कोवैक्सीन का इस्तेमाल भारत में बड़े पैमाने पर हो रहा है।
कोवैक्सिन एक निष्क्रिय टीका है। यह टीका मरे हुए कोरोना वायरस से बनाया गया है जो टीके को सुरक्षित बनाता है।

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