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अमेरिका ने बना ली कोरोना की दवा? एंटीबॉडी से तैयार ड्रग का जल्द होगा परीक्षण

अमेरिकी कंपनी एली लिली ने दावा किया है कि उसने कोरोना से ठीक हो चुके मरीज के खून से दो तरह की दवा बना ली है। एंटीबॉडी से तैयार इन दवाओं का इंसानों पर परीक्षण चल रहा है और काफी सकारात्मक संकेत मिले...

अमेरिका ने बना ली कोरोना की दवा? एंटीबॉडी से तैयार ड्रग का जल्द होगा परीक्षण
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीFri, 12 Jun 2020 08:33 AM
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अमेरिकी कंपनी एली लिली ने दावा किया है कि उसने कोरोना से ठीक हो चुके मरीज के खून से दो तरह की दवा बना ली है। एंटीबॉडी से तैयार इन दवाओं का इंसानों पर परीक्षण चल रहा है और काफी सकारात्मक संकेत मिले हैं। कंपनी ने तीसरी दवा भी बनाई है जिसका जल्द इंसानी परीक्षण किया जाएगा।

शोधकर्ता और मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी डैनियल स्कोव्रोन्स्की ने कहा कि अगर सबकुछ ठीक रहा तो सितंबर तक दवा आने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि दुनिया में पहली बार एंटीबॉडी दवा विकसित की गई है। कनाडा और चीन के वैज्ञानिक इस पर लंबे समय से शोध कर रहे थे। एलवाई-सीओवी555 और जेएस 016 नाम की यह दवा वायरस के बाहरी नुकीले हिस्से को ब्लॉक कर देती है जिससे वह शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं तक नहीं पहुच पाता और नुकसान भी नहीं होता। यह पहली दवा है जिसके जरिए कोरोना के स्पाइक प्रोटीन की संरचना को निष्क्रिय किया जा सकता है। कोविड के उपचार में इस्तेमाल की जा रही एंटी मलेरिया, एंटी टीबी दवा के मुकाबले नई दवा ज्यादा प्रभावी है। यह दवा ‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज' श्रेणी की ड्रग है, इसका इस्तेमाल कैंसर, अर्थराइटिस के इलाज में किया जाता है।

इधर, दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिकों ने उन स्थितियों की पहचान की है, जिनसे कोरोना मरीजों में खतरा कई गुना बढ़ जाता है। यहां तक उनकी जान भी चली जाती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर मधुमेह, बुखार, शरीर में ऑक्सीजन की कम मात्रा और हृदय में चोट पर नजर रखी जाए तो काफी हद तक मरीजों को बचाया जा सकता है। कोरिया की मेडिकल सेंटर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का यह अध्ययन कोरियन मेडिकल साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है। यूनिवर्सिटी में आंतरिक चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर और शोधकर्ताओं में से एक आहन जून होंग ने बताया कि इन निष्कर्षों से मरीजों की सही पहचान करने और उन्हें तुरंत इलाज करने में काफी मदद मिलेगी।

डॉक्टरों ने अस्पताल में आए 110 मरीजों पर शोध किया, इनमें से ज्यादातर बुजुर्ग थे। वैज्ञानिकों ने पाया कि जिन मरीजों में मधुमेह, बुखार, शरीर में कम ऑक्सीजन और हृदय में तकलीफ जैसी शिकायत थी, ऐसे 23 मरीजों की हालत लगातार खराब होती गई। तुरंत इलाज मिलने पर ये ठीक हो सकते हैं।

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