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म्यांमार के साथ मिलकर पूर्वोत्तर में भारत ने तोड़ी आतंक की कमर, अन्य देशों को दिखाए सख्त तेवर

शुक्रवार को एक विशेष उड़ान में म्यांमार से निकले छह संगठनों के 22 पूर्वोत्तर विद्रोहियों को भारत में उतारा गया है और उन्हें मणिपुर और असम में पुलिस को सौंप दिया गया है। केंद्र सरकार का मानना ​​है कि...

म्यांमार के साथ मिलकर पूर्वोत्तर में भारत ने तोड़ी आतंक की कमर, अन्य देशों को दिखाए सख्त तेवर
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीSat, 16 May 2020 10:44 AM
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शुक्रवार को एक विशेष उड़ान में म्यांमार से निकले छह संगठनों के 22 पूर्वोत्तर विद्रोहियों को भारत में उतारा गया है और उन्हें मणिपुर और असम में पुलिस को सौंप दिया गया है। केंद्र सरकार का मानना ​​है कि म्यांमार का फैसला दोनों पड़ोसियों के बीच सुरक्षा सहयोग के लिए एक बड़ा कदम है। लेकिन इसमें महीनों की मेहनत और कोशिश लगी है। घटनाक्रम से परिचित लोगों ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि इसमें कुल नौ महीने लगे।

इसको लेकर पहला कदम म्यांमार रक्षा सेवाओं के कमांडर-इन-चीफ, वरिष्ठ जनरल मिन आंग ह्लाइंग की भारत यात्रा के दौरान उठाया गया था। भारतीय नेतृत्व के साथ दिल्ली में वरिष्ठ जनरल हलिंग ने कई बैठकों में से एक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ की थी। यह जुलाई के अंत में हुई बैठक में अजीत डोभाल ने इस विषय पर चर्चा की थी।

म्यांमार के सागिंग क्षेत्र की सीमाओं पर कुछ महीने पहले किए गए संयुक्त अभियानों के दौरान म्यांमार सेना द्वारा 22 विद्रोहियों को पकड़ लिया गया था। "ऑपरेशन सनशाइन" कोड नाम वाला ऑपरेशन फरवरी में शुरू हुए थे और मार्च तक जारी रहा। ये विद्रोही म्यांमार में भारत द्वारा वित्त पोषित 484 मिलियन डॉलर के कलादान मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट परियोजना पर काम कर रहे भारतीय कर्मियों से वसूली कर रहे थे।

दूसरे चरण में बड़े पैमाने पर भारत विरोधी विद्रोहियों पर ध्यान केंद्रित किया गया; म्यांमार की सेना की कार्रवाई ने विद्रोहियों को भारतीय सीमा रक्षकों के आगे आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया। ऑपरेशन के दूसरे चरण के दौरान ही शुक्रवार को निर्वासित किए गए 22 विद्रोहियों को म्यांमार की सेना ने पकड़ लिया था।उग्रवादियों को वापस लाने की कवायद से जुड़े वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारियों ने कहा कि एनएसए अजीत डोभाल और गृह मंत्री अमित शाह ने इस कोशिश की समीक्षा की जो जुलाई की बैठक तक जारी रही।

एक अधिकारी ने कहा, इन 22 विद्रोहियों को निर्वासित करने का निर्णय, उस समय के उलट है जब म्यांमार भारत विरोधी विद्रोहियों के खिलाफ किसी न किसी कारण से कार्रवाई नहीं करता था। दोनों देशों की सुरक्षा एजेंसियों के बीच सहयोग के परिणामस्वरूप, म्यांमार ने शुरुआत में कुछ कार्रवाई की और बाद में भारतीय सुरक्षा बलों के साथ संयुक्त अभियान चलाया।

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