ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News देशकृषि कानून: किसानों की मांग, कोर्ट ने जो पैनल बनाया है उसे बदला जाए ताकि न्याय हो

कृषि कानून: किसानों की मांग, कोर्ट ने जो पैनल बनाया है उसे बदला जाए ताकि न्याय हो

सुप्रीम कोर्ट में तीन कृषि कानूनों को लेकर किसान और केंद्र के बीच छिड़ी जंग को सुलझाने के लिए एक समिति का गठन किया था। लेकिन अब एक किसान संगठन ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि नए किसान कानूनों को...

कृषि कानून: किसानों की मांग, कोर्ट ने जो पैनल बनाया है उसे बदला जाए ताकि न्याय हो
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीSun, 17 Jan 2021 08:35 AM
ऐप पर पढ़ें

सुप्रीम कोर्ट में तीन कृषि कानूनों को लेकर किसान और केंद्र के बीच छिड़ी जंग को सुलझाने के लिए एक समिति का गठन किया था। लेकिन अब एक किसान संगठन ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि नए किसान कानूनों को लेकर प्रदर्शनकारी किसानों और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध को हल करने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा गठित पैनल से सदस्यों को हटाया जाए।

शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक हलफनामे में, भारतीय किसान यूनियन, लोकशक्ति ने कहा, “इन व्यक्तियों को सदस्य के रूप में गठित करके न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन होने वाला है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त सदस्य, किसानों को समान मापदंडों पर कैसे सुनेंगे जब उन्होंने पहले से ही इन तीनों कृषि कानून का समर्थन किया हुआ है।”

यूनियन ने इस पैनल में विरोध प्रदर्शन करने वाले कृषि नेताओं के साथ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश की नियुक्ति करने का अनुरोध किया है। SC ने 12 जनवरी को किसानों की शिकायतों को सुनने और आठ सप्ताह में एक रिपोर्ट पेश करने के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किया था। इसके बाद गुरुवार को अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने "किसानों के हितों" का हवाला देते हुए खुद को पैनल से हटा लिया था।

बता दें कि इस कोर्ट की बनाई कमिटी में अशोक गुलाटी, अनिल घनवट,भूपिंदर सिंह मान और प्रमोद जोशी के नाम थे। इसके बाद गुरुवार को अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने "किसानों के हितों" का हवाला देते हुए खुद को पैनल से हटा लिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी बनाने की बात पर जोर देते हुए कहा था कि कमेटी हम बनाएंगे ही। हम जमीनी स्थिति समझना चाहते हैं। इसके बाद अटार्नी जनरल ने कहा कि कमेटी अच्छा विचार है हम उसका स्वागत करते हैं। याचिकाकर्ताओं में से एक के लिए पेश होने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे का कहना है कि कानूनों को लागू करने पर रोक को राजनीतिक जीत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसे कानूनों पर व्यक्त चिंताओं की एक गंभीर परीक्षा के रूप में देखा जाना चाहिए। 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें