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रणनीति: कश्मीर में आतंकियों की कमर तोड़ने के बाद अब राजनीतिक पहल चाहती है सेना

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से पिछले एक साल में सेना एवं सुरक्षा बलों के आक्रामक अभियान से कश्मीर में आतंकियों की कमर टूट गई है। सेना मानती है कि अब राजनीतिक पहल शुरू करने का वक्त आ गया है। यदि इस समय...

रणनीति: कश्मीर में आतंकियों की कमर तोड़ने के बाद अब राजनीतिक पहल चाहती है सेना
मदन जैड़ा,नई दिल्लीSat, 30 Sep 2017 08:46 AM
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सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से पिछले एक साल में सेना एवं सुरक्षा बलों के आक्रामक अभियान से कश्मीर में आतंकियों की कमर टूट गई है। सेना मानती है कि अब राजनीतिक पहल शुरू करने का वक्त आ गया है। यदि इस समय कुछ नए कदम उठाए जाएं, तो घाटी से आतंक का पूरी तरह से सफाया हो सकता है। इसके लिए सेना आतंकियों के आत्मसर्पण के लिए एक आकर्षक नीति चाहती है। दूसरे, नौजवानों को रोजगार के लिए कार्यक्रम शुरू किए जाने के पक्ष में है।

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सेना के उच्च पदस्थ सूत्रों ने कहा कि कश्मीर में राजनीतिक पहल शुरू करने के लिए चर्चा शुरू हुई है। रक्षा मंत्रालय की तरफ से गृह मंत्रालय के समक्ष भी इस बात को रखा गया है कि पुरानी आत्मसर्पण नीति में बदलाव किया जाए। अभी यदि कोई नौजवान आतंक की राह छोड़कर मुख्यधारा में आना चाहता है, तो उसे करीब दो लाख रुपये का पैकेज मिलता है। कुछ राशि पुनर्वास के लिए मिलती है। लेकिन कई साल पहले तय हुई यह राशि बहुत कम है।

सेना चाहती है कि आत्मसमर्पण के वक्त दी जाने वाली राशि बड़ी हो तथा उसके साथ पुनर्वास का ऐसा पैकेज जुड़ा हो जो वास्तव में आतंक छोड़ने वाले नौजवान को मुख्यधारा से जोड़ सके। सेना के सूत्रों की मानें तो सरकार इस मामले पर गंभीर है और गृह मंत्रालय जल्द मौजूदा आत्मसमर्पण नीति की समीक्षा शुरू करने वाला है। 

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सेना के एक उच्च अधिकारी ने कहा कि गुमराह हुए नौजवानों को आत्मसमर्पण के लिए प्रोत्साहित करने के साथ-साथ बेरोजगार नौजवानों को कामधंधे से जोड़ने के लिए भी तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए। सेना ने कहा कि पिछले छह महीनों में बड़े पैमाने पर आतंकियों के मारे जाने के बावजूद नई भर्ती रूक नहीं रही है। इसमें मामूली कमी आई है। अभी भी हर साल 90-100 आतंकी भर्ती हो रहे हैं। इसे रोकने के लिए युवाओं को रोजगार से जोड़ना जरूरी है। 

सेना का कहना है कि केंद्र एवं राज्य सरकारों को इस मामले में पहल करनी चाहिए। एक प्रस्ताव यह भी है कि पूर्व में कश्मीरी नौजवानों के लिए अलग से एक अर्द्धसैनिक बटालियन बनाई जाए, उस पर भी अमल किया जा सकता है। इसमें नए नौजवानों के साथ सरेंडर करने वाले आतंकियों को भी शामिल किया जा सकता है। 

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