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आठवें फेरे का आठवां वचन निभाएंगे आप?

इस करवाचौथ हिन्दुस्तान अपनी खास मुहिम के जरिए आपका ध्यान हर मोर्चे पर महिलाओं के आगे बढ़ने का रास्ता रोके जाने की प्रवृत्ति पर दिलाना चाहता है। पढ़ाई, शौक, नौकरी, घर-परिवार की जिम्मेदारी, सम्पत्ति में...

आठवें फेरे का आठवां वचन निभाएंगे आप?
Alakha Ram Singh हिन्दुस्तान टीम, नई दिल्लीFri, 11 Oct 2019 06:19 AM
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इस करवाचौथ हिन्दुस्तान अपनी खास मुहिम के जरिए आपका ध्यान हर मोर्चे पर महिलाओं के आगे बढ़ने का रास्ता रोके जाने की प्रवृत्ति पर दिलाना चाहता है। पढ़ाई, शौक, नौकरी, घर-परिवार की जिम्मेदारी, सम्पत्ति में हिस्सा जैसे मामलों में उसे पीछे रखा जाता है। क्या सात फेरे लेने के बाद उसकी आकांक्षाओं और इच्छाओं पर ताला लगा देना सही है?

शादी दो लोगों की होती है। इसे बराबरी का रिश्ता कहा और माना जाता है। मगर व्यावहारिक तौर पर क्या वाकई समानता मिल पाती है? भारत एक पुरुषसत्तात्मक देश है, लिहाजा यहां के रीति-रिवाजों में पुरुषों को अधिक वरीयता प्राप्त है। कई बार इन अधिकारों का दुरुपयोग शादी जैसे खूबसूरत रिश्ते को पटरी से उतार देता है। क्या आपने अपने आसपास यह महसूस किया है?

इस करवाचौथ ‘हिन्दुस्तान’ अपनी खास मुहिम के जरिए आपका ध्यान इस ओर दिला रहा है। आइए और देखिए बराबरी की बात कहीं सिर्फ एक आदर्श भर तो नहीं। इर्से ंजदगी में उतारिए। शादी के बंधन में बंधने के लिए सात फेरे तो आप लेते हैं, लेकिन अगर ताउम्र इस रिश्ते को बराबरी की परिपाटी पर चलाने के लिए आठवें फेरे की जरूरत हो तो? करवाचौथ पर पत्नी के लिए किसी महंगे तोहफे की तलाश में हैं तो उससे पहले एक बार असमानता के आंकड़ों पर नजर डालिए। असमानता दूर करने की आपकी छोटी सी कोशिश के आगे कोई बड़ा तोहफा नहीं टिकेगा।

साते फेरों में धार्मिक कार्यों में बराबरी, सम्मान, जीवनभर का साथ, जिम्मेदारी का अहसास, समानता का अधिकार, प्रतिष्ठा और प्रेम शामिल हैं, लेकिन इनके क्रियान्वयन के लिए आठवां फेरा अगर लेना पड़े तो क्या आप आगे आएंगे। आज जब महिलाओं को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए प्रयास हो रहे हैं तो क्यों नहीं अपने रिवाजों में भी एक फेरा बराबरी का जोड़ा जाए। पसंद-नापसंद, फैसले, आर्थिक मसले, बच्चों की परवरिश, संपत्ति हर मोर्चे पर बराबर साझेदारी।

साथ-साथ बनाएंगे भविष्य : अब तक जो हुआ सो हुआ। भविष्य में घर-परिवार, आर्थिक, करियर संबंधी सभी फैसलों में पत्नी को बराबर मानकर चलेंगे और एक खूबसूरत भविष्य की नींव रखेंगे। लैंगिक असमानता में भारत 129 देशों में 95वें नंबर पर है। 53.9 प्रतिशत भारतीय महिलार्एं ंहसा का शिकार होती हैं। एक साझा कोशिश आप इन आंकड़ों को बदलने की कर सकते हैं।

सम्पत्ति में बराबरी: भारत में 40 प्रतिशत महिलाएं कृषि क्षेत्र से जुड़ी हैं। बावजूद इसके सिर्फ 9 प्रतिशत जमीन पर ही इनका नियंत्रण है। आधी से अधिक महिलाओं के पास अपने  बैंक खाते तक नहीं हैं। 60 प्रतिशत महिलाओं के पास अपनी कोई मूल्यवान संपत्ति नहीं है।

घरेलू कामकाज और बच्चे की परवरिश में देंगे साथ: बच्चे को मां जन्म देती है। मां से शिशु का जुड़ाव ज्यादा रहता है, लेकिन इस जुड़ाव को मां की जिम्मेदारी मान लिया जाता है व उसकी परवरिश के लिए सभी त्याग सिर्फ मां को करने पड़ते हैं। आंकड़े बताते हैं कि बच्चों की परवरिश के लिए 43 प्रतिशत उच्च शिक्षा प्राप्त कामकाजी मांएं बच्चों की परवरिश के लिए नौकरी छोड़ देती हैं। करियर में यह ब्रेक एक लंबी अवधि का होता है। कई बार नौकरी छोड़ने के बाद मां काम पर वापसी नहीं कर पातीं। सिर्फ 74 प्रतिशत प्रोफेशनल महिलाएं दोबारा काम पर वापसी करती हैं। उनमें भी सिर्फ 40 प्रतिशत महिलाएं ही फुल टाइम जॉब करती हैं। बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं के करियर पर यह ब्रेक क्यों? अगर परिवार का और आपका साथ मिले तो महिलाएं भी आर्थिक मोर्चे पर बराबरी कर सकती हैं। इसका फायदा पारिवारिक स्तर पर आपको भी होगा।

शादी के बाद नहीं लगने देंगे करियर पर ब्रेक
शादी के बाद महिलाएं पारिवारिक दबाव में नौकरी छोड़ देती हैं। क्या आठवें फेरे को आधार बनाकर महिलाओं के ऊपर से इस दबाव को हटाया जा सकता है। यूएन के मुताबिक भारत में 29 प्रतिशत महिलाएं ही श्रम शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। 2004 में यह आंकड़ा 35 प्रतिशत था। घरेलू हों या कामकाजी घर के कामकाज की जिम्मेदारी का बोझ सिर्फ महिलाओं के कंधों पर न हो यह सुनिश्चित करें। श्रम क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़े इसका ख्याल हमें रखना होगा।


आर्थिक मोर्चे पर बराबरी

भारत में आर्थिक मोर्चे पर भी महिलाओं को गैर-बराबरी का सामना करना पड़ता है। विश्व आर्थिक मंच (ग्लोबल इकोनॉमिक फोरम) की 2011 की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट के मुताबिक जेंडर गैप इंडेक्स में भारत 135 देशों में 113वें नंबर पर था। हालांकि इसमें सुधार हो रहा है। 2013 में भारत ने 136 देशों में 105वीं रैंक हासिल की। मगर हमारी कोशिश इसमें और सुधार ला सकती है। क्यों न घरेलू स्तर पर भी आर्थिक मसलों में महिलाओं को जोड़ा जाए और उनकी राय-मशविरा को महत्व दिया जाए। बिजनेस लीडर्स समेत तमाम क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व नहीं किया जाता। ग्रामीण क्षेत्र की बात करें तो 75 प्रतिशत महिलाएं कृषि में भागीदारी करती हैं। आधी से अधिक महिलाओं को इसका कोई पारिश्रमिक नहीं दिया जाता।  
 

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