आजादी के 70 साल: खेल के मैदान के वो सितारे जिनके कंधों पर सजे हैं 'सितारे'
शरीर पर ऑलिव ग्रीन कलर की यूनिफॉर्म और कंधों पर सजे सितारे, बोलने में और देखने में आपको यह जितना आसान लगता है, दरअसल इसे हासिल करना उतना ही कठिन होता है। कड़ी मेहनत और बरसों की तपस्या के बाद इसे...
लेफ्टिनेंट कर्नल अभिनव बिंद्रा और महेंद्र सिंह धोनी
वर्ष 2011 में क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी और शूटर अभिनव बिंद्रा को टीए में लेफ्टिनेंट कर्नल की रैंक दी गई। जहां अभिनव ने साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान देश के लिए
व्यक्तिगत स्पर्धा में पहला स्वर्ण पदक जीता तो धोनी ने उसी वर्ष भारत को 28 वर्ष बाद वर्ल्ड कप जितवाया था। अभिनव बिंद्रा को टीए की सिख रेजीमेंट में कमीशन मिला तो धोनी
को पैराशूट रेजीमेंट में। अगस्त 2015 में धोनी ने आगरा स्थित इंडियन आर्मी की एलीट पैरा ब्रिगेड से कोर्स पूरा किया और वह एक ट्रेंड पैराट्रूपर बन गए।
ग्रुप कैप्टन सचिन तेंदुलकर
सितंबर 2010 में इंडियन एयरफोर्स ने क्रिकेट में अमूल्य योगदान के लिए मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को ग्रुप कैप्टन की मानद उपाधि दी। सचिन तेंदुलकर एयरफोर्स की इस रैंक
को हासिल करने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने। इसके अलावा वह पहले ऐसे व्यक्ति थे जिनके पास एयरफोर्स का कोई रिकॉर्ड नहीं था लेकिन फिर भी उन्हें यह सम्मान दिया गया।
तत्कालीन एयरफोर्स चीफ एयरचीफ मार्शल पीवी नाइक ने एयरफोर्स ऑडिटोरियम में आसमानी नीले रंग की यूनिफॉर्म में सचिन तेंदुलकर के कंधे पर सितारे सजाए। सचिन को बतौर
ब्रांड एंबेसडर एयरफोर्स में ऑफिसर रैंक दी गई थी। इस मौके पर उन्होंने कहा कि यह उनके लिए एक सम्मान की बात है कि वह एयरफोर्स का हिस्सा बने हैं।
क्या है टेरिटोरियल आर्मी
नौ अक्टूबर 1917 को ब्रिटिश शासन की ओर से सेनाओं से अलग एक टेरिटोरियल आर्मी का गठन किया गया। इसको तैयार करने का मकसद पहले विश्व युद्ध के दौरान जमीन पर मौजूद ट्रूप्स को कुछ समय के लिए छुट्टी देकर उनकी जगह पर टीए के ट्रूप्स को डेप्लॉय करना था। विश्व युद्ध के बाद यह दो हिस्सों में बंट गई, ब्रिटिश और भारतीय। टेरिटोरियल आर्मी के 200,000 ट्रूप्स हैं और इसका हेडक्वार्टर दिल्ली में ही है। यह रेगुलर आर्मी का ही हिस्सा होती है। टेरिटोरियल आर्मी का पहला और अहम काम रेगुलर आर्मी को उसकी ड्यूटी से कुछ समय के लिए छुट्टी देना और साथ ही प्राकृतिक आपदा के समय प्रशासन की मदद करना। इसके अलावा संकट के समय जरूरत पड़ने पर सेना को अतिरिक्त यूनिट मुहैया कराना भी इसका जिम्मा है।
टीएम का योगदान
टीए ने 62 में चीन की लड़ाई, 65 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध और फिर 71 में भारत-पाक युद्ध में हिस्सा लिया। इसके अलावा श्रीलंका में ऑपरेशन पवन, पंजाब और जम्मू कश्मीर में ऑपरेशन रक्षक के साथ ही नॉर्थ ईस्ट में ऑपरेशन राइनो और ऑपरेशन बजरंग में भी इसका सक्रिय योगदान रहा है।