सीमा पर दादागिरी : 1966 में भूटान को बचाने पर इंदिरा गांधी के खिलाफ भड़का था चीन
सिक्किम-भूटान सीमा पर भारत और चीन के साथ चल रही तनातनी नई नहीं है। 60 के दशक में पीछे जाकर देखेंगे तो पाएंगे कि भूटान का समर्थन करने पर चीन ने इंदिरा गांधी के खिलाफ भी जहर उगला था। आज से पांच दशक...
सिक्किम-भूटान सीमा पर भारत और चीन के साथ चल रही तनातनी नई नहीं है। 60 के दशक में पीछे जाकर देखेंगे तो पाएंगे कि भूटान का समर्थन करने पर चीन ने इंदिरा गांधी के खिलाफ भी जहर उगला था।
आज से पांच दशक पहले जब चीन भूटान के डोकलम इलाके में घुसपैठ कर रहा था जब भारत भूटान के साथ मजबूती से खड़े होकर चीन के इस कदम का विरोध किया था। यह वहीं इलाका हैं जहां अब चीन एक बार फिर से अपनी सक्रियता बढ़ाई है। चीन यहां अब सड़क मार्ग का निर्माण कर रहा है।
हमारे सयोगी हिन्दूस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 1966 में भारत जब भूटान की मदद में खड़ा हुआ था तो बीजिंग ने उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर अपनी भड़ास निकाली थी। मुख्य रूप से कम्युनिस्ट पार्टी तब खफा हो गई जब इंदिरा गांधी ने नई दिल्ली में प्रेस कन्फ्रेंस कर भूटान की रक्षा के लिए लिए भारत के संकल्प की बात की।
1967 में चीन और भारत दोनों देशों ने एक दूसरे की संप्रभुता पर हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया था जिसके बाद दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ा कि सिक्किम सीमा पर दोनों देशों के बीच हिंसा की खबरें भी आईं।
टकराव की वजह:भारतीय बंकर तोड़कर दादागिरी दिखा रहा चीन, पढ़ें- क्या है चुंबी घाटी विवाद
एचटी को मिले सरकारी कागजों के अनुसार, सिक्किम बॉर्डर पर हिंसा से करीब एक साल पहले ही डोकलम (डोंगलॉन्ग) इलाके को लेकर विवाद शुरू हो गया था। डोकलम इलाके को लेकर उस वक्त भूटान ने भी चीन का विरोध किया था। जैसे आज भूटान चीन के मामले में भारत से मदद ल रहा है वैसे ही उस वक्त भी भारत से मदद की मांग की थी। भारत ने भूटान की मदद की थी और इस बात से चीन नाखुश था।
उस वक्त भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खुले तौर पर कहा था कि भारत भूटान की सुरक्षा के लिए संकल्पित है। यही कारण है कि चीन ने इसे भारत की दखलनदाजी करार दिया था।
उधर भारत अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए चीन का सीधा विरोध करने की बजाए भूटान की संप्रभुता के बहाने चीन का विरोध कर रहा है कि ताकि आगे चलकर भारत के लिए चीन सिरदर्द न बन जाए।