...तो इस वजह से BJP से नाराज चल रही है अपना दल और राजभर की पार्टी!
सियासत और अदावत में अगर वक्त पर वार न किया जाए तो तीर तुक्का बन कर रह जाता है। बीजेपी (BJP) के सहयोगी अपना दल (एस) (Apna Dal) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया कुछ इसी तर्ज पर भाजपा के...
सियासत और अदावत में अगर वक्त पर वार न किया जाए तो तीर तुक्का बन कर रह जाता है। बीजेपी (BJP) के सहयोगी अपना दल (एस) (Apna Dal) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया कुछ इसी तर्ज पर भाजपा के खिलाफ हमलावर हैं। वक्त भी सटीक है, लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections 2019) सिर पर हैं। इन तीखे तेवरों को भाजपा भले ही सौदेबाजी की सियासत कहे लेकिन दोनों दलों की इस तल्खी के पीछे अपनी-अपनी चाहतें हैं और शिकवे भी हैं, जो लंबे सियासी सफर के बावजूद बरकरार हैं। वैसे असल वजह लोकसभा चुनावों में सीटों पर ज्यादा दावेदारी मानी जा रही है।
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अपना दल (एस) के नौ विधायक हैं और दो सांसद...। अपना दल के कोटे से प्रदेश की भाजपा सरकार में एक ही राज्यमंत्री हैं, जय कुमार सिंह 'जैकी'। सूत्र बताते हैं कि बहुमत आने के बाद सरकार बनी तो तय हुआ कि अपना दल के अध्यक्ष आशीष पटेल को मंत्रिमंडल में लिया जाएगा। उन्हें एमएलसी भी बनाया गया। मंत्रिमंडल विस्तार में देरी के चलते यह वादा पूरा नहीं हो पाया है। नाराज़गी का एक कारण यह भी है।
संगठन स्तर पर तालमेल नहीं
अपना दल और भाजपा के संगठन स्तर पर भी बेहतर तालमेल नहीं है। मसलन, कहीं जिला संगठन से दिक्कतें हैं तो कहीं विधायकों में सामंजस्य नहीं है। इसे नजरअंदाज भी कर दिया जाए तो शिकवे और भी हैं। अपना दल को शिकायत रहती है कि अधिकारी चाहे पुलिस अधीक्षक हों या फिर डीएम, अपना दल के पदाधिकारियों की सिफारिशें नहीं सुनी जा रहीं।
आयोगों में होने वाली तैनातियों में भी अपना दल की मांग पर ध्यान नहीं दिया गया। लखनऊ में कार्यालय की मांग पूरी नहीं हुई। बमुश्किल एक बंगला आशीष पटेल को दिया गया। एक शिकवा यह भी है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में अनुप्रिया पटेल को राज्यमंत्री का दर्जा मिला है लेकिन विभाग में उन्हें कोई महत्वपूर्ण काम नहीं दिया गया। यही नहीं इस नाराजगी के पीछे ज्यादा और मनमाफिक सीटों पर दावेदारी के लिए दांवपेच भी माना जा रहा है।
ओमप्रकाश राजभर के भी हैं शिकवे
मंत्री ओमप्रकाश राजभर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री जरूर हैं लेकिन असरदार विभाग नहीं होने से वह खिन्न बताए जाते हैं। यही नहीं उनकी सबसे बड़ी शिकायत है कि सहमति के बावजूद सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को लागू कर पिछड़ों के आरक्षण में बंटवारा नहीं किया जा रहा। वादा किया गया था कि इसे अक्तूबर 2018 तक लागू कर दिया जाएगा। राजभर तमाम कोशिशों के बावजूद सिर्फ अपने एक बेटे को ही गनर दिला सके। उन्होंने दोनों बेटों के लिए गनर मांगे थे। असल मुद्दा लोकसभा चुनावों में सीटों की दावेदारी का है। राजभर घोसी लोकसभा सीट के साथ ही पूर्वांचल में पांच सीटें चाहते हैं।