तीर्थयात्री बनकर दिल्ली आए 120 पाक हिंदू परिवार यमुना किनारे बसे; कईयों के पास आधार, पैन कार्ड
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने गुरुद्वारा मजनूं का टीला के दक्षिण में यमुना के डूब क्षेत्रों में बनी झुग्गियों और अर्ध-स्थायी संरचनाओं पर कड़ी आपत्ति जताते हुए इस मामले में कार्रवाई का निर्देश...
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने गुरुद्वारा मजनूं का टीला के दक्षिण में यमुना के डूब क्षेत्रों में बनी झुग्गियों और अर्ध-स्थायी संरचनाओं पर कड़ी आपत्ति जताते हुए इस मामले में कार्रवाई का निर्देश दिया है। दरअसल कुछ साल पहले तीर्थयात्री वीजा पर 100 से अधिक पाकिस्तानी हिंदू परिवार राष्ट्रीय राजधानी में आए, लेकिन वापस जाने के बजाय उन्होंने गुरुद्वारा मजनूं का टीला के दक्षिण में यमुना के बाढ़ क्षेत्रों में बनी झुग्गियों और अर्ध-स्थायी संरचनाओं में रहना शुरू कर दिया। इनमें से कई के पास मजनूं का टीला के पते पर बने आधार कार्ड, पैन कार्ड और बैंक खाते हैं। उनके बच्चों ने नजदीकी सरकारी स्कूलों में जाना भी शुरू कर दिया है।
यह खुलासा याचिकाकर्ता जगदेव की याचिका पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के समक्ष पेश रिपोर्ट में हुआ है। याचिका में गुरुद्वारे के दक्षिणी हिस्से से सटे अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई करने और पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है। एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने रिपोर्ट पर कड़ा रुख अपनाते हुए पूछा कि प्राधिकारी कैसे यमुना डूब क्षेत्र में ऐसे अतिक्रमण की अनुमति दे सकते हैं?
हालांकि यहां बिजली की मुहैया नहीं कराई गई है। साझा नलों के जरिये जल आपूर्ति की जा रही है। कुछ निवासियों ने फुटपाथ के पास छोटी दुकानें भी शुरू कर दी हैं। रिपोर्ट में दी गई जानकारी दिल्ली सरकार, दिल्ली विकास प्राधिकरण और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के निरीक्षण के बाद रिपोर्ट पर आधारित है।
वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव बंसल और अधिवक्ता कुश शर्मा इस मामले में डीडीए की ओर से पेश हुए। उन्होंने कहा, "स्थल के निरीक्षण के दौरान सामने आया कि 2011 से 2014 तक तीर्थयात्रा वीजा पर भारत आए पाकिस्तानी हिंदू नागरिकों के लगभग 700 लोग या 120 परिवार झुग्गी और अर्ध-स्थायी संरचनाओं में रह रहे हैं। उनके द्वारा कब्जा की हुई जमीन करीब 5000 वर्ग गज है।"
रिपोर्ट के अनुसार, "वहां रह रहे लोगों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सरकारी अधिकारियों ने उन्हें जमीन पर कब्जा करने के लिये कहा लेकिन उनके पास से ऐसी कोई लिखित अनुमति नहीं मिली। उपरोक्त भूमि आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत आने वाले भूमि एवं विकास कार्यालय की है जिसे देखभाल और रखरखाव के लिए 7 जुलाई 1971 को डीडीए को हस्तांतरित किया गया था।"
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