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चुनावी साल में सवर्णों को आरक्षण देने का सरकार का फैसला गेमचेंजर होगा!

चुनाव के ठीक पहले अगड़ों के लिए आरक्षण (Reservation) का ऐलान यह बताता है कि बीजेपी (BJP) पिछले तीन विधानसभा चुनाव में हार का सबसे बड़ा कारण सवर्णों का गुस्सा मानती है। सवर्णो को इससे कितना फायदा...

 चुनावी साल में सवर्णों को आरक्षण देने का सरकार का फैसला गेमचेंजर होगा!
नई दिल्ली | मदन जैड़ाTue, 08 Jan 2019 08:26 AM
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चुनाव के ठीक पहले अगड़ों के लिए आरक्षण (Reservation) का ऐलान यह बताता है कि बीजेपी (BJP) पिछले तीन विधानसभा चुनाव में हार का सबसे बड़ा कारण सवर्णों का गुस्सा मानती है। सवर्णो को इससे कितना फायदा होगा यह तो बाद की बात है पर सरकार के इस कदम से सवर्ण वोटर चर्चा में जरूर आ गया है। तभी गरीब अगड़ों को आरक्षण का ऐलान होते ही कांग्रेस समेत ज्यादातर क्षेत्रीय दलों ने इसका स्वागत करने में देर नहीं लगाई। 

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सवर्णों को आरक्षण के फैसले को सरकार गेमचेंजर मान रही है। सरकार से जुड़े उच्च पदस्थ सूत्रों का मानना है कि तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में जहां पार्टी की हार हुई, उसमें सवर्णों की नाराजगी भी एक बड़ा कारण रही है। दरअसल, चुनाव से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी के बाबत दिए फैसले को बदलने के लिए सरकार ने कानून बनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने एसटी/एसटी ऐक्ट के तहत अनिवार्य गिरफ्तारी को खत्म कर दिया था। लेकिन सरकार ने कानून बनाकर फिर से इसे अनिवार्य कर दिया। माना जा रहा है कि इस फैसले ने सवर्ण को नाराज कर दिया था।

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बीजेपी का कदम एससी/एसटी पर कानून संशोधन से उपजी सामान्य वर्ग की नाराजगी को दूर करने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है। आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग दशकों पुरानी है। लेकिन केंद्रीय स्तर पर किसी भी सरकार ने अब तक पहले से जारी आरक्षण को छेड़े बिना विचार नहीं किया। इसे मोदी सरकार का एक साहसिक फैसला माना जा सकता है। क्योंकि एससी/एसटी और ओबीसी कोटे से इतर अन्य गरीबों के लिए आरक्षण का इंतजाम करना कोई मामूली कदम नहीं है। कांग्रेस ने इसके समर्थन की बात कहकर अपनी स्थिति साफ कर दी है। इतना तो तय है कि कोई दल विरोध नहीं कर पाएगा पर संविधान संशोधन बिल पारित करने में कोई रोड़े नहीं अटकाएगा, इसकी गारंटी नहीं है।

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एक तीर से कई निशाने
यह फैसला सवर्णों की नाराजगी दूर करता है तो गरीबी के खिलाफ उठाया गया कदम भी है। फैसले के दायरे में उच्च जातियों की करीब 60-65% आबादी आएगी। इसलिए चुनावी फायदे भी होंगे।

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विरोध आसान नहीं
इस मुद्दे पर अब देखना यह होगा कि आरक्षण की राजनीति करने वाली पार्टियां इसे किस रूप में लेती हैं। हालांकि ये तमाम दल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को अलग से आरक्षण देने की पैरवी करते रहे हैं। 

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उल्टा न पड़ जाए कदम
सत्तापक्ष को यह ध्यान रखना होगा कि विपक्ष यह संदेश नहीं देने पाए कि यह सरकार उच्च जातियों की पैरवीकार है। आज नहीं तो कल निचले तबके के आरक्षण पर हमला किया किया जा सकता है। 
 

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