Hindi Newsदेश न्यूज़Sitaram Yechury CPM stalwart who made Indira Gandhi resign as JNU chancellor after Emergency

जब इंदिरा गांधी के घर छात्रों का हुजूम लेकर पहुंच गए थे सीताराम येचुरी, छोड़नी पड़ी थी JNU चांसलर की कुर्सी

येचुरी ने अपने ज्ञापन में लिखा था कि एक तानाशाह को यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति के पद पर नहीं रहना चाहिए और तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए। इतना ही नहीं येचुरी ने इमरजेंसी के दौरान इंदिरा के जेएनयू में होने वाले कार्यक्रम का भी विरोध किया था। लंबी बीमारी के बाद आज 72 साल की उम्र में येचुरी का निधन हो गया।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 12 Sep 2024 12:50 PM
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बात अक्टूबर 1977 की है। आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी की सरकार जा चुकी थी और मोरारजी देसाई के अगुवाई में देश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बन चुकी थी। चुनावों में कांग्रेस पार्टी की करारी हार हुई थी, बावजूद इसके इंदिरा गांधी जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) की कुलाधिपति यानी चांसलर बनी हुई थीं। जेएनयू के छात्र इसका प्रबल विरोध कर रहे थे। सीताराम येचुरी तब जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष थे और अर्थशास्त्र के विद्यार्थी थे। जेएनयू के छात्र इंदिरा गांधी के आपातकाल लगाने के फैसले से भड़के हुए थे और उन्हें तानाशाह करार दे रहे थे। छात्रों को यह कतई पसंद नहीं था कि कोई तानाशाह उनका चांसलर रहे।

जब इंदिरा प्रधानमंत्री नहीं रहीं, फिर भी जेएनयू की चांसलर बनी रहीं, तब सीताराम येचुरी ने सैकड़ों छात्रों को लेकर इंदिरा गांधी के आवास तक पैदल मार्च किया था। छात्र इंदिरा के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे। जब काफी मशक्कत के बाद भी छात्र वहां से टस से मस नहीं हुए तो इंदिरा अपने आवास से बाहर आईं और छात्रों से बात करने लगीं। इसी दौरान सीताराम येचुरी ने गांधी के इस्तीफे की मांग करते हुए एक ज्ञापन पढ़ा। इस दौरान इंदिरा उनके बगल में खड़ी रहीं और मुस्कुराती रहीं। इस घटना के बाद इंदिरा गांधी ने जेनएनयू की कुलाधिपति पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि, इस घटना के बाद येचुरी को गिरफ्तार कर लिया गया था।

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येचुरी ने अपने ज्ञापन में लिखा था कि एक तानाशाह को यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति के पद पर नहीं रहना चाहिए और तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए। इतना ही नहीं येचुरी ने इमरजेंसी के दौरान इंदिरा के जेएनयू में होने वाले कार्यक्रम का भी विरोध किया था। इंदिरा उस दौरान जेएनयू कैम्पस में एक कार्यक्रम करना चाहती थीं, लेकिन छात्रों के विरोध की वजह से उनका कार्यक्रम नहीं हो पाया था।

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इस घटना से सीताराम येचुरी की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर उभर कर सामने आ गई थी। वह 1977 से 78 तक जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे। इसके बाद वह मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी की छात्र इकाई स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया के संयुक्त सचिव बनाए गए। येचुरी अर्थशास्त्र में पीएचडी करना चाहते थे लेकिन राजनीति की राह पर ऐसे बढ़े कि फिर वह सपना अधूरा रह गया। 2004 में जब मनमोहन सिंह की अगुवाई में यूपीए की सरकार बन रही थी, तब येचुरी ने पर्दे के पीछे अहम भूमिका निभाई थी।

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