शायद अंग्रेजी अब वैसी नहीं रही... जमीयत की तारीफ करने के आरोपों पर शशि थरूर का जवाब
Shashi tharoor: ढाका यूनिवर्सिटी के चुनाव में जमीयत की जीत पर टिप्पणी करने वाले कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने ट्रोल्स को जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि अगर भविष्य के लिए इस जीत को चिंताजनक संकेत बताना जमीयत की तारीफ है तो मुझे लगता है कि अंग्रेजी बदल गई है।

ढाका यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ चुनाव को लेकर कांग्रेस सांसद शशि थरूर की टिप्पणी पर एक वर्ग द्वारा उन्हें ट्रोल किया जा रहा था। उन पर आरोप लगाया जा रहा था कि उन्होंने बांग्लादेश की धार्मिक-राजनीतिक पार्टी जमीयत-ए-इस्लामी की तारीफ की है। इन ट्रोल्स को अब कांग्रेस थरूर ने जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि मैंने जमीयत की जीत को आने वाले समय के लिए चिंताजनक संकेत बताया था।
सोशल मीडिया साइट एक्स पर अपनी राय रखते हुए शशि थरूर ने लिखा, "अगर भविष्य के लिए चिंताजनक संकेत का इस्तेमाल करने को तारीफ करना कहते हैं, तो मैं बस इतना कह सकता हूं कि अब शायद अंग्रेजी भाषा वैसी नहीं रही जैसी मैंने पढ़ी थी।"
गौरतलब है कि गुरुवार को शशि थरूर ने ढाका यूनिवर्सिटी में जमीयत-ए-इस्लामी की जीत को लेकर टिप्पणी की थी। अपनी इस पोस्ट में थरूर ने लिखा था कि आम भारतीयों के मन में भले ही यह जीत एक छोटी सी घटना या झलक के रूप में दर्ज हुई हो, लेकिन भविष्य के लिए यह एक चिंताजनक संकेत है।
इतना ही नहीं थरूर ने जमीयत की जीत को आम बांग्लादेशी के मन में शेख हसीना की आवामी लीग और खालिदा जिया के प्रति बढ़ती हताशा का प्रतीक बताया था। उन्होंने लिखा, "जमीतय की यह जीत इसलिए नहीं हुई है कि बांग्लादेशी मतदाता कट्टरपंथी या इस्लामिक कट्टरपंथी है। बल्कि इसलिए हुई है क्योंकि सामने बांग्लादेश की दो बड़ी राजनैतिक पार्टियों को लेकर लोगों के मन में हताशा भरी हुई है। उनके जैसे भ्रष्टाचार और कुशासन से जमीयत कलंकित नहीं है।"
इतना ही नहीं थरूर ने जमीयत की इस जीत के बाद फरवरी में होने वाले बांग्लादेशी चुनाव को लेकर भी अपनी चिंता जाहिर की थी। उन्होंने लिखा, "हमें यह देखना होगा कि क्या फरवरी के चुनाव में भी यही नतीजे रहने वाले हैं। क्या भारत को बांग्लादेश में जमीयत की मेजॉरिटी का सामना करना होगा?"
आपको बता दें जमीयत अब तक बांग्लादेश की राजनीति में छोटे से केंद्र के रूप में रहा है। इससे जुड़े छात्र समूह की भी ढाका यूनिवर्सिटी में कोई खास उपस्थिति नहीं रही है। 1971 के बाद से ही यहां पर बांगाली राष्ट्रवाद की जड़ें फली-फूलीं हैं। इसी राष्ट्रवाद ने 1971 के पाकिस्तान के खिलाफ मुक्ति संग्राम की प्रेरणा दी थी। जहां तक जमीयत की बात है तो वह पाकिस्तान समर्थक माना जाता है। छात्रसंघ की जीत के बाद जमीयत ए इस्लामी पाकिस्तान की तरफ से भी बधाई आई है।
एनडीटीवी में लिखे अपने एक लेख में थरूर ने जमीयत की जीत पर विस्तार से अपनी चिंता साझा की। उन्होंने लिखा, "बांग्लादेश में जमायीत की बढ़ती ताकत का मतलब है कि भारत के लिए वहां के हालात आसान नहीं होने वाले।" इतना ही नहीं उन्होंने कि ढाका की आने वाली सरकार अगर अधिक कट्टरवादी होती है तो वहां पर भारत विरोधी तत्वों के बढ़ने का खतरा बढ़ जाएगा।




