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क्रिसमस पर आरएसएस की अनूठी पहल, विदेशी कल्चर से किनारा और सिखों से बढ़ेगा भाईचारा

  • आरएसएस ने बीते 5 सालों से साहिबजादों की शहादत की याद में देश भर में पथ संचलन की शुरुआत की है। इस मौके पर ज्यादातर छात्रों को ही शामिल किया जाता है और वे संघ के पूरे गणवेश अपने गांव, कस्बों या शहर की बस्तियों में रैली निकालते हैं। इसे ही संघ की शब्दावली में पथ संचलन कहा जाता है।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तानThu, 26 Dec 2024 09:30 AM
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क्रिसमस पर आरएसएस की अनूठी पहल, विदेशी कल्चर से किनारा और सिखों से बढ़ेगा भाईचारा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कारोबार से लेकर संस्कृति तक में स्वदेशी के पालन पर जोर देता रहा है। अकसर वह क्रिसमस जैसे आयोजनों से दूर रहा है और इसे भारतीय संस्कृति से अलग त्योहार मानता है। संघ के विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे आनुषांगिक संगठन तो स्कूलों आदि में क्रिसमस मनाए जाने का विरोध भी करते रहे हैं। ऐसा सालों से चलता रहा है, लेकिन अब संघ ने विरोध की बजाय एक अलग ही कार्य़क्रम की पहल की है। यह पहल है- 25 दिसंबर के मौके पर 'वीर बाल दिवस पथ संचलन' की। बीते 5 सालों से यह कार्यक्रम आरएसएस की ओर से देश के ज्यादातर हिस्सों में आयोजित हो रहा है। इन कार्यक्रमों के माध्यम से गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादों फतेह सिंह और जोरावर सिंह की शहादत को याद किया जाता है।

आरएसएस ने बीते 5 सालों से साहिबजादों की शहादत की याद में देश भर में पथ संचलन की शुरुआत की है। इस मौके पर ज्यादातर छात्रों को ही शामिल किया जाता है और वे संघ के पूरे गणवेश अपने गांव, कस्बों या शहर की बस्तियों में रैली निकालते हैं। इसे ही संघ की शब्दावली में पथ संचलन कहा जाता है। इससे पहले आरएसएस की ओर से दशहरे, हिंदू नववर्ष आदि पर ही इस तरह का पथ संचलन किया जाता था, लेकिन अब यह नई पहल शुरू की गई है। इस बारे में बात करने पर आरएसएस के एक पदाधिकारी ने बताया कि हम अकसर कहते हैं कि हमें विदेशी नहीं बल्कि स्वदेशी संस्कृति का पालन करना चाहिए। ऐसे में हमने यह कोशिश की है कि क्रिसमस का विरोध करने की बजाय उसी दिन वीर बाल दिवस पथ संचलन का आयोजन किया जाए।

उन्होंने कहा कि इससे युवा पीढ़ी को साहिबजादों की शहादत के बारे में जानने का अवसर मिलेगा और वे क्रिसमस के आयोजनों से भी थोड़ा दूर रहेंगे। इसके अलावा सिख समाज के साथ भी भाईचारे का संदेश जाएगा। जानकार मानते हैं कि जिस तरह पंजाब के कुछ हिस्सों में अलगाववाद बढ़ाने की कोशिशें की जा रही हैं और विदेशों में खालिस्तान के नाम पर आंदोलन जोर पकड़ रहा है। उस स्थिति में संघ की यह पहल अहम है। वह चाहते है कि सिख समाज को साथ बनाकर रखा जाए। पंजाब में वह अरसे से इसकी कोशिश करता रहा है, लेकिन पूरे देश में ऐसा आयोजन करने से और पॉजिटिव संदेश जाएगा।

संघ की पहल के बाद सरकार ने भी किया ऐलान

साल 2022 में 9 जनवरी को गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि 26 दिसंबर को श्री गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी की शहादत की स्मृति में वीर बाल दिवस मनाया जाएगा। माना जाता है कि आरएसएस विचारकों की ओर से इसकी पहल की गई और फिर सरकार को भी इसका आइडिया दिया गया था। यानी आरएसएस की पहल पर ही नरेंद्र मोदी सरकार ने वीर बाल दिवस मनाए जाने का ऐलान किया था।

कहानी साहिबजादों की शहादत की

दोनों साहिबजादों की शहादत 26 दिसंबर, 1705 को हुई थी, जिन्हें सरहिंद के नवाब वजीर खां ने मरवा दिया था। वह औरंगजेब की सत्ता के तहत काम करता था और गुरु गोबिंद सिंह की ओर से स्थापित खालसा पंथ के खिलाफ चल रही लड़ाई में शामिल था। सरहिंद में हर साल साहिबजादों की शहादत को याद करने के लिए तीन दिन का मेला लगता है। यही नहीं फतेहगढ़ साहिब गुरुद्वारा भी साहिबजादों की याद में ही बनाया गया था। गुरु गोबिंद सिंह के 4 पुत्रों में से दोनों छोटे बेटों का जन्म आनंदपुर साहिब में हुआ था। छोटे साहिबजादों से दादी माता गूजरी कौर जी काफी करीब थीं। यही नहीं औरंगजेब से चली जंग के दौरान जब गुरुजी और उनका परिवार आनंदपुर साहिब से निकले तो दादी ही उनकी देखरेख कर रही थीं।

एक रसोइये की मुखबरी से हुई साहिबजादों की शहादत

उनके ही नेतृत्व में एक काफिला निकला था। वह बेटों बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह और रसोइए गंगू के साथ किसी गुप्त स्थान पर चली गईं। तब बाबा जोरावर मात्र 9 साल के थे और बाबा फतेह की उम्र 6 साल थी। लालच के चलते रसोइए गंगू ने सरहिंद के नवाब वजीर खां के हाथों उन सभी को पकड़वा दिया। उस समय तक बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह मुगलों से जंग के दौरान शहीद हो चुके थे। नवाब वजीर खां ने माता गूजरी और दोनों छोटे साहिबजादों पर बहुत अत्याचार किए और धर्म बदलने के लिए कहा लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। तब वजीर खान ने दोनों साहिबजादों को दीवार में जिंदा चिनवा दिया। उस दिन 26 दिसंबर की तारीख थी। जब ये बात माता गूजरी को पता चली तो उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए।

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