'वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से, मैं यकीन न करता तो...', राहुल गांधी के वकील का शायराना अंदाज
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के वकील चीमा ने कहा, ‘एजेएल के एमओए में कहा गया था कि एजेएल की नीति कांग्रेस की नीति होगी। एजेएल को कभी मुनाफा नहीं हुआ। आजादी के बाद की अवधि में यह कभी भी व्यावसायिक संस्था नहीं रही।’

नेशनल हेराल्ड धनशोधन मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का पक्ष रख रहे सीनियर वकील आरएस चीमा ने बड़ा बयान दिया। उन्होंने दलील दी कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) की संपत्ति बेचने की कोशिश नहीं कर रही है, बल्कि उस संस्था को बचाने का प्रयास कर रही है जो स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा था। चीमा ने विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने के समक्ष प्रवर्तन निदेशालय की ओर से लगाए गए आरोपों के खिलाफ अपनी दलीलें पेश कीं। इस दौरान उन्होंने प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक मार्क ट्वेन और उर्दू कवि वसीम बरेलवी की पक्तियां भी बोंली।
ईडी ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी, उनके बेटे राहुल गांधी, दिवंगत कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा, ऑस्कर फर्नांडीस, सुमन दुबे, सैम पित्रोदा और एक निजी कंपनी यंग इंडियन पर आरोप लगाए हैं। इसके मुताबिक, नेशनल हेराल्ड अखबार प्रकाशित करने वाली एजेएल की 2,000 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की संपत्तियों का धोखाधड़ी से अधिग्रहण करने की साजिश और धन शोधन करने का आरोप लगाया है। चीमा ने सवाल किया, ‘क्या मेरे मित्र (ईडी के वकील) मुझे बता सकते हैं कि वे एजेएल के मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (MoA) को रखने में क्यों झिझक रहे थे? एजेएल की स्थापना 1937 में जवाहरलाल नेहरू, जेबी कृपलानी, रफी अहमद किदवई और अन्य लोगों की ओर से की गई थी। मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत किसी कंपनी के गठन के लिए आवश्यक है।
राहुल गांधी के वकील का क्या है तर्क
वकील चीमा ने कहा, ‘एजेएल के एमओए में कहा गया था कि एजेएल की नीति कांग्रेस की नीति होगी। एजेएल को कभी मुनाफा नहीं हुआ। आजादी के बाद की अवधि में यह कभी भी व्यावसायिक संस्था नहीं रही।’ उन्होंने कहा, ‘हम (अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी) एक ऐसी संस्था को फिर से सक्रिय करने का प्रयास कर रहे थे जो स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत का हिस्सा है। समस्या एजेएल को दिए गए ऋण की वसूली नहीं थी; समस्या इसे पुन: सक्रिय करने की थी। यह सुनिश्चित करने की थी कि यह फिर से पटरी पर आ जाए। एआईसीसी बिक्री में लाभ नहीं देख रही थी। ऐसा कहना सही दृष्टिकोण नहीं है।’ सीनियर वकील ने विभिन्न आरोपों का हवाला देते हुए और आपत्तियां उठाते हुए उर्दू शायर वसीम बरेलवी की यह पंक्तियां दोहराईं, ‘वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से, मैं यकीन न करता, तो क्या करता?’। उनकी इस बात से खचाखच भरी अदालत में हंसी छूट गई।