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किन 51 फीसदी वोटों पर भाजपा और नीतीश की दावेदारी, चिराग छिटके तो क्या होगा

किन 51 फीसदी वोटों पर भाजपा और नीतीश की दावेदारी, चिराग छिटके तो क्या होगा

संक्षेप: यदि इस चुनाव में इन सामाजिक वर्गों को ही साधने में भाजपा और जेडीयू सफल रहे तो उन्हें बड़ी सफलता मिल सकती है। बिहार में भले ही ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ मिलकर 15 फीसदी ही हैं, लेकिन उनका प्रभाव कभी कम नहीं रहा है।

Wed, 8 Oct 2025 10:21 AMSurya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली
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बिहार के चुनाव में सामाजिक समीकरणों की हमेशा ही अहमियत रही है। इस लिहाज से देखें तो नीतीश कुमार और भाजपा का गठजोड़ सामाजिक समीकरणों में काफी मजबूत नजर आता है। आरजेडी के मुकाबले एकजुट रहने वाले 15 फीसदी सवर्ण छिटपुट इलाकों को छोड़कर एकतरफा तौर पर भाजपा के साथ नजर आते हैं। वहीं 36 फीसदी अति पिछड़ा वर्ग नीतीश कुमार का पक्का वोट बैंक माना जाता है। यदि इस चुनाव में इन सामाजिक वर्गों को ही साधने में भाजपा और जेडीयू सफल रहे तो उन्हें बड़ी सफलता मिल सकती है। बिहार में भले ही ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ मिलकर 15 फीसदी ही हैं, लेकिन उनका प्रभाव कभी कम नहीं रहा है।

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आरजेडी के दौर में भले ही सवर्ण राजनीति कमजोर पड़ी हो, लेकिन अति पिछड़ा वर्ग एवं दलितों के साथ मिलकर इन समाजों के लोग एक बैलेंस जरूर बनाते रहे हैं। बीते तीन दशकों से सवर्ण बिरादरियां कांग्रेस से छिटक कर भाजपा के पाले में जाती रही हैं। इस तरह भाजपा को इस समाज का वोट एकमुश्त मिलता रहा है। अहम बात यह है कि ब्राह्मण, राजपूत और भूमिहार कई ऐसी सीटें हैं, जहां निर्णायक हैं। इसके अलावा तीनों ही जातियां समाज में ओपिनियन मेकर और ओपिनियन लीडर के तौर पर देखी जाती हैं। ऐसे में यदि इनका एकतरफा वोट फिर से भाजपा के साथ जाता दिखा तो समीकरण और बदल सकते हैं।

अब इसके बाद अति पिछड़ा वर्ग की बात करें तो उसकी आबादी 36 फीसदी के करीब है। इन वर्ग में कुर्मी, कोइरी, कुशवाहा, कश्यप समेत कई बिरादरियां आती हैं। आरजेडी के दौर में यादव और मुस्लिम प्रभुत्व के जवाब में नीतीश कुमार ने यह समीकरण तैयार किया था। इस वर्ग को पंचायतों में आरक्षण भी उनकी ओर से दिया गया था। ऐसे में यह नीतीश कुमार का मजबूत जनाधार माना जाता है। इस तरह भाजपा के 15 फीसदी सवर्ण और नीतीश कुमार के 36 फीसदी अति पिछड़ा मिलकर बड़ा जनाधार तैयार करते हैं।

अहम बात यह है कि दोनों ही वर्गों में तीखी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता नहीं है। इसलिए नीतीश और भाजपा आपस में एक-दूसरे का वोट ट्रांसफर करा लेते हैं। यही उनके साथ आने का सबसे बड़ा आधार और ताकत भी है। इसी वोट में जब 5.3 फीसदी पासवान मतदाता जुड़ जाता है तो संख्या और अधिक होती है, लेकिन चिराग पासवान अब छिटकने की कोशिश में है। वह 40 सीट मांग रहे हैं और भाजपा 22 से 25 तक ही ऑफर कर रही है। हालांकि भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि चिराग पासवान अलग भी हुए तो ज्यादा परेशानी नहीं होगी। वजह यह कि दलित समाज भी कई हिस्सों में बंटा हुआ है और उसका एक वर्ग नीतीश और मोदी के नाम पर वोट करेगा।

Surya Prakash

लेखक के बारे में

Surya Prakash
दुनियादारी में रुचि पत्रकारिता की ओर खींच लाई। समकालीन राजनीति पर लिखने के अलावा सामरिक मामलों, रणनीतिक संचार और सभ्यतागत प्रश्नों के अध्ययन में रुचि रखते हैं। करियर की शुरुआत प्रिंट माध्यम से करते हुए बीते करीब एक दशक से डिजिटल मीडिया में हैं। फिलहाल लाइव हिन्दुस्तान में नेशनल, इंटरनेशनल डेस्क के इंचार्ज हैं। और पढ़ें
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