हम लड़ने वाले गांधी को भुला देते हैं, 'हमारे समय में विचार' कार्यक्रम में बोले गांधीवादी विचारक
- दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा युद्ध 2024 में हुए हैं, जिसका सबसे ज्यादा शिकार बच्चे हुए हैं। गांधीवाद जैसी कोई चीज नहीं है। केवल दिशा बनी है, वही हमें समझनी है। विचार खत्म नहीं होता है, विचार समय के साथ बदलता रहता है। इसलिए जीने और जीने लायक समाज बनाने की कोशिश करनी चाहिए।
हम लोगों के गांधी अहिंसा से शुरू होते हैं और अहिंसा पर ही खत्म हो जाते हैं। हम लड़ने वाले गांधी को भुला देते हैं। गांधी ने दोनों विश्व युद्ध देखे हैं। क्रूरतम साम्राज्यवाद देखा है। सांप्रदायिक खूरेंजी देखी है। अपनी हत्या के पांच हमले देखे हैं। उनका सीधा मुकाबला किया है। यह बात गांधीवादी विचारक कुमार प्रशांत ने वर्तमान साहित्य के वार्षिक आयोजन ‘हमारे समय में विचार’ नामक परिसंवाद में कही।
उर्दू घर के सभागार में आयोजित समारोह में गांधी शान्ति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने ‘युद्ध के बादलों के बीच गांधी की जरूरत’ विषय पर विचार रखते हुए कहा कि उस समय उतना चुप और डरा हुआ समाज नहीं था, जितना पिछले दस वर्षों में कायर समाज बना है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा युद्ध 2024 में हुए हैं, जिसका सबसे ज्यादा शिकार बच्चे हुए हैं। उन्होंने कहा कि गांधीवाद जैसी कोई चीज नहीं है। केवल दिशा बनी है, वही हमें समझनी है। विचार खत्म नहीं होता है, विचार समय के साथ बदलता रहता है। इसलिए जीने और जीने लायक समाज बनाने की कोशिश करनी चाहिए।
लेखक और विचारक नंद किशोर आचार्य ने डॉ. लोहिया के इतिहास दर्शन से रूबरू कराया। चौथे तारसप्तक के कवि नंद किशोर आचार्य ने वर्ग और वर्ण के बीच की संघर्ष गाथा को बताया। उन्होंने कहा कि वर्ग और वर्ण का संबंध अधीनता से नहीं बल्कि एकता से है। सभी एक दूसरे पर आश्रित हैं। जब तक समता नहीं है, अन्योन्याश्रिता नहीं है। लोहिया अन्योन्याश्रिता को प्राथमिकता देते हैं। उन्होंने कहा कि गांधी के रास्ते पर चलकर ही संघर्ष से समाधान हो सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार सईद नकवी ने देश और दुनिया में हो रही घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि किसी को इसकी फिक्र नहीं है। इसके सारे स्रोत ही बंद कर दिए गए हैं, जिससे हमें जानकारी मिलती थी। उन्होंने गाजा से लेकर इजराइल, रूस, यूक्रेन, अमेरिका, फ़्रांस और वियतनाम तक की अनेक घटनाओं को केंद्र में रखकर पूरे मीडिया परिदृश्य, सरकारों और कारपोरेट की भूमिका पर अपनी बात रखी।
मार्क्सवादी चिंतक रवि सिन्हा ने ‘मार्क्स : बीसवीं सदी के अनुभव और इक्कीसवीं सदी की चुनौतियां’ विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने विचार को बीज और फसल का रूपक मानते हुए कहा कि बीसवीं सदी में मार्क्सवाद की फसल, समाजवाद की उपज है। यह तथ्य है कि बीसवीं सदी में समाजवाद पैदा हुआ और खत्म हुआ। इसके साथ ही रवि सिन्हा ने इक्कीसवीं सदी की चार प्रमुख चुनौतियों को रेखांकित किया।
‘हिंदुत्व : हिंदुत्व से सनातन तक’ विषय पर सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि जब से मनुष्य है तब से सनातन की अवधारणा है। उन्होंने कहा कि सवाल हिंदुत्व का नहीं है, वर्तमान समय में इंसान और इंसानियत का है। यह हमारे देश को शाश्वत रखने वाली अवधारणा है।
इससे पहले विचार हीनता के समय में विचार विषय की प्रस्तावना वर्तमान साहित्य के संस्थापक संपादक और उपन्यासकार विभूति नारायण राय ने रखी। उन्होंने गांधी के तप, त्याग और समर्पण को रेखांकित करते हुए कहा कि बिना किसी बड़ी सोच और विचारधारा से ऐसा संभव नहीं था। सबसे जरूरी बात विचारधाराओं के बीच सामंजस्य बैठाना है। ज्यादा बेहतर होगा कि उनमें संवाद स्थापित हो। इसी को ध्यान में रखकर यह पूरा सत्र रखा गया है। इस सत्र का संचालन वर्तमान साहित्य पत्रिका के संपादक संजय श्रीवास्तव ने किया तो आभार ज्ञानचंद बागड़ी ने जताया।
कृष्ण प्रताप कथा सम्मान से नवाजे गए किशुंक गुप्ता
समारोह के पहले सत्र में युवा कथाकार किशुंक गुप्ता को कृष्ण प्रताप कथा सम्मान 2023 से नवाजा गया। यह सम्मान ‘ये दिल है कि चोर दरवाजा’ कहानी संग्रह के लिए उन्हें दिया गया। सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद प्रसिद्ध कवि और आलोचक अशोक वाजपेयी ने किंशुक गुप्ता की कहानियों पर संक्षिप्त बात की। एक विषय विशेष का ठप्पा लगने के खतरे को रेखांकित किया तो रचनाकार को उस विषय के साथ अनेकानेक विषय देखने और उठाने पर बल दिया। वरिष्ठ आलोचक आशुतोष कुमार ने कहानी संग्रह ‘ये दिल है कि चोर दरवाजा’ की कहानियों की बारीक समीक्षा की। संचालन कर रहीं शोभा अक्षर ने अपनी संक्षिप्त टिप्पणियों से लोगों का ध्यान खींचा। इससे पहले लोगों का स्वागत करते हुए प्रियदर्शन मालवीय ने कृष्ण प्रताप को मिले संक्षिप्त जीवन और उसमें किये गए काम पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि जब वह पुलिस सेवा में चुने गए तो किस तरह एक आपरेशन के दौरान अपने विभागीय साथियों के हाथों ही मारे गए। इसके बाद चली लम्बी कानूनी लड़ाई में किस तरह से कृष्ण प्रताप की पत्नी और उनकी बेटियों को मुश्किलें पेश आईं। पूरे समारोह में बड़ी संख्या में लोगों की भागीदारी रही।
रिपोर्ट : आयुष प्रजापति
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