पूरा बार उनके साथ खड़ा है, वकीलों की जस्टिस बेला त्रिवेदी से तीखी बहस; बदलना पड़ा फैसला
- बता दें कि वकील सोमा सुंदरम 28 मार्च को इसी मामले की सुनवाई के दौरान उपस्थित नहीं हो पाए थे, जिससे कोर्ट नाराज हो गया। सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) की सुनवाई चल रही थी।

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को जस्टिस बेला त्रिवेदी और वकीलों के बीच तीखी बहस देखने को मिली। यह विवाद तब खड़ा हुआ जब जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) पी. सोमा सुंदरम को एक आपराधिक मामले में "अनावश्यक और अनुचित याचिका" दायर करने पर फटकार लगाई। वकीलों ने कोर्ट के आदेश को "पूर्वनिर्धारित" बताते हुए कड़ा विरोध जताया और कहा कि संपूर्ण बार (वकील संघ) पीड़ित वकील के साथ खड़ा है। इसके बाद पीठ को अपने एक आदेश में संशोधन करना पड़ा।
क्या है पूरा मामला?
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, यह मामला अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (IPC) की अन्य धाराओं के तहत दर्ज एक अपराध से जुड़ा था। निचली अदालत ने आरोपी को आईपीसी की धारा 147, 342, 149 और 155 तथा एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(2)(3), (1)(10) के तहत दोषी ठहराते हुए तीन साल की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट में अपील दायर की गई थी, जिसे 2023 में खारिज कर दिया गया।
इसके बाद, याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी और आत्मसमर्पण से छूट मांगी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए दो सप्ताह में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। बावजूद इसके, याचिकाकर्ता ने एक बार फिर से विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर कर आत्मसमर्पण से छूट मांगी, जिसे लेकर अदालत ने कड़ी आपत्ति जताई।
कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
सुनवाई के दौरान जब अधिवक्ता पी. सोमा सुंदरम कोर्ट में पेश हुए, तो कोर्ट ने पाया कि याचिका में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर मेल नहीं खा रहे थे और सभी कागजात पर सिर्फ अधिवक्ताओं के हस्ताक्षर थे। कोर्ट ने इसे न्याय प्रक्रिया के दुरुपयोग और न्यायिक प्रशासन में हस्तक्षेप मानते हुए पी. सोमा सुंदरम और एक अन्य अधिवक्ता मुथुकृष्णा से पूछा कि उनके खिलाफ अदालत की अवमानना और अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों न शुरू की जाए।
वकीलों का कड़ा विरोध
बार ने कोर्ट के इस आदेश का कड़े शब्दों में विरोध किया और अदालत को अपने आदेश को संशोधित करने के लिए मजबूर किया। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के कई सदस्यों ने अदालत में इस फैसले पर सवाल उठाए। एक वकील ने कहा, "उन्हें सुने बिना कैसे दोषी ठहरा सकते हैं? एक मौका तो दिया जाना चाहिए।" दूसरे वकील ने कहा, "यह पूर्वनिर्धारित आदेश है, हम यही कह रहे हैं।" तीसरे वकील ने कहा, "आपने उनसे टिकट मांगा था, और वह टिकट लेकर आ गए हैं।" एक अन्य वकील ने कहा, "इस मामले की (मीडिया में) रिपोर्टिंग होगी। आप वकीलों का करियर इस तरह खत्म नहीं कर सकते।" वरिष्ठ अधिवक्ता एस. नागमुथु ने भी अदालत के आदेश पर आपत्ति जताते हुए कहा कि पूरा बार उनके समर्थन में खड़ा है।
कोर्ट ने संशोधित आदेश जारी किया
वकीलों के कड़े विरोध के बाद कोर्ट ने अपने आदेश में संशोधन किया और याचिकाकर्ता तथा संबंधित अधिवक्ताओं को इस मामले में अपना स्पष्टीकरण देने का अवसर दिया। संशोधित आदेश में कोर्ट ने कहा, "हम याचिकाकर्ता, AoR और अधिवक्ताओं को यह बताने का अवसर देते हैं कि उन्होंने दूसरी विशेष अनुमति याचिका (SLP) विकृत तथ्यों के साथ किस परिस्थिति में दायर की। सभी को एक सप्ताह के भीतर हलफनामा दायर करना होगा।"
कहां से शुरू हुआ पूरा विवाद?
बता दें कि वकील सोमा सुंदरम 28 मार्च को इसी मामले की सुनवाई के दौरान उपस्थित नहीं हो पाए थे, जिससे कोर्ट नाराज हो गया। सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) की सुनवाई चल रही थी। इस मामले में एओआर की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई कि संबंधित एओआर सोमा सुंदरम कोर्ट में मौजूद ही नहीं थे। जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने इस पर सख्त नाराजगी जताई। जस्टिस त्रिवेदी ने कहा, "आपको यह एसएलपी दायर ही नहीं करनी चाहिए थी। अगर आपको यह समझ नहीं है, तो आपको एओआर नहीं होना चाहिए। मैं इसे हल्के में नहीं छोड़ूंगी, यह अनुचित लाभ लेने की कोशिश है।" जब एओआर की ओर से सफाई देने की कोशिश की गई, तो पीठ ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। एक वकील ने कहा, "माई लॉर्ड, मेरे विद्वान मित्र..." लेकिन जस्टिस त्रिवेदी ने बीच में टोकते हुए कहा, "विद्वान मित्र मत कहिए। हम परेशान और दुखी हैं। हर दिन हमें ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। यह आपकी और सिर्फ आपकी जिम्मेदारी है।" पीठ ने यह भी कहा कि अगर कोई फैसला पहले ही हो चुका है और उसे चुनौती दी जा रही है, तो वकीलों को दस्तावेज ठीक से पढ़ने चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया कि ऐसी स्थिति में सफाई का कोई आधार कैसे हो सकता है।
जस्टिस त्रिवेदी ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, "हम वह कोर्ट हैं, जिसकी ओर आम लोग उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं। हम सिर्फ माफी स्वीकार नहीं करेंगे। हमें नहीं पता कि एओआर कौन हैं, हमने उन्हें पहले कभी नहीं देखा। क्या अब हमें यह भी सिखाया जाएगा कि ऑर्डर कैसे पास करना है? यह देश की सबसे बड़ी अदालत में हो रहा है।" इस टिप्पणी से साफ था कि पीठ सुप्रीम कोर्ट की गरिमा और जिम्मेदारी को लेकर बेहद संजीदा थी। जस्टिस त्रिवेदी ने सुप्रीम कोर्ट के नियमों का हवाला देते हुए कहा कि एओआर की मौजूदगी सुनवाई के दौरान अनिवार्य है। उन्होंने पहले के एक फैसले का जिक्र किया, जिसमें यह तय किया गया था कि कोर्ट में केवल वही वकील अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं, जो सुनवाई में वास्तव में मौजूद हों और तर्क प्रस्तुत करें।
वकील ने बिना शर्त माफी भी मांगी
पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि नियमों का पालन सभी को करना होगा, चाहे वह कोर्ट के अधिकारी हों या वकील। इस सख्ती के जवाब में कुछ वकीलों ने आपत्ति जताई। उनका कहना था कि कई बार एओआर व्यावहारिक कारणों से कोर्ट में मौजूद नहीं हो पाते और उनकी ओर से अन्य वकील तर्क प्रस्तुत करते हैं। लेकिन पीठ ने इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। बहस के दौरान माहौल इतना गरमा गया कि यह मामला कोर्ट रूम से बाहर सोशल मीडिया तक पहुंच गया।
एक वकील ने पीठ को बताया कि अधिवक्ता सोमा सुंदरम शहर से बाहर थे और तमिलनाडु की यात्रा कर रहे थे, लेकिन बेंच ने इसे स्वीकार नहीं किया। पीठ ने उन्हें सबूत के तौर पर अपनी यात्रा के टिकटों के साथ आज पेश होने को कहा था। आदेश के अनुसार, सोमा सुंदरम आज अपनी यात्रा के टिकट के साथ न्यायालय में उपस्थित हुए और बिना शर्त माफी भी मांगी। इसी दौरान पीठ ने याचिका पर आपत्ति जताई और दलील में तथ्यों को छिपाने का आरोप लगाया। इसके बाद वकीलों और पीठ के बीच तीखी बहस हुई। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्यों सहित न्यायालय में उपस्थित वकीलों ने इस पर आपत्ति जताई।
"पूरा बार सोमा सुंदरम के पीछे खड़ा है"
मामले में बहस करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एस नागमुथु ने भी पीठ के आदेश पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा, "पूरा बार (सोमा सुंदरम) के पीछे खड़ा है। मैंने आपको बताया था कि वह गांव में हैं। आपने मेरी बात पर विश्वास नहीं किया। मुझ पर संदेह किया गया। मेरी 40 साल से अधिक की प्रतिष्ठा पर संदेह किया गया। फिर वह गांव से ऑनलाइन आए और फिर उन्हें अनुमति नहीं दी गई। सोशल मीडिया में इस बारे में व्यापक कवरेज है। लोगों ने इस बारे में पूछताछ की।" इस पर न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने कहा, "सभी को पता होना चाहिए कि क्या हो रहा है।" एक अन्य वकील ने अनुरोध किया, "उनकी निंदा की जा रही है, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। कृपया आदेश को फिलहाल रोक दें।" न्यायालय ने वकीलों द्वारा उठाई गई आपत्तियों को दर्ज करने के बाद अंततः संशोधित आदेश पारित किया। इस मामले की अगली सुनवाई 9 अप्रैल को होगी, जिसमें याचिकाकर्ता को भी अदालत में उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया है।