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लिंगायत एक अलग धर्म है, कर्नाटक में जारी सर्वे के बीच सिद्धारमैया का बड़ा बयान

लिंगायत एक अलग धर्म है, कर्नाटक में जारी सर्वे के बीच सिद्धारमैया का बड़ा बयान

संक्षेप: यह बयान लिंगायत समुदाय के भीतर मौजूद भ्रम के बीच आया है, जो इस बात को लेकर विभाजित है कि मौजूदा सामाजिक-शैक्षिक सर्वे में खुद को एक अलग धर्म के रूप में दर्ज करना चाहिए या हिंदू धर्म के तहत एक जाति के रूप में।

Mon, 6 Oct 2025 08:05 AMNiteesh Kumar लाइव हिन्दुस्तान
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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने लिंगायत को अलग धर्म बताया है। यह बयान विपक्ष के उन आरोपों को फिर से हवा दे सकता है कि वे वीरशैव-लिंगायत समुदाय को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं। लिंगायत सीयर्स एसोसिएशन की ओर से आयोजित बासव सांस्कृतिक अभियान 2025 के समापन समारोह में बोलते हुए सीएम ने यह बात कही। सिद्धारमैया ने कहा, 'जाति व्यवस्था हमारे समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी है। इस जाति व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए बासवन्ना ने एक अलग धर्म की शुरुआत की।'

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यह बयान लिंगायत समुदाय के भीतर मौजूद भ्रम के बीच आया है, जो इस बात को लेकर विभाजित है कि मौजूदा सामाजिक-शैक्षिक सर्वे में खुद को एक अलग धर्म के रूप में दर्ज करना चाहिए या हिंदू धर्म के तहत एक जाति के रूप में। राज्य में विपक्षी बीजेपी वीरशैव-लिंगायतों से आग्रह कर रही है कि वे खुद को एक जाति के रूप में पहचानें और राज्य में हिंदू समुदाय को मजबूत करें। वहीं, कांग्रेस नेतृत्व इस समुदाय को एक अलग धर्म के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है।

'मैं शूद्र हूं और मुझे...'

सीएम सिद्धारमैया ने कहा कि वे लिंगायत सम्मेलन में कई मुद्दों पर ज्यादा बात नहीं करना चाहते क्योंकि वे जो भी कहते हैं, वह जल्द ही विवाद में बदल जाता है। अपने भाषण में जाति व्यवस्था पर हमला करते हुए सिद्धारमैया ने कहा, 'मैं चातुर्वर्ण्य व्यवस्था के तहत शूद्र हूं। केवल इसलिए कि मैं शूद्र हूं, मुझे शिक्षा और समानता के अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता। जाति किसी को बड़ा या प्रसिद्ध नहीं बनाती। ज्ञान किसी की संपत्ति नहीं है और इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता।'

लोहिया को भी किया याद

सिद्धारमैया ने निचली जातियों और बासवन्ना के सिद्धांतों का पालन करने वाले सभी लोगों से देश में जातिविहीन समाज सुनिश्चित करने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, 'राम मनोहर लोहिया ने एक बार कहा था कि अगड़ी जातियों की रैलियां जाति को मजबूत करने का प्रयास हैं। लेकिन पिछड़ी जातियों और दबे-कुचले लोगों की रैलियां मजबूती नहीं, बल्कि समानता की मांग की ओर एक रैली हैं। अगर हम एक समान और मानवीय समाज चाहते हैं तो हमें इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एकजुट होना होगा।'

Niteesh Kumar

लेखक के बारे में

Niteesh Kumar
नीतीश 7 साल से अधिक समय से मीडिया इंडस्ट्री में एक्टिव हैं। जनसत्ता डिजिटल से बतौर कंटेंट प्रोड्यूसर शुरुआत हुई। लाइव हिन्दुस्तान से जुड़ने से पहले टीवी9 भारतवर्ष और दैनिक भास्कर डिजिटल में भी काम कर चुके हैं। खबरें लिखने के साथ ग्राउंड रिपोर्टिंग का शौक है। लाइव हिन्दुस्तान यूट्यूब चैनल के लिए लोकसभा चुनाव 2024 की कवरेज कर चुके हैं। पत्रकारिता का पढ़ाई IIMC, दिल्ली (2016-17 बैच) से हुई। इससे पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी के महाराजा अग्रसेन कॉलेज से ग्रैजुएशन किया। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के रहने वाले हैं। राजनीति, खेल के साथ सिनेमा में भी दिलचस्पी रखते हैं। और पढ़ें
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