
सेना को 'डिजिटल तलवार' की तलाश, साइबर और इंफॉर्मेशन वॉर से निपटने का प्लान रेडी
संक्षेप: ऑपरेशन सिंदूर से पहले पाकिस्तान ने साइबर और इंफॉर्मेशन वॉर के जरिए भारतीय सेना को निशाना बनाया। हजारों फर्जी तस्वीरें और वीडियो वायरल किए गए। साथ ही सुरक्षित नेटवर्क में घुसपैठ की कोशिशें की हुईं।
सेना साइबर और इंफॉर्मेशन वॉर के बढ़ते खतरों से निपटने पर काम कर रही है। इसके लिए स्वदेशी तकनीकी की भी तलाश जारी है। इसमें डीप फेक डिटेक्शन सॉफ्टवेयर, साइबर रेंज के जरिए सैनिकों को ट्रेनिंग और मैन-पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक युद्ध उपकरण शामिल हैं। सुरक्षा बलों का लक्ष्य ऐसी तकनीक हासिल करना है जो संवेदनशील जानकारी को सुरक्षित रखे। इसके लिए डीप फेक डिटेक्शन सॉफ्टवेयर की मांग की जा रही है, जो लगभग रीयल-टाइम में 100% सटीक जानकारी दे सकता है। यह एक तरह की ‘डिजिटल तलवार’ होगी।

ऑपरेशन सिंदूर से पहले पाकिस्तान ने साइबर और इंफॉर्मेशन वॉर के जरिए भारतीय सेना को निशाना बनाया। हजारों फर्जी तस्वीरें और वीडियो वायरल किए गए। साथ ही सुरक्षित नेटवर्क में घुसपैठ की कोशिशें की हुईं। सेना का कहना है कि नया सॉफ्टवेयर भविष्य के लिए तैयार होना चाहिए, क्योंकि डीप फेक बनाने के नए तरीके सामने आ रहे हैं। इसके लिए साइबर रेंज की स्थापना भी जरूरी है, जो सैनिकों को आक्रामक और रक्षात्मक साइबर रणनीतियों की ट्रेनिंग दे।
किस तरह की आधुनिक तकनीक की जरूरत
सशस्त्र बलों की साइबर और सूचना युद्ध रणनीति को मजबूत करने के लिए 20 साइबर रेंज लाइसेंस की जरूरत है, जो प्रत्येक 200 यूजर्स को मेल सर्वर और वॉयस ओवर इंटरनेट जैसे हमलों व बचाव का प्रशिक्षण दे सके। अंतरिक्ष में साइबर सुरक्षा के लिए उपग्रहों में क्वांटम-एन्क्रिप्टेड डाउनलिंक, एआई-संचालित मिशन और ऑनबोर्ड साइबर डिफेंस सिस्टम चाहिए। युद्ध के दौरान सुरक्षित बातचीत के लिए हजारों सॉफ्टवेयर-डिफाइंड रेडियो की जरूरत होगी, जो डेटा साझा कर सकें। दुश्मन के ड्रोन, रेडियो लिंक और जीपीएस सिग्नल को जाम करने या भटकाने के लिए मैन-पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक काउंटरमेजर किट की भी मांग रखी गई है।





