
मैं तो शॉल की दुकान खोल लूं; अंतरिक्ष से लौटे ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने ऐसा क्यों कहा
संक्षेप: शुभांशु शुक्ला हाल ही में उस ऐतिहासिक दल का हिस्सा रहे, जिसने भारत की ओर से अंतरिक्ष यात्रा की। उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष से धरती को देखने का अनुभव शब्दों में बयां करना मुश्किल है।
दिल्ली में गुरुवार को आयोजित एक कार्यक्रम में भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन और अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला का सम्मान किया गया। उन्हें पारंपरिक तरीके से शॉल ओढ़ाकर स्वागत किया गया। इसी मौके पर उन्होंने अंतरिक्ष से वापसी के बाद के अपने अनुभव साझा किए और श्रोताओं को अपने हल्के-फुल्के अंदाज से भी खूब गुदगुदाया। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि हाल ही में उन्हें कई सेमिनारों और व्याख्यानों में आमंत्रित किया गया है।
उन्होंने कहा, “हर जगह लोग मुझे शॉल भेंट करते हैं। इतने शॉल जमा हो गए हैं कि कभी-कभी सोचता हूं कि दूसरी पारी में शॉल की दुकान खोल लूं।” उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा और उनकी इस बात पर सभागार तालियों और ठहाकों से गूंज उठा।
कार्यक्रम में मौजूद लोगों को शुक्ला ने अंतरिक्ष से कैद किए गए एक अद्भुत वीडियो भी दिखाया, जिसमें सूर्योदय का दृश्य था। उन्होंने कहा, “कल्पना कीजिए, अंतरिक्ष में रहकर आप ऐसा सूर्योदय दिन में 16 बार देख सकते हैं। और फिर जब धरती पर लौटते हैं, तो आपको शॉल भी मिलते हैं।” उनकी यह बात सुनकर दर्शकों में फिर से हंसी का माहौल बन गया।
शुभांशु शुक्ला हाल ही में उस ऐतिहासिक दल का हिस्सा रहे, जिसने भारत की ओर से अंतरिक्ष यात्रा की। उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष से धरती को देखने का अनुभव शब्दों में बयां करना मुश्किल है। सूर्योदय और सूर्यास्त के मनमोहक दृश्य, भारहीनता की स्थिति और अंतरिक्ष स्टेशन पर बिताया गया समय उनकी जिंदगी का अनमोल हिस्सा है।
कार्यक्रम में मौजूद युवाओं और विद्यार्थियों ने शुक्ला से कई सवाल पूछे। उन्होंने धैर्यपूर्वक हर सवाल का जवाब दिया और कहा कि अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति अद्वितीय है। उन्होंने युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा, “आप जो सपना देखते हैं, उसे पाने के लिए मेहनत और अनुशासन ही सबसे बड़ा मंत्र है।”
शुक्ला ने कहा कि उन्हें देशभर से जो सम्मान और प्यार मिल रहा है, वह उनके लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं। उन्होंने हंसते हुए जोड़ा कि “शॉल का ढेर इस बात का सबूत है कि लोग दिल से उन्हें अपना रहे हैं।”





