
पति ने कर्ज चुकाने के लिए पैसे मांगे तो यह उत्पीड़न कैसे? महिला की याचिका हाईकोर्ट ने की खारिज
संक्षेप: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने इस दौरान निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। अदालत से कहा कि फैसले को पलटने के लिए याचिकाकर्ता के पास कोई ठोस सबूत नहीं है और आपराधिक मामलों में सिर्फ संदेह के आधार पर फैसले नहीं लिए जा सकते।
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि पति द्वारा पत्नी से पैसे की मांग महज करना क्रूरता नहीं है। कोर्ट ने इस दौरान कहा है कि पति द्वारा कर्ज चुकाने के लिए पैसे मांगने को धारा 498A के तहत उत्पीड़न का नाम नहीं दिया जा सकता। साथ ही जस्टिस टी. मल्लिकार्जुन राव की पीठ ने 19 सितंबर को कट्टाबथुनी सीतामहालक्ष्मी द्वारा पति नंदम वेंकट मल्लेश्वर राव के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी।
हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि उत्पीड़न के आरोपों के समर्थन में स्पष्ट और ठोस सबूत होने चाहिए, ना कि सामान्य आरोप। बता दें कि शख्स ने पत्नी ने उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत उत्पीड़न का आरोप लगाया था। याचिका में 2010 के निचली अदालत के उस फैसले को पलटने की मांग की गई थी जिसमें उन्हें शारीरिक और मानसिक क्रूरता के आरोपों से बरी कर दिया गया था।
सीतामहालक्ष्मी ने कोर्ट में कहा कि उनके पति शराब और जुए के आदी था, उनका वेतन छीन लेता था। उसने यह भी आरोप लगाया कि उसने एक बार चाकू की नोक पर उसे ब्लैंक चेक पर हस्ताक्षर करने के लिए धमकाया और बाद में कर्ज़ चुकाने के लिए 25 लाख रुपये की मांग की। महिला ने पति पर बच्चों के अपहरण कर आरोप भी लगाए।
निचली अदालत के फैसले को पलटने की अपील पर हाईकोर्ट ने कहा, “ वित्तीय मांगें घर में तनाव पैदा कर सकती हैं लेकिन कर्ज चुकाने के लिए पति द्वारा पैसे की मांग करना, अपने आप में, कानून के तहत उत्पीड़न नहीं माना जाता है।" कोर्ट ने यह भी कहा कि आपराधिक मामलों में सिर्फ शक के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती है, बल्कि ठोस सबूत होने चाहिए। कोर्ट ने कहा, “संदेह चाहे कितना भी प्रबल क्यों न हो, सबूतों की जगह नहीं ले सकता।”





