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ईश्वर दुश्मनी के साधन हैं क्या? अधिकतर याचिकाएं आस्था से नहीं, अहंकार से प्रेरित: HC ने क्यों कहा ऐसा

ईश्वर दुश्मनी के साधन हैं क्या? अधिकतर याचिकाएं आस्था से नहीं, अहंकार से प्रेरित: HC ने क्यों कहा ऐसा

संक्षेप: हाई कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि उत्सवों के दौरान स्थापित की गई मूर्तियों से सार्वजनिक अशांति या पर्यावरण विनाश न हो। कोर्ट ने कहा कि ईश्वर की भक्ति से मनुष्य को अशांति या प्रकृति का विनाश नहीं होने दिया जा सकता।

Thu, 28 Aug 2025 01:33 PMPramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, चेन्नई
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श्वर के नाम पर होने वाली राजनीति पर मद्रास हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि ईश्वर प्रतिद्वंद्विता के साधन नहीं, बल्कि एकता, शांति और आध्यात्मिक उत्थान के प्रतीक हैं। अदालत ने विनायक चतुर्थी के दौरान भगवान गणेश की मूर्ति स्थापना के लिए कई याचिकाएँ दायर करने पर ये टिप्पणी की और कहा कि दायर कई याचिकाएं आस्था से नहीं, बल्कि अहंकार से प्रेरित हैं।

जस्टिस बी. पुगलेंधी की पीठ ने कहा, "यह अदालत कुछ मामलों में अंतर्निहित प्रेरणाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकती। वर्तमान में दायर अधिकांश याचिकाएं वास्तविक धार्मिक मंशा की बजाय अहंकार के टकराव और आर्थिक प्रभाव जमाने की इच्छा से प्रेरित प्रतीत होते हैं। यह न्यायालय व्यक्तिगत बदला लेने या सामाजिक प्रभुत्व प्रदर्शित करने के लिए ईश्वर को शामिल करने की प्रथा की कड़ी निंदा करता है। ईश्वर प्रतिद्वंद्विता के साधन नहीं हैं; वह एकता, शांति और आध्यात्मिक उत्थान के प्रतीक है।"

गली-मोहल्लों में मंदिर तो उपेक्षित, फिर ये होड़ क्यों?

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट ने इस तथ्य पर भी संज्ञान लिया कि जहाँ गली-मोहल्लों में स्थित मंदिर साल भर उपेक्षित रहते हैं, वहीं त्योहारों के दौरान विशाल मूर्तियाँ स्थापित करने के व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं। कोर्ट ने कहा, “यह विरोधाभास भक्तों को आत्मचिंतन करने के लिए प्रेरित करता है। सच्ची भक्ति भव्यता में नहीं, बल्कि पूजा स्थलों के प्रति निरंतर श्रद्धा और रखरखाव में निहित है।”

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हाई कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि उत्सवों के दौरान स्थापित की गई मूर्तियों से सार्वजनिक अशांति या पर्यावरण विनाश न हो। कोर्ट ने कहा, "ईश्वर की भक्ति से मनुष्य को अशांति या प्रकृति का विनाश नहीं होने दिया जा सकता। सच्ची पूजा सद्भाव में निहित है - शांति और व्यवस्था के माध्यम से समुदायों के बीच सद्भाव, और पर्यावरण संरक्षण के माध्यम से सृष्टि के साथ सद्भाव।"

अंतिम समय में आवेदन देने पर अचरज

कोर्ट ने इस बात पर भी अचरज जताया कि कई याचिकाकर्ताओं ने मूर्तियाँ स्थापित करने के लिए अंतिम समय में आवेदन दिए थे, जिससे अधिकारियों के पास यह सुनिश्चित करने के लिए बहुत कम समय बचा कि अगर अनुमति दी जाती है तो पर्यावरण और सार्वजनिक व्यवस्था की आवश्यकताओं का पालन किया जा सकेगा या नहीं। न्यायालय ने कहा, “अंतिम समय में प्राप्त आवेदनों पर विचार नहीं किया जा सकता, खासकर जब उनमें सार्वजनिक स्थापनाएँ शामिल हों जिनके लिए कई विभागों के बीच समन्वय की आवश्यकता हो।” हालांकि, कोर्ट ने ऐसे आवेदनों पर निर्धारित तरीके से कार्रवाई न करने या चुनिंदा अनुमतियाँ देने के लिए अधिकारियों की आलोचना भी की।

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मूर्ति स्थापना की होड़ के पीछे क्या वजह?

दरअसल, तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए गणेश प्रतिमाओं की स्थापना कर धार्मिक गोलबंदी करने का इसे एक साधन बनाया जा रहा था और इसी कड़ी में कई आयोजकों ने चेन्नई में पंडाल निर्माण और मूर्ति स्थापना के लिए चेन्नई पुलिस से इजाजत मांगी थी लेकिन कई आवेदनों को पुलिस ने खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ कई संगठन हाई कोर्ट पहंचे थे। कोर्ट ने सभी याचिकाओं पर एक-एक कर फैसला लेने का आदेश दिया है और अंतिम क्षण में दिए आवेदनों को खारिज कर दिया है।

Pramod Praveen

लेखक के बारे में

Pramod Praveen
भूगोल में पीएचडी और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर उपाधि धारक। ईटीवी से बतौर प्रशिक्षु पत्रकार पत्रकारिता करियर की शुरुआत। कई हिंदी न्यूज़ चैनलों (इंडिया न्यूज, फोकस टीवी, साधना न्यूज) की लॉन्चिंग टीम का सदस्य और बतौर प्रोड्यूसर, सीनियर प्रोड्यूसर के रूप में काम करने के बाद डिजिटल पत्रकारिता में एक दशक से लंबे समय का कार्यानुभव। जनसत्ता, एनडीटीवी के बाद संप्रति हिन्दुस्तान लाइव में कार्यरत। समसामयिक घटनाओं और राजनीतिक जगत के अंदर की खबरों पर चिंतन-मंथन और लेखन समेत कुल डेढ़ दशक की पत्रकारिता में बहुआयामी भूमिका। कई संस्थानों में सियासी किस्सों का स्तंभकार और संपादन। और पढ़ें
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