अल्पसंख्यकों पर सिद्धारमैया का एक और दांव, पहली बार कराने जा रहे ऐसा सर्वे; पूर्व देवदासियों पर भी नजर
सिद्धारमैया ने अल्पसंख्यकों के लैंगिक भेदभाव का पता लगाने के लिए यह सर्वे शुरू कराने का फैसला किया है, जिसे अल्पसंख्यक महिलाओं को रिझाने का एक सियासी दांव समझा जा रहा है। इससे पहले मुस्लिमों को 4% आरक्षण का बिल पारित कराया था।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अस्पसंख्यकों पर नया दांव चलते हुए गुरुवार को पहली बार लैंगिक अल्पसंख्यकों के शुरुआती सर्वेक्षण की शुरुआत की है। ये सर्वे राज्य के सभी जिलों में होंगे। इसी सर्वे के साथ-साथ पूर्व देवदासियों का पुनः सर्वेक्षण भी शुरू किया गया है। हालांकि, पूर्व देवदासियों का सर्वे सिर्फ 15 जिलों में होगा। पहली बार हो रहे इस सर्वे में विभागीय अधिकारियों के साथ-साथ, ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्य भी भाग लेंगे। यह सर्वेक्षण 15 सितंबर से शुरू होगा और 45 दिनों तक चलेगा।
महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी हेब्बालकर के कार्यालय द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि ये सर्वेक्षण उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के बारे में सटीक जानकारी इकट्ठा करने और सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक पुनर्वास प्रदान करने के लिए किए जाएँगे। जिन जिलों में पूर्व देवदासियों के सर्वे कराए जाएंगे, उनमें बेलगावी, विजयपुरा, बागलकोट, रायचूर, कोप्पल, धारवाड़, हावेरी, गडग, कलबुर्गी, यादगीर, चित्रदुर्ग, दावणगिरि, शिवमोग्गा, बल्लारी और विजयनगर शामिल हैं।
सरकार ने दो ऐप डेवलप करवाए
गुरुवार को जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि कर्नाटक राज्य महिला विकास निगम द्वारा किए जा रहे दोनों सर्वेक्षण 15 सितंबर को शुरू होंगे और 45 कार्य दिवसों के भीतर पूरे हो जाएँगे। इसमें कहा गया है कि सर्वेक्षण कराने की तैयारी का काम पहले ही पूरा हो चुका है। इस प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए, सरकार ने दो ऐप डेवलप करवाए हैं और एक हेल्पलाइन नंबर (1800 599 2025) भी शुरू की है।
कहां होंगे ये सर्वे?
विज्ञप्ति में कहा गया है कि लैंगिक अल्पसंख्यकों का सर्वेक्षण राज्य भर के सभी तालुका सरकारी अस्पतालों और जिला सरकारी अस्पतालों में किया जाएगा, जबकि पूर्व देवदासी महिलाओं का पुनः सर्वेक्षण 15 जिलों के तालुका बाल विकास परियोजना अधिकारियों के कार्यालयों में किया जाएगा। विज्ञप्ति में कहा गया है कि देवदासी पुनर्वास परियोजना इकाई के अधिकारी स्तर के कर्मचारी पूर्व देवदासी महिलाओं का सर्वेक्षण करेंगे।
लैंगिक सर्वेक्षण क्या और क्यों जरूरी?
बता दें कि लैंगिक सर्वेक्षण वह प्रक्रिया है जिसमें किसी संगठन, समाज या कार्यस्थल में विभिन्न लिंगों (पुरुष, महिला, ट्रांसजेंडर, नॉन-बाइनरी आदि) के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है उस बारे में जानकारी इकट्ठा की जाती है। इसके अलावा भेदभाव, अवसर, वेतन और अन्य जनसांख्यिकीय पहलुओं पर जानकारी इकट्ठा की जाती है। ये सर्वेक्षण लैंगिक असमानताओं की पहचान करने, पूर्वाग्रहों को उजागर करने और अधिक न्यायसंगत व समतापूर्ण कार्यस्थल बनाने में मदद करते हैं। सिद्धारमैया सरकार ने अल्पसंख्यकों के लैंगिक भेदभाव का पता लगाने के लिए यह सर्वे शुरू कराने का फैसला किया है, जिसे अल्पसंख्यक महिलाओं को रिझाने का एक सियासी दांव समझा जा रहा है। इससे पहले सिद्धरमैया सरकार ने सरकारी ठेकों में मुस्लिमों को 4 फीसदी आरक्षण देने का बिल पारित करवाया था।




