Hindi NewsIndia NewsCourts are not meant to surprise the public why Supreme Court gave advice to courts
अदालतें जनता को हैरान करने के लिए नहीं हैं, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों दी नसीहत

अदालतें जनता को हैरान करने के लिए नहीं हैं, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों दी नसीहत

संक्षेप: सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को नसीहत देते हुए कहा है कि ऐसे फैसले नहीं सुनाने चाहिए जिससे कि जनता हैरान रह जाए। देवस्वम बोर्ड और चिन्मय ट्रस्ट के बीच विवाद मामले में कोर्ट ने यह टिप्पणी की है।

Tue, 7 Oct 2025 12:18 PMAnkit Ojha लाइव हिन्दुस्तान
share Share
Follow Us on

सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को नसीहत देते हुए कहा है कि वे ऐसे आदेश ना पारित करें जो कि जनता को हैरान करने वाले हों और वादियों के खिलाफ दलीलों से परे हों। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि कोर्ट ऐसा फैसला ना सुनाएं जिससे याचिकाकर्ता को लगने लगे कि कोर्ट आकर ही उसने गलती कर दी। उन्होंने कहा कि लोग न्याय के लिए कोर्ट का रुख करते हैं। अदालतों को भी याचिका के दायरे में ही फैसला सुनाना चाहिए। याचिकाकर्ता को या तो राहत दी जा सकती है या फिर राहत से इनकार किया जा सकता है। वहीं कई बार कोर्ट हैरान करने वाला फैसला सुना देते हैं। ऐसे में याचिकाकर्ता ठगा हुआ और अपमानित महसूस करता है।

LiveHindustan को अपना पसंदीदा Google न्यूज़ सोर्स बनाएं – यहां क्लिक करें।

कोच्चि देवस्वम बोर्ड और चिन्मय मिशन एजुकेशनल ऐंड कल्चरल ट्रस्ट के बीच जमीन के इस्तेमाल को लेकर लाइसेंस फीस के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह बात कही है। बेंच ने केरल हाई कोर्ट के दोनों निर्देशों को खारिज कर दिया है। दरअसल 1974 में ट्रस्ट को शादी, सांस्कृतिक और धार्मिकत उद्देश्य से हॉल बनाने के लिए 13.5 सेंट भूमि आवंटित की गई थी। शर्त यह थी कि यह हॉल देवस्वम के कार्यक्रमों और यात्रियों के लिए फ्री उपलब्ध होगा।

1977में इस भूमि के लिए लाइसेंस फीस केवल 227 रुपये निर्धारित की गई थी। वहीं 2014 में इसे बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये सालाना कर दिया गया। इसके अलावा ट्रस्ट से 20 लाख रुपये का एरियर भी मांगा गया। इसके बाद राहत के लिए ट्रस्ट केरल हाई कोर्ट पहुंच गया। हाई कोर्ट ने बढ़ी हुई फीस को सही ठहराते हुए बोर्ड से फीस फिक्स करने को कहा। साथ ही कोर्ट ने भूमि आवंटन को लेकर विजिलेंस इन्क्वायरी का आदेश दे दिया। इसके बाद ट्रस्ट ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

ट्रस्ट ने अपनी याचिका में कहा कि हाई कोर्ट ने दायरे से बाहर ही फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रस्ट को राहत देते हुए कहा कि हाई कोर्ट के दोनों निर्देश स्कोप से बाहर हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाई कोर्ट को लाइसेंस फीस का पुनर्निर्धारण और जांच के आदेश नहीं देने चाहिए थे। ऐसे तो याचिकाकर्ता खुद ही हैरान रह गया कि क्या फैसला सुनाया गया है। SC ने कहा कि कुछ अपवाद केसों में कोर्ट अलग फैसला भी सुना सकते हैं लेकिन सामान्य केस में ऐसा नहीं होना चाहिए। बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन किया है। ऐसे में फीस के पुनर्निर्धारण और जांच के आदेश पर रोक लगा दी गई है।

Ankit Ojha

लेखक के बारे में

Ankit Ojha
अंकित ओझा पिछले 8 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। अंकित ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया से स्नातक के बाद IIMC नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा किया है। इसके बाद कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की है। राजनीति, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय डेस्क पर कार्य करने का उनके पास अनुभव है। इसके अलावा बिजनेस और अन्य क्षेत्रों की भी समझ रखते हैं। हिंदी, अंग्रेजी के साथ ही पंजाबी और उर्दू का भी ज्ञान है। डिजिटल के साथ ही रेडियो और टीवी के लिए भी काम कर चुके हैं। और पढ़ें
इंडिया न्यूज़ , विधानसभा चुनाव और आज का मौसम से जुड़ी ताजा खबरें हिंदी में | लेटेस्ट Hindi News, बॉलीवुड न्यूज , बिजनेस न्यूज , क्रिकेट न्यूज पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।