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बुद्धदेब भट्टाचार्य के दौर का कौन सा विवाद था, जिससे खत्म हुआ 34 साल का वामपंथी शासन

  • पिछले कई दिनों से बीमार पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ने गुरूवार को अंतिम सांस ली। 2000 से 2011 तक पश्चिम बंगाल के 7वें मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करते हुए उनका राजनीतिक जीवन पांच दशक से अधिक समय का था। सिंगूर का विवाद उनके शासन के अंत का कारण बना।

Jagriti Kumari लाइव हिन्दुस्तानThu, 8 Aug 2024 07:42 AM
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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने अपने दिग्गज नेता और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने गुरुवार को कोलकाता के बालीगंज स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। वह पिछले कई दिनों से सांस लेने में तकलीफ और बुखार से जूझ रहे थे। उनके बेटे सुचेतन भट्टाचार्य ने उनकी मौत की पुष्टि की है। पांच दशक से भी अधिक के राजनीतिक करियर के दौरान बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कई उतार चढ़ाव भी देखे। कौन थे बुद्धदेव भट्टाचार्जी जिन्होंने दुनिया के किसी भी क्षेत्र में सबसे ज्यादा दिनों तक चलने वाली वामपंथी सरकार बनाई थी?

बुद्धदेव भट्टाचार्जी एक भारतीय कम्युनिस्ट राजनेता और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पोलित ब्यूरो के पूर्व सदस्य थे। 2000 से 2011 तक पश्चिम बंगाल के 7वें मुख्यमंत्री रहे। वे भारत के सबसे लंबे समय तक पद पर रहने वाले मुख्यमंत्रियों में से एक भी हैं। भट्टाचार्य पश्चिम बंगाल के पहले मुख्यमंत्री चुने गए थे। उन्होंने 2001 और 2006 में सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे को लगातार दो चुनावों में जीत दिलाई। 2001 में वाम मोर्चे ने 294 विधानसभा सीटों में से 199 सीटें हासिल की। इसके बाद 2006 में उनकी पार्टी को 235 सीटों पर जीत मिली।

उदार नीतियां

वामपंथी होने के बावजूद भट्टाचार्य को व्यापार के संबंध में उनकी अपेक्षाकृत उदार नीतियों के लिए जाना जाता था। यह सीपीआई (एम) की पारंपरिक रूप से पूंजीवाद विरोधी नीतियों के खिलाफ थी। मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्हें भूमि अधिग्रहण और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा के आरोपों पर कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था। इन विवादों की वजह से पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे के 34 साल के शासन का अंत हो गया था। यह दुनिया की सबसे लंबे समय तक लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार थी।

बुद्धदेव भट्टाचार्य ने उद्योग को दिया बढ़ावा

अपने कार्यकाल के दौरान भट्टाचार्य ने निवेश आकर्षित करने और रोजगार पैदा करने के लिए पश्चिम बंगाल में औद्योगिकीकरण अभियान शुरू की। उनकी सरकार ने आईटी और सर्विस सेक्टर में मौके देखे। उन्होंने टाटा नैनो को कोलकाता के पास एक छोटे से गांव सिंगुर में दुनिया की सबसे सस्ती कार की फैक्ट्री स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया लेकिन बाद में यही फैसला उनके शासन के अंत का कारण बन गया। इसके अलावा उन्होंने जिंदल समूह की पश्चिम मिदनापुर जिले के सालबोनी में देश के सबसे बड़े स्टील प्लांट बनाने की योजना और नंदीग्राम में एक केमिकल फैक्ट्री बनाने की योजना को भी मंजूरी दी थी।

सिंगूर विवाद क्या था

34 सालों के वामपंथी शासन के पतन का कारण सिंगूर से शुरू हुआ विवाद बना। सिंगूर हुगली विधानसभा के सात विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। 2006 में बुद्धदेव भट्टाचार्य की सरकार ने सिंगूर में टाटा मोटर्स को नैनो कार बनाने का आमंत्रण दिया। इसके लिए उन्होंने जमीन अधिग्रहण शुरू कर दिया। सरकार ने लगभग 997 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। हालांकि सिंगूर के किसान अपनी उपजाऊ जमीन देने को बिलकुल तैयार नहीं थे और उन्होंने अपनी जमीन देने से इनकार कर दिया। इस विवाद से उपजे विरोध प्रदर्शन ने जल्द ही आंदोलन का रूप ले लिया। पुलिस एक्शन में 14 लोगों की मौत के बाद लोगों का गुस्सा और भड़क गया। इस आंदोलन में नेतृत्व करने के लिए आगे आईं ममता बनर्जी जो बाद में मुख्यमंत्री बनीं। बाद में यह फैक्ट्री गुजरात में लगी। 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा अधिगृहीत 997 एकड़ जमीन मालिकों को लौटाने का आदेश दिया।

बुद्धदेव भट्टाचार्य के शासन के पतन की कहानी

सिंगूर विवाद की वजह से 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी और उसके सहयोगियों को काफ़ी नुकसान उठाना पड़ा। 2011 के राज्य विधानसभा चुनाव में भट्टाचार्य को अपनी ही सरकार के पूर्व मुख्य सचिव और तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार मनीष गुप्ता ने 16,684 मतों से हरा दिया। वे 1967 में प्रफुल्ल चंद्र सेन के बाद अपनी ही सीट से चुनाव हारने वाले दूसरे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने। वाम मोर्चे को बड़ी हार का सामना करना पड़ा और उन्हें 294 में से केवल 62 सीटें ही मिलीं। भट्टाचार्य ने 13 मई 2011 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया।

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