नीतीश कुमार का आखिरी दांव, मुफ्त की योजनाओं का जोर; बिहार चुनाव के ये 4 बड़े फैक्टर
संक्षेप: वीआईपी नेता मुकेश सहनी, जो 2020 में एनडीए के साथ थे और चार सीटें जीते थे, अब इंडिया गठबंधन के साथ हैं। सीट बंटवारे पर बातचीत जारी है। इंडिया गठबंधन मिथिलांचल, सीमांचल और चंपारण में सहनी की निषाद समुदाय की ताकत का लाभ उठाने की उम्मीद कर रहा है।

बिहार में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। दोनों ही गठबंधनों में सीट शेयरिंग को अंतिम रूप दिया जा रहा है। चुनाव की तारीखों की घोषणा करते हिए मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने सोमवार को 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव को "सभी चुनावों की मां" करार देते हुए इसे कई मायनों में अनूठा बताया। यह चुनाव न केवल बिहार की राजनीति के लिए निर्णायक होगा, बल्कि कई बड़े नेताओं और गठबंधनों की साख का भी इम्तिहान लेगा। आज हम उन प्रमुख कारकों पर नजर डालते हैं जो इस चुनाव को आकार देंगे।
नीतीश का आखिरी दांव: पिछले दो दशकों से बिहार की सियासत में नीतीश कुमार केंद्रीय भूमिका में रहे हैं। यह चुनाव संभवतः उनका आखिरी बड़ा चुनाव होगा, जिसमें उनकी महिलाओं और अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) मतदाताओं के बीच लोकप्रियता एनडीए के लिए कितना असर दिखाएगी, यह देखना होगा। बार-बार गठबंधन बदलने के बावजूद नीतीश हर समीकरण के केंद्र में रहे हैं। हालांकि, इस बार उनके सामने अपने विधायकों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर, मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप और तेजस्वी यादव व फिर से उभरने की कोशिश कर रही कांग्रेस की मजबूत चुनौती है।
चिराग और सहनी की अहम भूमिका: 2020 के चुनाव में लोजपा नेता चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर जेडीयू के खिलाफ चुनाव लड़ा था, जिसके कारण जेडीयू की सीटें 43 तक सिमट गई थीं। इस बार एनडीए को राहत है, क्योंकि चिराग की पार्टी लोजपा (राम विलास) गठबंधन में शामिल है और संयुक्त रूप से चुनाव लड़ेगी। एनडीए चिराग के 5% पासवान वोट बैंक पर भरोसा कर रहा है, जो निर्णायक साबित हो सकता है।
वहीं, वीआईपी नेता मुकेश सहनी, जो 2020 में एनडीए के साथ थे और चार सीटें जीते थे, अब इंडिया गठबंधन के साथ हैं। सीट बंटवारे पर बातचीत जारी है। इंडिया गठबंधन मिथिलांचल, सीमांचल और चंपारण में सहनी की निषाद समुदाय की ताकत का लाभ उठाने की उम्मीद कर रहा है।
मुफ्त की योजनाओं का जोर: यह बिहार का पहला ऐसा चुनाव है, जिसमें नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने मुफ्त योजनाओं और नकद हस्तांतरण पर जोर दिया है। यह नीतीश के सामान्य रणनीति से अलग है, जो आमतौर पर चुनाव बाद वादों को पूरा करने पर केंद्रित रहती थी। सोमवार को, आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले, नीतीश ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 21 लाख महिलाओं को 10,000 रुपये हस्तांतरित किए।
सोमवार तक सरकार ने 1.21 करोड़ महिलाओं को 10,000 रुपये प्रत्येक के हिसाब से कुल 12,100 करोड़ रुपये हस्तांतरित किए। 29 लाख अन्य लाभार्थियों के लिए शेड्यूल जारी किया गया है, हालांकि अब आगे के हस्तांतरण के लिए चुनाव आयोग की मंजूरी चाहिए। पेंशन को 400 रुपये से बढ़ाकर 1,100 रुपये प्रतिमाह किया गया है, और कई सरकारी कर्मचारियों के मानदेय में वृद्धि हुई है। लगभग 16 लाख श्रम कार्ड धारकों को वर्दी के लिए 5,000 रुपये और 2 लाख स्नातकों को 1,000 रुपये की पहली किस्त दी गई है।
प्रशांत किशोर का नया दांव: कई सालों बाद बिहार में एक नया चेहरा चर्चा में है। चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अपनी नई पार्टी 'जन सुराज' लॉन्च की है और पिछले तीन साल से राज्य में प्रचार कर रहे हैं। उनके भ्रष्टाचार के आरोप पूरे राज्य में चर्चा का विषय बने हुए हैं, जिससे सत्तारूढ़ और विपक्षी गठबंधन दोनों सतर्क हो गए हैं। हालांकि, यह देखना बाकी है कि क्या वह इन चर्चाओं को वोटों में बदल पाएंगे।
2025 का बिहार विधानसभा चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक होने जा रहा है। नीतीश कुमार की साख, चिराग और सहनी जैसे नेताओं की भूमिका, मुफ्त योजनाओं का जलवा और प्रशांत किशोर जैसे नए खिलाड़ी की एंट्री इस चुनाव को रोमांचक बना रही है। अब यह जनता पर निर्भर है कि वह किसे सत्ता की चाबी सौंपती है।





