
नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों में US का रोल, एक्सपर्ट ने बताया- भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता
संक्षेप: जियोपॉलिटिक्स के एक्सपर्ट पवनीत सिंह ने कहा कि नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों में ऐसा हो सकता है। उन्होंने ANI के साथ पॉडकास्ट में कहा कि अकसर सड़कों पर होने वाले ऐसे आंदोलन ऑर्गेनिक नहीं होते। इनके पीछे किसी शक्ति का हाथ होता है और अमेरिका की ऐसी चीजों में गहरी भूमिका होती है।
नेपाल में जिस तरह 48 घंटों के अंदर हाहाकार मच गया और खूनी हिंसा के चलते पीएम केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। उससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या इसमें किसी विदेशी शक्ति का हाथ है। इससे पहले भारत के पड़ोसी देशों बांग्लादेश और श्रीलंका में भी ऐसा हो चुका है। इसे लेकर जियोपॉलिटिक्स के एक्सपर्ट पवनीत सिंह ने कहा कि नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों में ऐसा हो सकता है। उन्होंने ANI के साथ पॉडकास्ट में कहा कि अकसर सड़कों पर होने वाले ऐसे आंदोलन ऑर्गेनिक नहीं होते। इनके पीछे किसी शक्ति का हाथ होता है और अमेरिका की ऐसी चीजों में गहरी भूमिका होती है।

उन्होंने कहा कि अमेरिका की इसमें गहरी भूमिका होती है। नेपाल, बांग्लादेश जैसे देशों में इस तरह सड़कों पर आंदोलन कराए जा सकते हैं, लेकिन भारत जैसे देश में नेतृत्व नहीं बदला जा सकता। माना जाता है कि भारत की विविधता और एक बड़ा देश होने के चलते किसी एक नैरेटिव के आधार पर सत्ता को बिना कार्यकाल पूरा किए ही विदेशी ताकतों के शामिल होने से बदला नहीं दा सकती।
पवनीत सिंह ने कहा कि ऐसी स्थिति में अमेरिकी एजेंसियां सरकार को बदनाम करने की कोशिश करती हैं ताकि किसी तरह उनका इकबाल खत्म हो जाए। उन पर लोगों का भरोसा कम हो जाए। उनसे एक सवाल यह भी पूछा गया कि आखिर चीन का नेपाल में क्या हित हो सकता है। इस आंदोलन के बाद नेपाल को चीन कैसा देखना चाहता है। इस पर पवनीत सिंह कहा कि चीन की कोशिश है कि वहां फिर से राजशाही ना आने पाए। इसके अलावा वह किसी उभरते हुए युवा नेता को भी नहीं देखना चाहते।
पवनीत सिंह ने कहा कि चीन का हित इसी में है कि वहां कोई कम्युनिस्ट नेता रहे। अमेरिकी नेताओं के बयान को लेकर पवनीत सिंह ने कहा कि इस तरह से वे भऱोसा कमजोर रहे हैं। उन्हें याद रखना चाहिए कि भारत ना कभी भूलता है और ना फिर माफ करता है। ऐसे बयान वे दे रहे हैं, जिनकी भरपाई करने में दो दशक भी लग सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज अगर SCO में जाकर अमेरिका को संदेश दिया जा सकता है तो इसमें कुछ गलत नहीं है। यह तो अमेरिका को बताना ही चाहिए कि वही हमारी नीति तय करने वाला नहीं है। हम संप्रभु हैं और हम तय करेंगे कि मसले पर किसके साथ चलना है और क्या रिएक्शन देना है।





