टीन का सिपाही
बहुत समय पहले की बात है। एक नगर में एक बच्चा रहता था। उसने अपना जन्मदिन मनाया, तो बहुत से लोग आए। सभी कुछ न कुछ उपहार लेकर आए। एक मेहमान ने उसे उपहार में एक डिब्बा देते हुए कहा, “मुझे उम्मीद है...

बहुत समय पहले की बात है। एक नगर में एक बच्चा रहता था। उसने अपना जन्मदिन मनाया, तो बहुत से लोग आए। सभी कुछ न कुछ उपहार लेकर आए। एक मेहमान ने उसे उपहार में एक डिब्बा देते हुए कहा, “मुझे उम्मीद है कि तुम इन खिलौनों को अवश्य पसंद करोगे।”
रात को सभी लोग चले गए। बच्चे ने बेसब्री से डिब्बे को खोला। उसमें टीन के पचीस सिपाही थे। सब के सब टीन के टुकड़ों से बने थे, इसलिए एक से लगते थे। वे योद्धाओं की तरह तनकर खड़े थे। नीले और लाल रंग की वर्दियों में वे खूब जंच रहे थे। वे एक ही डिब्बे में रहते थे, पर आपस में कभी नहीं झगड़ते थे। उस बच्चे ने बड़े प्यार से सबको एक-एक करके बाहर निकाला और एक पंक्ति में खड़ा कर दिया।
अचानक बच्चे की नजर एक सैनिक पर अटक गई। वह औरों से कुछ अलग दिख रहा था। वास्तव में उसे बनाते समय खिलौने वाले को टीन की कमी पड़ गई थी। उसने जैसे-तैसे उसे बनाया। पर वह एक टांग वाला सिपाही ही बन पाया। फिर भी रोबीली वर्दी में वह खूब जंच रहा था।
उसी मेज पर और भी बहुत से खिलौने रखे थे। उनमें गत्ते का एक महल बहुत ही अद्भुत था। उस महल में छोटी-छोटी खिड़कियां थीं। महल के बाहर एक कतार से कई पेड़ लगे थे। वहीं एक शीशा रखा हुआ था। उस शीशे पर मोम की बतखें रखी थीं। शीशे में बतखें और पेड़ों की छाया दिखाई दे रही थी। इसलिए शीशा एक तालाब की तरह लग रहा था। एक सुंदर नर्तकी महल के खुले दरवाजे के पास खड़ी थी। उसके सुंदर कपड़ों पर एक रिबन में चमकीला पिन था। वह पिन हीरे की तरह चमक रहा था।
नर्तकी अपनी एड़ी पर खड़ी थी। नाचते समय उसका पैर इतनी ऊंचाई तक उठा हुआ था कि एक पैर वाले सिपाही को लगा कि वह भी उसी की तरह एक टांग वाली है। सैनिक ने सोचा, ‘काश, यह मेरी मित्र बन जाती! पर मैं जानता हूं, ऐसा कभी नहीं हो सकता। वह महल में रहती है, अच्छे कपड़े पहनती है और मैं रहता हूं एक डिब्बे में, वह भी अपने चौबीस भाइयों के साथ। भला वह मुझसे मित्रता क्यों करेगी?’ सोचते-सोचते वह एक डिब्बे के पीछे छिप गया। वहां से वह नर्तकी को आराम से देख सकता था।
सोते समय बच्चे ने सारे सैनिकों को डिब्बे में रख दिया। परंतु आड़ में होने के कारण एक टांग वाला सिपाही बाहर ही खड़ा रह गया। बाकी खिलौने भी वैसे ही बाहर पड़े रहे। धीरे-धीरे घर के सारे लोग सो गए।
सन्नाटा होते ही खिलौनों में जान आ गई। वे मस्ती में खेलने लगे। डिब्बे में बंद सिपाहियों ने शोर सुनकर बाहर आने का प्रयास किया, पर असफल रहे। इतना शोर हो गया कि कई चिड़ियां जागकर चहचहाने लगीं। इतना सब होने पर भी एक टांग वाला सिपाही चुप था। वह एकटक नर्तकी की ओर देख रहा था। यह देखकर उसे बड़ी खुशी हुई कि नर्तकी भी उसे देखकर मुसकरा रही थी।
तभी बारह बज गए और जोर से घंटा बजा। जिस डिब्बे के पीछे सैनिक छिपा था, वह अचानक से खुला और उसमें से एक जोकर उछलकर बाहर आ गया। सब डर गए और उसकी तरफ देखने लगे, सिवाए उस सैनिक और नर्तकी के।
“टीन के सैनिक! इस नर्तकी की तरफ मत देखो।” जोकर जोर से चिल्लाया, परंतु सैनिक पर कोई असर नहीं हुआ।
“ठीक है, तुमने मेरा अपमान किया, कल तुम्हें दंड दूंगा।” जोकर ने धमकी दी और अपने डिब्बे में जा बैठा।
सवेरा हुआ। बच्चे ने सारे खिलौनों से खेलना शुरू किया। उसे विशेष रूप से एक टांग वाले सिपाही पर ज्यादा प्यार आ रहा था। वह उसी से ज्यादा खेल रहा था। अचानक उसे मां ने पुकारा। जल्दी में वह सिपाही को खिड़की पर रखकर चला गया।
अब पता नहीं, यह जोकर की शैतानी थी या अचानक आई हवा की, झटके से खिड़की का पल्ला खुल गया। हवा के झोंके से बेचारा सैनिक तीसरी मंजिल से नीचे की झाड़ियों में जा गिरा। गिरते समय वह चौकस था। उसने अपने को मोड़ लिया, जिससे उसकी बंदूक पर लगा चाकू जमीन में गड़ गया। उसे चोट लगी, पर उसे ज्यादा दुख इस बात का था कि वह नर्तकी से बिछुड़ गया था।
बच्चे ने उसे खिड़की पर नहीं देखा, तो सब समझ गया। वह अपने मित्रों के साथ नीचे आया। बहुत ढूंढ़ा, पर वे असफल रहे। निराश होकर वे वापस चले गए। झाड़ियों में पड़ा सैनिक चुपचाप अपने मालिक को वापस जाता देखता रहा।
थोड़ी देर में बारिश शुरू हो गई और उसने जल्दी ही तूफान का रूप ले लिया। अंत में जब बारिश रुकी, तो कुछ बच्चे खेलते हुए उधर आ निकले। अचानक एक की नजर सिपाही पर पड़ी।
“अरे, यह देखो, टीन का सिपाही!” कहते हुए बच्चे ने उसे उठा लिया।
“चलो, इसे एक यात्रा पर भेजें।” एक अन्य बच्चे ने शरारत से कहा। सिपाही उसका मतलब नहीं समझ सका। बच्चों ने अखबार से एक बड़ी नाव बनाई। उसमें सिपाही को खड़ा किया और बहते नाले में छोड़ दिया। बहती नाव को देखकर बच्चे ताली बजाते हुए पीछे भागे। इतनी तेज बारिश हुई थी कि नाले में भयंकर लहरें सी उठ रही थीं। कागज की नाव हिचकोले खाती हुई आगे बढ़ रही थी, पर बहादुर सैनिक उस नाव में तनकर खड़ा रहा।
बहते-बहते नाव, नाली के बंद हिस्से में प्रवेश कर गई। वहां सुरंग जैसा अंधेरा था। सैनिक को लगा, जैसे वह अपने बंद डिब्बे में वापस आ गया हो। उसने सोचा, “पता नहीं, इस यात्रा का अंत कहां होगा। काश! इस रोमांचक यात्रा में मेरी मित्र नर्तकी भी मेरे साथ होती।”
तभी वहां एक मोटा-ताजा चूहा आया। नाले में नए मेहमान को देखकर वह चिल्लाया, “तुम अंदर कैसे आ गए? तुम्हें अंदर आने की अनुमति किसने दी?”
टीन के सैनिक ने कोई जवाब नहीं दिया। संभावित हमले से बचने के लिए उसने बंदूक को जोर से पकड़ लिया।
चूहे को यह अपमानजनक लगा। वह चिल्लाते हुए उसकी ओर भागा, “ठहरो! अभी मजा चखाता हूं।”
सैनिक फिर भी नहीं डरा, मजबूती से खड़ा रहा। आंख-मिचौली चलती रही। चूहे से बचते हुए वह नाले के आखिरी सिरे पर पहुंच गया। वहां उसे रोशनी दिखाई दी। उसने चैन की सांस ली ही थी कि भयंकर शोर सुनकर घबरा गया। वह एक बड़ी मुसीबत में फंसने जा रहा था। नाले का पानी तेजी से एक नदी में गिर रहा था।
कागज की नाव बहती हुई नदी में जा गिरी। सैनिक ने बड़ा प्रयास किया, पर अब वह तनकर खड़ा न रह सका। नाव भी गल गई थी। देखते-देखते नाव डूब गई। सैनिक की हालत आसमान से गिरे खजूर पर अटके वाली हो गई। वह पानी में डूबने लगा।
परंतु अभी उसकी परेशानियों का अंत नहीं हुआ था। अचानक एक बड़ी सी मछली आई और उसे निगल गई। सैनिक ने घबराकर सोचा, ‘हे भगवान, यह मैं कहां आ फंसा। यहां तो उस नाले से भी ज्यादा अंधेरा है।’
सैनिक की बंदूक की नोंक मछली को चुभी, तो वह जोर-जोर से उछलने लगी। सैनिक परेशान था। अचानक उसे झटका लगा। उसे महसूस हुआ जैसे मछली छटपटा रही हो।
वास्तव में मछली एक जाल में फंस गई थी। मछुआरों ने बड़ी सी मछली को देखा, तो खूब प्रसन्न हुए। उसे बाजार में ले जाकर अच्छे दामों में बेच दिया। एक नौकरानी ने उसे खरीदा और अपने मालिक के घर ले आई।
मछली के अंदर टीन का सिपाही था। रसोइए ने मछली को काटा, तो टीन का सिपाही निकल आया। रसोइए ने उसे उठाया और घर के अंदर जाकर एक बच्चे को दे दिया। बच्चे ने देखा, तो बहुत खुश हुआ। उस सैनिक की प्रशंसा करने लगा। आखिर बहुत कम लोग होते हैं, जो मछली की पेट में यात्रा करते हैं। बच्चे ने टीन के सिपाही को सीधा खड़ा किया।
सैनिक ने मिचमिचाते हुए आंखे खोलीं। उसने चारों ओर आश्चर्य से देखा। फिर सोचा, ‘यह दुनिया तो सचमुच गोल है।’
वह फिर से उसी कमरे में आ गया था, जहां से उसने यात्रा शुरू की थी। वही बच्चा था, वहीं खिलौने थे, वही टीन के उसके भाई, वही जोकर और...वही महल। महल के बाहर वही नर्तकी खड़ी थी। दोनों ने एक दूसरे को देखा। मुसकराए, पर कुछ नहीं बोले।
“अब मैं अपने बहादुर सैनिक को संभालकर रखूंगा।” बच्चे ने प्यार से उसे साफ करते हुए कहा।
रात हुई। सभी सो गए। परंतु खिलौने फिर जाग उठे। फिर से जोकर बाहर निकला, पर इस बार उसने कुछ नहीं कहा। सबके साथ खेलने लगा। नर्तकी भी खेल में शामिल हो गई।
सबको खुश देखकर वह सैनिक भी आखिर हंस ही पड़ा। वह अपनी लंबी यात्रा की सारी थकान भूल गया।
(प्रस्तुति : अनिल जायसवाल)
