कविता - नहीं सुनाई
नानी मुझे कहानी हुए चार दिन नहीं सुनाई नानी मुझे कहानी। चिड़ियों वाली आज सुना दो, कैसे खातीं खाना? दांत नहीं फिर भी चब जाता, कैसे उनसे खाना? कैसे घूंट चोंच में...
प्रभुदयाल श्रीवास्तव,नई दिल्ली Thu, 04 Jul 2019 11:51 PM
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नानी मुझे कहानी
हुए चार दिन नहीं सुनाई
नानी मुझे कहानी।
चिड़ियों वाली
आज सुना दो,
कैसे खातीं खाना?
दांत नहीं
फिर भी चब जाता,
कैसे उनसे खाना?
कैसे घूंट चोंच में भरतीं,
कैसे पीतीं पानी?
कैसे छुपा बीज धरती में,
पौधा बन जाता है?
दिन पर दिन
बढ़ते-बढ़ते वह,
नभ से मिल आता है।
बिना थके
दिन-रात खड़ा वह,
कैसे औघड़ दानी?
सुबह-सुबह से
सूरज कैसा ,
दुल्हन-सा शरमाता?
किंतु
दोपहर होते ही क्यों,
अंगारा बन जाता।
मुंह क्यों सीए
बैठी हो नानी,
कुछ तो बोलो वाणी।
नल की टोंटी में से पानी,
बाहर कैसे आता?
बनकर धार धरा पर गिरना,
कौन उसे सिखलाता?
घड़ों-मटकियों की
नल पर क्यों,
होती खींचातानी?