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अजब-गजब : आखिर क्यों जापान में नीली लाइट का सिग्नल होने पर चलते हैं लोग

क्या आप जानते हैं कि जापान की सड़कों पर ट्रैफिक सिग्नल में नीली लाइट का प्रयोग किया जाता है? पड़ गए न सोच में कि भला ट्रैफिक सिग्नल में नीली लाइट का क्या प्रयोग... तो चलिए जानते हैं आपके इस सवाल...

अजब-गजब : आखिर क्यों जापान में नीली लाइट का सिग्नल होने पर चलते हैं लोग
हिन्दुस्तान फीचर टीम ,नई दिल्ली Thu, 04 Jan 2018 12:39 PM
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क्या आप जानते हैं कि जापान की सड़कों पर ट्रैफिक सिग्नल में नीली लाइट का प्रयोग किया जाता है? पड़ गए न सोच में कि भला ट्रैफिक सिग्नल में नीली लाइट का क्या प्रयोग... तो चलिए जानते हैं आपके इस सवाल का जवाब।

यहां हैं भाषाई झोल
सैकड़ों वर्ष पहले जापानी भाषा में सिर्फ चार रंग हुआ करते थे- काला, सफेद, लाल और नीला। नीले रंग को जापानी भाषा में ‘एओ’ कहते हैं। तुम्हें जानकर हैरानी होगी कि उस समय जापान में हरे और नीले दोनों रंगों के लिए एक ही शब्द ‘एओ’ का इस्तेमाल होता था। लेकिन कुछ सालों बाद हरे रंग के लिए नया शब्द ‘मिडोरी’ विकसित किया गया। दोनों रंगों के लिए अलग-अलग नाम होने के बावजूद आज भी जापान में हरे रंग की चीजों के लिए ‘एओ’ शब्द का ही प्रयोग होता है, जबकि दिखने में ये चीजें ‘मिडोरी’ यानी कि हरी होती हैं। तो कहना गलत नहीं होगा कि जापान में ट्रैफिक लाइट के रंग कहीं न कहीं इन्हीं नीले और हरे के भाषाई मिश्रण का ही नतीजा है।
बात ट्रैफिक लाइट की
जापान में ट्रैफिक लाइट की शुरुआत वर्ष 1930 में हुई थी। उस समय ‘गो’ के लिए हरी लाइट का ही प्रयोग होता था, यानी दिखने में भी यह हरे रंग की ही थी। लेकिन आधिकारिक दस्तावेज या लिखित रूप में ट्रैफिक लाइट के हरे रंग को ‘मिडोरी’ न लिखकर ‘एओ’ लिखा गया, जिसका अर्थ होता है नीला। और शायद यही वजह थी कि जापान ने वर्ष 1968 में वियना कन्वेन्शन ऑन रोड साइन एंड सिग्नल की संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, जबकि भारत सहित लगभग 69 देश इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। वियना अंतर्राष्ट्रीय संधि का उद्देश्य ट्रैफिक सिग्नल को मानकीकृत करना है।
सरकार ने लिया बड़ा फैसला
किसी कारण जापान की सरकार ने वर्ष 1973 में फैसला लिया कि वह सरकारी दस्तावेजों में बदलाव नहीं करेगी, बल्कि लाइट के रंग में बदलाव करेगी और इसीलिए सरकार ने हरे रंग का ही नीला शेड (ब्लुइश ग्रीन) ट्रैफिक लाइट में प्रयोग करने का फैसला लिया। यानी कानूनी रूप से जापान में भी ‘गो’ के लिए ग्रीन लाइट ही है, लेकिन दिखने में यह नीली है। इसके अलावा आपको बता दें कि भारत की ही तरह जापान में भी ड्राइविंग लाइसेंस के लिए विजन टेस्ट देना पड़ता है, जिसके लिए उन्हें लाल, पीले और नीले रंग में फर्क पहचानना पड़ता है। 
ट्रैफिक लाइट का इतिहास
दुनिया में सबसे पहली ट्रैफिक लाइट वर्ष 1868 में लंदन के ब्रिटिश हाउस ऑफ पार्लियामेंट के सामने लगाई गयी थी। उस समय इस लाइट को रेलवे इंजीनियर जे.पी नाइट ने लगाया था। रात में दिखने के लिए इस ट्रैफिक लाइट में गैस का प्रयोग किया जाता था। बता दें कि उस समय इसमें सिर्फ लाल और हरे रंग का ही प्रयोग होता था।                                                                       
 

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