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कोई नहीं है बड़ा

नयन आज बहुत खुश था। होता भी क्यों ना? पूरे 2 महीने बाद आज वह अपने दादा के साथ चिड़ियाघर आया था। कोरोना की महामारी के बाद आज ही चिड़ियाघर को आम आदमियों के लिए खोला गया था। नयन ने दादाजी से कहा, तो वह...

कोई नहीं है बड़ा
अनिल जायसवाल,नई दिल्लीSun, 31 May 2020 01:59 PM
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नयन आज बहुत खुश था। होता भी क्यों ना? पूरे 2 महीने बाद आज वह अपने दादा के साथ चिड़ियाघर आया था। कोरोना की महामारी के बाद आज ही चिड़ियाघर को आम आदमियों के लिए खोला गया था। नयन ने दादाजी से कहा, तो वह उसे लेकर चिड़ियाघर पहुंच गए।
 लोग अभी डरे हुए थे, इसलिए वहां लोगों का नामोनिशान नहीं था। ऐसे में नयन को देखकर चिड़ियाघर के जानवर भी बहुत खुश थे। वहां नयन ने देखा एक पिंजरा खाली था। उसने  दादा जी से पूछा तो वह बोले," बेटे  पिंजरा आने वाले समय के लिए खाली रखा गया है। वह दिन दूर नहीं जब इंसान को भी पिंजरे में रखा जाएगा, लेकिन उसको देखेगा कौन? यह सोचने वाली बात है क्योंकि इंसान अपने किए की सजा पाकर खत्म होने की तरफ जा रहा है।"
 नयन की समझ में बात नहीं आई, तो दादाजी ने समझाया, " बेटे हम इंसानों ने इस दुनिया में अपने लिए सुख इकट्ठा करने के चक्कर में बाकी जीव जंतुओं को बहुत दुख दिया है। शायद इसी कारण कोरोना जैसी महामारी फैलती है।" 
चिड़ियाघर घूमकर नयन घर लौटा, तो उसके दिमाग में वही खाली पिंजरा और चिड़ियाघर के जंगली जानवर घूम रहे थे।
 रात हुई तो नयन सपने में भी जंगली जानवरों के बीच था परंतु इस बार चिड़ियाघर में  नहीं, जंगल में। जंगल में वह अकेला घूम रहा था कि तभी एक हाथी उसकी ओर लपका। हाथी के डर से नयन भागने लगा, तो अचानक एक बड़े से गड्ढे में गिर पड़ा। उसकी चीख निकल गई। हाथी वहां तक पहुंचा। रोते हुए नयन को देखकर वह बोला, "बेटे, आज तुम्हें पता चल रहा होगा कि जब हमें पकड़ने के लिए तुम इंसान ऐसे गड्ढे खोदकर हमें उसमें गिरा देते हो, तो हमें कितनी तकलीफ होती होगी। पर तुम तो बच्चे हो, तुमसे मैं क्या बदला लूं। लो, मेरी सूँड पकड़ो, मैं तुम्हें बाहर निकाल देता हूं।"
 डरते-डरते, नयन ने हाथी की सूंड पकड़ ली। हाथी ने धीरे से उसे गड्ढे से बाहर निकाल दिया। जाते-जाते इतना ही बोला, " कभी किसी को इतना मत सताओ कि वह तुम्हारा दुश्मन बन बैठे।"
नयन की समझ में कुछ बात आई, कुछ नहीं आई। वह थोड़ा आगे बढ़ा तो एक तेंदुआ उसके पीछे पड़ गया। नयन को लगा कि वह आज जान से जाएगा। वह भागने लगा, तो सामने उसे एक पिंजरा पड़ा दिखाई दिया। जान बचाने के लिए नयन पिंजरे में घुस गया और  दरवाजा बंद कर लिया।
 देखते देखते आसपास बहुत सारे जंगली जानवर और पक्षी इकट्ठे हो गए। पिंजरे में  आदमी को देखकर सब बहुत खुश हो गए। एक चिड़िया बोली, "आज तो तुम्हें आटे दाल का भाव पता चल रहा होगा। सोचो, जब मैं पिंजरे में बंद रहती हूं और तुम सब बच्चे बाहर से मुझे देखते हो, तो कैसा लगता होगा ?
तभी एक बंदर आया। वह खो-खो कर नयन को डराने लगा। फिर बोला, "तुम्हें  तो मुझे आदमी की तरह  कपड़े पहने देखना अच्छा लगता है। अब अपने कपड़े लाओ। मैं इन्हें पहनकर नाचूंगा और सब जानवरों को दिखाऊंगा"
नयन ने डर के मारे अपने कपड़े उतारकर बंदर को दे दिए। सबके सामने अधनंगा खड़ा होकर नयन की आंखों में आंसू आ गए। वह हाथ जोड़कर बोला,"आज मुझे यहां से जाने दो। अब मैं तुम लोगों को कभी नहीं सताऊंगा। मैं समझ गया हूं कि स्वतंत्रता सबको प्रिय है और सब के साथ आदर से पेश आना चाहिए।"
 तभी साही ने कहा, "तुम इंसान इतनी जल्दी नहीं सुधर सकते। तुम्हें सुधारने के लिए तो पांच-दस साल में एक बार कोई झटका लगना चाहिए जैसे अभी कोरोना का झटका लगा है।"
सारे जानवर उसकी तरफ देखने लगे तो उसने तोते की तरफ इशारा कर दिया। तोते ने कहा, "मैं पहले इसके जैसे एक बच्चे के घर में कैद था। कुछ दिनों पहले इनके शहर में एक बीमारी फैली थी जिसे सब कोरोना-कोरोना कह रहे थे। उसके डर से सारे इंसान अपने घर में कैद हो गए थे और मजबूरी में हम जानवरों को उन्होंने छोड़ दिया। मुझे तो लगता है हम सब जानवरों और पक्षियों को भगवान से प्रार्थना करना चाहिए कि इन इंसानों को इस तरह के झटके देते रहें, ताकि इनके अंदर इंसानियत किसी रूप में जाग जाए।
अब तक चुप एक  एक सांप बोला, "रहने दो, ये अपने को बहुत बड़ा समझते हैं। यह कभी नहीं सुधरेंगे। यह तो हम जानवरों से खुद को बहुत अच्छा समझते हैं। एक-आध को छोड़कर इनके अधिकतर मुहावरे भी हमें बुरा ही बताते हैं। अब देखो, यह खुद गलती करते हैं, खुद को धोखा देते हैं और कह देते हैं आस्तीन का सांप।"
"हां-हां, तुम बिल्कुल ठीक चाहते हो। मैं सारा दिन काम करता हूं फिर भी मुझे इज्जत देने के बदले यह कहते हैं समय आने पर गधे को भी बाप बना लो।"
 "छोड़ो-छोड़ो। ऐसी बातें करते रहेंगे तो रात हो जाएगी और यह बच्चा यही भूखा-प्यासा रह जाएगा। इसे इसके घर छोड़ आते हैं।" एक जानवर ने सुझाव दिया। 
नयन के कपड़े  उसे देते हुए बंदर ने कहा," मैं शहर का रास्ता जानता हूं। मैं इसे शहर के बाहर तक छोड़ आऊंगा।"
 तभी हाथी आया और उसने कहा , "घबराओ मत, मैं तुम दोनों को अपनी पीठ पर बैठाकर बाहर तक छोड़ आता हूँ। हो सकता है कि हमारा प्यार देखकर इसके मन में भी पशु-पक्षियों के लिए प्यार जागे और यह मनुष्यों को समझा सके कि हम पशु पक्षी गुलाम नहीं है। उन्हें हमारे साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए।"
 नयन अपने कपड़े पहनकर हाथी पर बैठा और सभी जंगली जानवरों से विदा लेकर घर की तरफ चल पड़ा।
 सुबह जब नयन की नींद खुली, तो सपने को याद कर हंस पड़ा। उसने मन ही मन वादा किया, "अब मैं सबको समझाऊँगा कि पशु-पक्षियों को तंग ना करके उनके साथ प्यार से पेश आना चाहिए।

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