फोटो गैलरी

Hindi News नंदनबड़े-बड़े कमाल दिखाती अंतरिक्ष की फुटबॉल

बड़े-बड़े कमाल दिखाती अंतरिक्ष की फुटबॉल

अंतरिक्ष के बगीचे में तरह-तरह के गुलाब, लाल-पीले गेंदा के फूल खिले थे। एक गमले में छोटे पीले संतरे, तो दूसरे में एक सेब और तीसरे में एक नीबू लटका था। बीच में हरी-हरी घास ही घास थी। शाम के समय कभी...

बड़े-बड़े कमाल दिखाती अंतरिक्ष की फुटबॉल
क्षमा शर्मा ,नई दिल्ली Thu, 10 Jan 2019 03:48 PM
ऐप पर पढ़ें

अंतरिक्ष के बगीचे में तरह-तरह के गुलाब, लाल-पीले गेंदा के फूल खिले थे। एक गमले में छोटे पीले संतरे, तो दूसरे में एक सेब और तीसरे में एक नीबू लटका था। बीच में हरी-हरी घास ही घास थी।

शाम के समय कभी पापा, कभी बुआ, कभी मम्मी के साथ वह टेनिस, बैडमिंटन या फुटबॉल खेलता था। सबके साथ वह खूब मस्ती करता। टीवी पर फुटबॉल खिलाड़ियों को देख, कुछ-कुछ वैसे ही करतब करने की कोशिश करता। उसके बाद दिन के वक्त दादाजी के साथ शतरंज खेलता। खेलते वक्त दादाजी उससे कहते, ‘देखो, अगर तुम यह चाल चलोगे, तो मैं तुम्हारे घोड़े को मार दूंगा।’ दादाजी उसे हर हाल में जिता देना चाहते थे। 

सब हंसते। जब अंतरिक्ष उन्हें उनके ही बताए खेल से हरा देता, तो वह झूठ-मूठ रोने की एक्टिंग करते हुए कहते, ‘अरे, यह लड़का तो बहुत तेज हो गया है। ये तो हर बार मुझे हरा देता है। अब तो यह बहुत बड़ा शतरंज खिलाड़ी बनेगा।’ 

‘नहीं, मैं रोनाल्डो बनूंगा और ऐसे गोल मारूंगा।’ कहकर वह अपनी फुटबॉल की तरफ दौड़ता और जोर से उसमें किक जमाता। फुटबॉल कभी ऊपर छत पर गिरती, कभी पाइन के लंबे पेड़ों में उलझ जाती। एक रात जब आसमान में पूरा चांद उगा था और अंतरिक्ष ने खेल-खेल में फुटबॉल उछाली, तो वह कहीं जाकर अटक गई। उसने स्टूल पर चढ़कर देखने की कोशिश की, मगर कहीं हो तो मिले।

‘कहां गई फुटबॉल?’ उसने मम्मी से पूछा। मम्मी बोलीं, ‘कहां गई होगी। बाहर चली गई होगी। अब सवेरे जाकर उठाना।’

बुआ ने कहा, ‘क्या पता वह जो चील आसमान में उड़ रही थी, वही उसे अपनी चोंच में दबाकर उड़ गई हो।’

दादाजी कहने लगे, ‘अरे, चील नहीं, वह जो तीन खरगोश आते हैं न, हो सकता है, उनमें से ही कोई उसे मुंह में दबाकर भाग गया हो। अपने बच्चों और दोस्तों के साथ खेल रहा हो।’

पापा बोले, ‘मुझे तो लगता है इसकी फुटबॉल स्पेसशिप बनकर चांद पर चली गई है।’

‘स्पेसशिप।’ अंतरिक्ष मुस्कराया। फिर सोचता हुआ बोला, ‘अगर मैं उस पर बैठा होता, तो मैं भी चांद पर चला जाता।’ 

‘और क्या।’ पापा हंसे। 

‘ठीक है, मैं अपनी दूसरी फुटबॉल लाता हूं। वह भी स्पेसशिप बन जाएगी। मैं दादाजी के साथ उस पर बैठकर चांद पर जाऊंगा।’  

‘फिर वहां क्या करोगे?’ 

‘शतरंज खेलूंगा। दादाजी से बैठकर मैथ्स पढ़ूंगा। होमवर्क भी कर लूंगा। सुना है कि चांद पर आइसक्रीम के बहुत सारे पहाड़ हैं। मैं वहां खूब आइसक्रीम भी खाऊंगा। आपके लिए भी ले आऊंगा।’ 

‘और जब नींद आएगी तो।’ दादीजी ने पूछा।

‘नींद आएगी, तो सो जाऊंगा।’ 

‘मगर कैसे सोओगे। तुम्हें तो तब तक नींद ही नहीं आती, जब तक अपने बिस्तर पर न सोओ। और मम्मी तुम्हें कोई कहानी न सुनाएं।’ दादीजी बोलीं। ‘वहां मेरे दादाजी होंगे न। वह कहानी सुना देंगे।’

‘मगर तुम्हारा बिस्तर, तुम्हारी डॉली मछली कहां से आएगी। जिसका तकिया न बने, तो तुम सोते ही नहीं।’ कहते हुए मम्मी मुस्कराईं। बेचारा एक अकेला अंतरिक्ष और इतने सारे सवाल-जवाब।

‘तो मैं अपने कमरे और डॉली को साथ ले जाऊंगा। और मम्मी, पापा, दादी, मेरी बुआ सब साथ चलेंगे। पूरी छुट्टियां हम वहीं रहेंगे।’  

‘जितना बड़ा तू, उससे छोटी तेरी फुटबॉल। उसमें बैठकर कौन-कौन जाएगा?’ दादाजी कहने लगे।

‘क्यों, क्या सब नहीं जा सकते?’  

‘जा सकते हैं, मगर उसके लिए तो असली वाला स्पेसशिप लाना पड़ेगा। फुटबॉल से तो काम नहीं चलेगा बेटा।’ दादाजी ने समझाने की कोशिश की। ‘कहां मिलेगा स्पेसशिप। पापा दिलवा देंगे मुझे। मैं उसे चलाना भी सीख लूंगा।’

‘इस बारे में तो रोनाल्डो से पूछना पड़ेगा। क्या वह भी हमारे साथ चलेगा?’ मम्मी खिलखिलाईं।

‘हां पापा, नंबर दो उसका। मैं पूछूंगा।’ 

‘ठीक है, ठीक है। ढूंढ़ेंगे।’  

तभी बगीचे में खड़-खड़ सुनाई दी। देखा कि एक खरगोश गमले में लगी गोभी को खाने के लिए चढ़ा था और उसने दूसरा गमला गिरा दिया था। गमला टूट गया था। सारी मिट्टी बिखर गई थी।

‘दादाजी खरगोश।’ अंतरिक्ष चिल्लाया।

दादाजी बाहर आए। और जोर-जोर से खरगोश को डांटते हुए पूछने लगे, ‘क्यों भई, अंतरिक्ष की फुटबॉल कहां छिपाकर आए हो। जल्दी वापस लाओ। तुम्हें मालूम नहीं, उसे अपनी फुटबॉल से स्पेसशिप बनाना है और चांद पर जाना है।’ कहते हुए दादाजी खरगोश की तरफ बढ़े, तो वह भागकर दूसरे कोने में चला गया। दादाजी ताली बजाते उधर पहुंचे, तो वह गमले के पीछे छिप गया और मौका पाकर भाग गया।

दादाजी बोले, ‘देखो, तुम्हारी फुटबॉल लेने गया है। अभी दे जाएगा।’ 

‘लेकिन वह तो चांद पर चली गई।’ 

‘क्या पता न गई हो। इसके पास हो। नहीं लाया तो हो सकता है, जो तुम कह रहे हो वही ठीक हो।’

‘अंतरिक्ष आकर दूध पिओ। सोने का समय हो गया है। सवेरे टेनिस खेलने जाना है।’ मम्मी कह रही थीं।

पापा उसके लिए दूध ले आए। अपने कमरे की तरफ बढ़ते हुए वह रह-रहकर चांद को देख रहा था। उसे लग रहा था कि गोल चांद ही तो कहीं उसकी फुटबॉल नहीं। 
वह सोते वक्त बार-बार मम्मी से यही पूछ रहा था, ‘अगर फुटबॉल चांद बन गई है, तो वह पीली कैसे हो गई। वह तो लाल थी। और इतनी चमक क्यों रही है?’

उसके सोने के बाद दादाजी बाहर गए, तो पड़ोस की आंटी पेड़ों के बीच से झांकते हुए बोलीं, ‘अरे, यह अंतरिक्ष की फुटबॉल हमारे ड्रम में आकर गिर गई थी। अभी पानी निकालने लगे, तो दिखाई दी। पापा ने उसे अंतरिक्ष की कुर्सी पर रख दिया। दादीजी बोलीं, ‘सवेरे उठेगा, तो पूछेगा कहां से आई।’ 

‘कह देंगे कि चांद आकर दे गया। कह गया है कि एक रात वह अंतरिक्ष को खुद आकर ले जाएगा।’ बुआ ने धीरे से कहा। 

रात बहुत हो गई थी। अंतरिक्ष भी मीठे-मीठे सपनों में खोया था। वह हाथ-पांव फेंक रहा था जैसे कि फुटबॉल के पीछे दौड़ रहा हो।

अल्ट्रा हाइटेक मछलियां

सौ रुपए का नोट

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें