किसे देख कर इस बीमार चिम्पैंजी के चेहरे पर आ गई मु्स्कान, देखें VIDEO में
नीदरलैंड के आन्र्हेम स्थित रॉयल बर्जर जू में 59 साल की ‘मामा’ नाम की चिम्पैंजी काफी समय से बिमार चल रही थी। यहां तक कि उसने खाना-पीना भी बंद कर दिया था। जू कर्मचारियों के बार-बार खिलाने...
नीदरलैंड के आन्र्हेम स्थित रॉयल बर्जर जू में 59 साल की ‘मामा’ नाम की चिम्पैंजी काफी समय से बिमार चल रही थी। यहां तक कि उसने खाना-पीना भी बंद कर दिया था। जू कर्मचारियों के बार-बार खिलाने पर भी वह खाना नहीं खाती थी। लेकिन एक दिन अचानक बीमार चिम्पैंजी से मिलने उसके पुराने दोस्त प्रोफेसर जैन वैन हूफ जू पहुंचते हैं। पहले तो चिम्पैंजी की बूढ़ी आंखे अपने दोस्त को पहचान नहीं पाती लेकिन जैसे ही वह प्रोफेसर हूफ को पहचानने लगती है, उसके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ जाती है। इतना ही नहीं, वह प्रोफेसर की गर्दन को अपनी ओर झुकाती है और उन्हें गले भी लगाती है। हालांकि यह उन दोनों दोस्तों की आखिरी मुलाकात थी। क्योंकि इस मुलाकात के लगभग एक सप्ताह बाद ही मामा चिम्पैंजी की मौत हो गई थी।
सालों पुरानी थी दोस्ती
मामा चिम्पैंजी और प्रोफेसर हूफ एक दूसरे को तब से जानते हैं, जब 1972 में पहली बार मामा चिम्पैंजी को रॉयल बर्जर जू की चिम्प्स कॉलोनी में लाया गया था। उस समय ‘मामा’ चिम्प्स कॉलोनी के पहले चिम्पैंजी समूह का हिस्सा बनी थी। ऐसा पहली बार था जब जू में ही चिम्पैंजियों के लिए अलग से कॉलोनी बनाई गई थी और लगभग एक साल के अंदर ही कॉलोनी के सह-संस्थापक प्रोफेस हूफ और मामा चिम्पैंजी में गहरी दोस्ती हो गई थी।
मामा थी एक दबंग नेता
वैसे तो मामा चिम्पैंजी का जन्म 1957 में जंगल में हुआ था। लेकिन उसके प्रभावशाली व्यवहार के कारण कॉलोनी में उनकी पहचान ‘ग्रैंड लैडी’ के नाम से मशहूर थी। मामा चिम्पैंजी के रहते उसने किसी नर चिम्पैंजी को कॉलोनी में राज नहीं करने दिया। इसके अलावा वह कॉलोनी में हुए झगड़ो व विवादों को भी बखूबी सुलझाती थी। मामा, अपनी मौत के समय कॉलोनी की सबसे बुजुर्ग चिम्पैंजी थी।
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video courtesy : Sukhjeet Kalaikunda