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'शैतान कहीं और व्यस्त था, इसलिए...', टोनी ब्लेयर को मिली गाजा की जिम्मेदारी; बहुत कुख्यात नाम

संक्षेप: इराक युद्ध के लिए कुख्यात टोनी ब्लेयर को ट्रंप के शांति प्लान में गाजा की अंतरिम प्रशासन की जिम्मेदारी मिली है। उनके विवादास्पद इतिहास से फिलिस्तीनी और अरब जगत में गुस्सा, लेकिन समर्थक इसे शांति का मौका मानते हैं।

Wed, 1 Oct 2025 10:27 AMAmit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, गाजा
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'शैतान कहीं और व्यस्त था, इसलिए...', टोनी ब्लेयर को मिली गाजा की जिम्मेदारी; बहुत कुख्यात नाम

कल्पना कीजिए, एक ऐसा शख्स जिसे इराक युद्ध का 'जनक' कहा जाता है, जिसे अरब दुनिया में 'युद्ध अपराधी' कहा जाता है और जिसके नाम पर ब्रिटेन में आज भी विरोध प्रदर्शन होते हैं- अब वही शख्स एक बार फिर मिडिल-ईस्ट की तकदीर तय कर सकता है। हम बात कर रहे हैं ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की योजना के मुताबिक, टोनी ब्लेयर गाजा की भविष्य की कमान संभालने को तैयार हैं।

ट्रंप के हालिया शांति प्लान में ब्लेयर को 'पीस बोर्ड' का प्रमुख सदस्य बनाया गया है, जो गाजा का अंतरिम प्रशासन चला सकता है। ट्रंप की गाजा योजना में टोनी ब्लेयर के शामिल होने पर कहा जा रहा है कि यह आदमी इसलिए वहां था क्योंकि शैतान कहीं और व्यस्त था। ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि क्या ये गाजा के लिए आखिरी उम्मीद है, या एक और विवादास्पद अध्याय? टोनी ब्लेयर कौन हैं, उनकी कुख्याति क्यों है और उनको गाजा की ये जिम्मेदारी क्यों मिल रही है? आइए विस्तार से समझते हैं।

टोनी ब्लेयर: लेबर पार्टी का 'चमकदार चेहरा' जो युद्ध की छाया में डूब गया

टोनी ब्लेयर का जन्म 1953 में स्कॉटलैंड के एक छोटे शहर एडिनबर्ग में हुआ था। वो ब्रिटेन के लेबर पार्टी के सबसे युवा लीडर बने। वे 1997 में मात्र 43 साल की उम्र में प्रधानमंत्री बने। पहले तीन कार्यकालों में उन्होंने ब्रिटेन को आधुनिक बनाया: न्यू लेबर पॉलिसी से अर्थव्यवस्था चमकी, स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार हुए, और स्कॉटलैंड-उत्तरी आयरलैंड जैसे क्षेत्रों को ज्यादा अधिकार मिले। लोग उन्हें 'पीपुल्स प्रिंस' कहते थे – स्मार्ट सूट, चमकदार स्माइल, और टोनी-ब्लेयर-स्टाइल स्पीच से वो दुनिया को लुभाते थे।

लेकिन 2003 का इराक युद्ध सब कुछ बदल गया। अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश जूनियर के साथ मिलकर ब्लेयर ने इराक पर हमला किया। दावा था कि सद्दाम हुसैन के पास 'मास डिस्ट्रक्शन वेपन्स' यानी विनाश के हथियार हैं, जिससे दुनिया को खतरा है। लाखों ब्रिटिश सैनिक भेजे गए, लेकिन बाद में पता चला- ये खुफिया जानकारी झूठी थी। लाखों इराकी मारे गए, देश तबाह हो गया और ISIS जैसे संगठन पैदा हुए। ब्रिटेन में विरोध भयानक था: लाखों लोग सड़कों पर उतरे, लेबर पार्टी टूट गई, और ब्लेयर की लोकप्रियता मिट्टी में मिल गई। 2007 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

आज भी, 2025 में, इराक युद्ध की छाया ब्लेयर पर है। उस वक्त टोनी के समर्थकों तक का कहना था कि "इराक युद्ध गलत था, शांति के रास्ते आजमाए बिना हमला किया गया।" अरब दुनिया में उन्हें 'ब्लेयर द बुचर' कहा जाता है। फिलिस्तीनियों के लिए तो वो 'युद्ध अपराधी' हैं, क्योंकि इराक के बाद उन्होंने मिडिल ईस्ट में कई विवादास्पद भूमिकाएं निभाईं। लेकिन ब्लेयर रुके नहीं। इस्तीफे के बाद उन्होंने टोनी ब्लेयर इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल चेंज नाम का थिंक टैंक शुरू किया, जो गल्फ देशों (सऊदी अरब, UAE) को सलाह देता है। वे JPMorgan बैंक के सलाहकार बने, और करोड़ों कमा लिए। लेकिन मिडिल ईस्ट उनका जुनून रहा।

गाजा का संकट: दो साल का खूनी खेल और शांति की तलाश

अब बात गाजा की करते हैं। गाजा पट्टी- ये फिलिस्तीन का एक छोटा सा इलाका है, जहां 20 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं। 2007 से हमास (एक इस्लामिक ग्रुप) का कंट्रोल है, और इजरायल की नाकाबंदी से ये 'ओपन एयर प्रिजन' बन गया। 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इजरायल पर हमला किया- 1,200 इजरायली मारे गए, 250 बंधक बनाए गए। जवाब में इजरायली सेना ने गाजा पर बमबारी शुरू की। दो साल बाद, 60,000 से ज्यादा फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं, लाखों बेघर, और भुखमरी फैली हुई है। संयुक्त राष्ट्र कहता है- "ये मानवीय संकट की हद है।"

ट्रंप प्रशासन ने अब एक 'पीस प्लान' यानी शांति योजना लॉन्च की है। इसमें तुरंत सीजफायर, सभी बंधकों की रिहाई (72 घंटों में), इजरायली सेना की धीमी वापसी, और गाजा का पुनर्निर्माण शामिल है। लेकिन असली सवाल: हमास हटेगा तो गाजा कौन चलाएगा? फिलिस्तीनी अथॉरिटी (PA) वेस्ट बैंक में कमजोर है, और अरब देश हमास को पसंद नहीं करते। यहां आता है टोनी ब्लेयर का प्लान।

ट्रंप का 'बोल्ड प्लान': ब्लेयर को क्यों चुना गया?

ट्रंप के 20-सूत्रीय प्लान में एक नया 'बोर्ड ऑफ पीस' बनेगा, जिसकी चेयरमैनशिप ट्रंप करेंगे। इसमें टोनी ब्लेयर प्रमुख सदस्य होंगे। ब्लेयर गाजा इंटरनेशनल ट्रांजिशनल अथॉरिटी (GITA) का हेड बन सकते हैं – ये UN मंडेट वाली बॉडी होगी, जो 5 साल तक गाजा चलाएगी। शुरुआत में PA को शामिल नहीं किया जाएगा। GITA के तहत:

5 कमिश्नर: ह्यूमैनिटेरियन अफेयर्स, रीकंस्ट्रक्शन, लीगल अफेयर्स, सिक्योरिटी, और PA कोऑर्डिनेशन के लिए।

टेक्नोक्रेटिक कमिटी: फिलिस्तीनी और इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स मिलकर हेल्थ, एजुकेशन, फाइनेंस, इंफ्रास्ट्रक्चर संभालेंगे।

सिक्योरिटी फोर्स: अरब-मुस्लिम देशों से पिसकीपर्स, जो नई फिलिस्तीनी पुलिस ट्रेन करेंगे।

ज्यूडिशियल बोर्ड: अरब जज की अगुवाई में कोर्ट्स चलेंगे।

प्रॉपर्टी यूनिट: जमीन के अधिकार बचाने के लिए।

ये प्लान वाइट हाउस का समर्थन वाला है, और गल्फ लीडर्स (सऊदी, UAE) को पसंद है क्योंकि ब्लेयर उनके साथ काम कर चुके हैं। ब्लेयर का इंस्टीट्यूट गाजा के 'डे आफ्टर' प्लान पर महीनों से काम कर रहा है। उनका रिसॉर्ट्स, मैन्युफैक्चरिंग जोन बनाकर 'मिडिल ईस्ट रिवेरा' बनाने का आइडिया है। ट्रंप ने कहा, "ये दो साल के दर्द का अंत है।" ब्लेयर ने ट्वीट किया, "बेस्ट चांस टू एंड वॉर एंड मिसरी।"

कुख्यात नाम क्यों? विवादों की लंबी लाइन

ट्रंप द्वारा गाजा में पुनर्निर्माण प्रयासों का नेतृत्व करने के लिए ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर का नाम सुझाए जाने के बाद अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मच गई है। जैसे ही यह जानकारी सार्वजनिक हुई, ब्लेयर के आलोचकों ने उन्हें 2003 के इराक युद्ध के कारण अयोग्य ठहराया। अल जजीरा ने लिखा कि अरब दुनिया और ब्रिटेन में कई लोग ब्लेयर को “युद्ध अपराधी” मानते हैं। ब्रिटेन के पूर्व सांसद और इराक युद्ध विरोधी जॉर्ज गैलोवे ने व्यंग्य करते हुए कहा, “जब यह साफ हो गया कि शैतान कहीं और व्यस्त है, तो गाजा पर शासन करने के लिए टोनी ब्लेयर ही सबसे उपयुक्त विकल्प बन गए।”

लेकिन सवाल ये है- शैतान व्यस्त क्यों? क्योंकि ब्लेयर का नाम सुनते ही फिलिस्तीनी सड़कों पर उतर आते हैं। PA चीफ महमूद अब्बास के करीबी मुस्तफा बरघौती कहते हैं, "ब्रिटिश गुलामी फिर से? ब्लेयर का नाम सुनो तो इराक याद आता है।" 2007-2015 तक ब्लेयर Quartet (UN, US, EU, Russia) के मिडिल ईस्ट एनवॉय रहे, लेकिन फिलिस्तीनियों को लगता है उन्होंने इजरायल का साथ दिया। उनका इंस्टीट्यूट एक विवादास्पद प्रपोजल पर काम कर चुका- 5 लाख फिलिस्तीनियों को गाजा से हटाकर 'रिवेरा' बनाना, जो इंटरनेशनल लॉ के खिलाफ है। ब्लेयर ने कहा, “मैं कभी डिस्प्लेसमेंट सपोर्ट नहीं करूंगा।”

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ब्रिटेन में भी आलोचना: लेबर पार्टी के कई नेता कहते हैं, "इराक के बाद गाजा? ये यकीन तोड़ेगा।" एक कार्टून में ब्लेयर को 'शैतान का भाई' दिखाया गया। लेकिन समर्थक कहते हैं - ब्लेयर का अनुभव है: इराक रीकंस्ट्रक्शन में काम किया, गल्फ से रिश्ते मजबूत किए। ट्रंप-नेटान्याहू को लगता है, वो हमास को हटा सकते हैं बिना PA को ताकत दिए।

क्या होगा गाजा का भविष्य? उम्मीद या धोखा?

ट्रंप प्लान महत्वाकांक्षी है- तुरंत सीजफायर, 250 फिलिस्तीनी प्रिजनर्स रिहा, इजरायली वापसी। लेकिन आलोचक कहते हैं, ये PA को साइडलाइन करता है, इंटरनेशनल कंट्रोल थोपता है। UN का प्लान PA को जल्दी कंट्रोल देना चाहता है, लेकिन ट्रंप का प्लान 5 साल का इंतजार करा रहा है। इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम देश पिसकीपर्स भेजने को तैयार हैं। ब्लेयर के लिए ये रिडेम्पशन का मौका हो सकता है- इराक की गलती सुधारने का। लेकिन फिलिस्तीनियों के लिए ये 'शैतान का नया अवतार' है। एक फिलिस्तीनी एक्टिविस्ट ने कहा, "अगर ब्लेयर आया, तो गाजा फिर कब्रिस्तान बनेगा।" अब ये योजना अमल में आएगी या नहीं, वक्त बताएगा। लेकिन एक बात साफ है– टोनी ब्लेयर का नाम गाजा को नई बहस दे गया है। शैतान व्यस्त था, लेकिन क्या ब्लेयर 'सेवियर' साबित होंगे? या एक और विवाद? गाजा की सड़कों पर शांति की प्रतीक्षा जारी है।

Amit Kumar

लेखक के बारे में

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अमित कुमार एक अनुभवी पत्रकार हैं, जिन्हें मीडिया इंडस्ट्री में नौ वर्षों से अधिक का अनुभव है। वर्तमान में वह लाइव हिन्दुस्तान में डिप्टी चीफ कंटेंट प्रोड्यूसर के रूप में कार्यरत हैं। हिन्दुस्तान डिजिटल के साथ जुड़ने से पहले अमित ने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम किया है। अमित ने अपने करियर की शुरुआत अमर उजाला (डिजिटल) से की। इसके अलावा उन्होंने वन इंडिया, इंडिया टीवी और जी न्यूज जैसे मीडिया हाउस में काम किया है, जहां उन्होंने न्यूज रिपोर्टिंग व कंटेंट क्रिएशन में अपनी स्किल्स को निखारा। अमित ने भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से हिंदी जर्नलिज्म में पीजी डिप्लोमा और गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी, हिसार से मास कम्युनिकेशन में मास्टर (MA) किया है। अपने पूरे करियर के दौरान, अमित ने डिजिटल मीडिया में विभिन्न बीट्स पर काम किया है। अमित की एक्सपर्टीज पॉलिटिक्स, इंटरनेशनल, स्पोर्ट्स जर्नलिज्म, इंटरनेट रिपोर्टिंग और मल्टीमीडिया स्टोरीटेलिंग सहित विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई है। अमित नई मीडिया तकनीकों और पत्रकारिता पर उनके प्रभाव को लेकर काफी जुनूनी हैं। और पढ़ें

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