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शिवाजी पार्क में दशहरा रैली की अनुमति से गदगद शिवसेना, हाई कोर्ट के फैसले पर दी यह प्रतिक्रिया

बंबई उच्च न्यायालय ने उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना को मध्य मुंबई में स्थित शिवाजी पार्क में पांच अक्टूबर को वार्षिक दशहरा रैली के आयोजन की अनुमति शुक्रवार को दे दी। बीएमसी ने अनुमति से इनकार कर दी थी।

शिवाजी पार्क में दशहरा रैली की अनुमति से गदगद शिवसेना, हाई कोर्ट के फैसले पर दी यह प्रतिक्रिया
Ashutosh Rayएजेंसी,मुंबईFri, 23 Sep 2022 06:44 PM

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महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना ने मध्य मुंबई में स्थित शिवाजी पार्क में वार्षिक दशहरा रैली निकालने की अनुमति देने के बंबई हाई कोर्ट के फैसले का शुक्रवार को स्वागत करते हुए कहा कि न्यायपालिका में उसका भरोसा और मजबूत हुआ है। फैसले का स्वागत करते हुए पार्टी की प्रवक्ता मनीषा कायान्डे ने कहा कि इस साल की रैली भव्य होगी। उन्होंने दावा किया कि बृहन्नमुंबई महानगरपालिका (BMC) पर निश्चित ही कुछ दबाव रहा होगा, जिसके कारण उनसे अनुमति नहीं दी।

शिवसेना के सचिव विनायक राउत ने कहा, 'न्यायपालिका में हमारा भरोसा कायम रहा है। पिछले कई वर्षों से 'शिव तीर्थ' (शिवसेना शिवाजी पार्क को यही कहती है) में दशहरा रैली हो रही है, लेकिन इस साल शिंदे गुट और भाजपा ने मिलकर बाधा उत्पन्न करने का प्रयास किया। शुक्र है कि अदालत ने इसे खारिज कर दिया।' महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाले शिवसेना के गुट ने भी पांच अक्टूबर को शिवाजी पार्क में दशहरा रैली करने की अनुमति मांगी थी।

बीएमसी ने दोनों गुटों को अनुमति देने से इनकार कर दिया था

हालांकि, बीएमसी ने दोनों गुटों को अनुमति देने से इंकार कर दिया और कहा कि किसी एक पक्ष को अनुमति देने से कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है। जस्टिस आर. डी. धनुका और न्यायमूर्ति कमल खाता की खंडपीठ ने ठाकरे नीत शिवसेना गुट और उसके सचिव अनिल देसाई की, बृहन्नमुंबई महानगरपालिका के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को अनुमति दे दी। 

कोर्ट ने बीएमसी के आदेश को कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग बताया

अदालत ने कहा कि बीएमसी का आदेश 'स्पष्ट रूप से कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।' पीठ ने ठाकरे नीत शिवसेना को दो से छह अक्टूबर तक शिवाजी पार्क का उपयोग करने की अनुमति दी है, लेकिन साथ ही कानून-व्यवस्था बनाए रखने को कहा है। हाई कोर्ट ने कहा कि पूरे कार्यक्रम की वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य रहेगी और अगर याचिकाकर्ता कानून और व्यवस्था की स्थिति के लिए जिम्मेदार पाए जाते हैं, तो भविष्य में उनकी अनुमति प्रभावित होगी।

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