जब शरद पवार ने एक तीर से किए चार शिकार, इस्तीफे के दांव से दो दिन में ही क्या-क्या बदला
साल 1999 में गठित एनसीपी की राजनीति की धुरी शरद पवार रहे हैं। हालांकि, हाल के कुछ सालों में भतीजे अजित पवार के कद बढ़ने के साथ ही पार्टी में उनकी पकड़ कमजोर होने की अटकलें लगने लगी थीं।
साल का मध्य आते-आते महाराष्ट्र की राजनीति का अहम किरदार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी NCP उठा पटक तेज होती नजर आई। फिर मई की दस्तक के साथ ही सुप्रीमो शरद पवार ने इस्तीफा का ऐलान कर सियासी हवा का रुख मोड़ दिया। हालांकि, दो-तीन दिनों में ही उन्होंने फैसला वापस ले लिया और कमान संभालने को राजी हो गए थे। सवाल उठने लगे कि आखिर इससे पवार को क्या मिला?
पार्टी पर मिली मजबूत पकड़
साल 1999 में गठित एनसीपी की राजनीति की धुरी शरद पवार रहे हैं। हालांकि, हाल के कुछ सालों में भतीजे अजित पवार के कद बढ़ने के साथ ही पार्टी में उनकी पकड़ कमजोर होने की अटकलें लगने लगी थीं। 2023 से पहले इसका उदाहरण 2019 में भी देखने को मिला, जब अजित भाजपा के साथ सरकार बनाने निकल पड़े थे। हालांकि, कहा जाता है सीनियर पवार के दखल ने ऐसा ज्यादा दिन चलने नहीं दिया।
अब कथित तौर पर अजित के बागी सुर उस समय शांत हुए, जब शरद पवार ने इस्तीफे का ऐलान किया। एक ओर जहां पार्टी के कुछ नेता चुनाव जीतना चाहते थे। वहीं, एक धड़ा सीनियर पवार के बगैर NCP का भविष्य नहीं देख पा रहा था।
बागियों को किया शांत
पवार का अध्यक्ष पद छोड़ने का फैसला एनसीपी में फूट की अटकलों के बीच आया था। पार्टी के कई नेता भाजपा के साथ जाने का दबाव बना रहे थे और शायद पवार इसके लिए तैयार नहीं थे। अब कहा जाता है कि पवार की टाइमिंग गजब की रही। दरअसल, उस दौरान कर्नाटक चुनाव के नतीजे भी घोषित हुए और शिवसेना में बगावत को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था। इसके अलावा पवार के ऐलान के वक्त भाजपा के साथ जाने का दबाव बना रहे नेताओं ने भी रवैया बदला और इस्तीफा वापस लेने की मांग कर दी।
अजित पर पड़ गए भारी
जब पवार ने इस्तीफे का ऐलान किया, तो बड़ी संख्या में नेता इसे पलटने की मांग करने लगे। हालांकि, अजित ने चाचा के फैसला का सम्मान करने के लिए कहा, लेकिन उनका दांव कमजोर नजर आया। इस दौरान पवार महाराष्ट्र एनसीपी प्रमुख जयंत पाटिल को भी तवज्जो देते नजर आए। कहा जाता है कि पाटिल और अजित के बीच सबकुछ ठीक नहीं रहता है।
विपक्ष में बढ़ा लिया कद
केवल एनसीपी या महाराष्ट्र में ही नहीं, बल्कि शरद पवार के फैसले ने देशभर की सियासत में खलबली मचा दी थी। वहीं, एनसीपी में हुई उन्हें मनाने की कोशिश और इस्तीफा वापसी ने फिर उनकी छवि मजबूत विपक्षी नेता के तौर पर पेश कर दी। राहुल गांधी, एमके स्टालिन और नीतीश कुमार जैसे नेता भी उनसे इस्तीफा वापस लेने की अपील करते नजर आए।
अब खास बात है कि देशभर में विपक्षी एकता की कवायद जोर पकड़ रही है और उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र ही सबसे ज्यादा 48 सांसद लोकसभा में भेजता है। ऐसे में विपक्ष को पवार जैसे बड़े नेता की जरूरत थी। इधर, महाविकास अघाड़ी को भी चलने के लिए उनकी जरूरत थी।