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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बनेंगे एमएलसी? राज्यपाल के पाले में गेंद, हाईकोर्ट का दखल से इनकार

कोरोना वायरस संकट के बीच महाराष्ट्र बड़ा सवाल यह भी है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे कब और किस तरह विधान परिषद के सदस्य बनेंगे। हाई कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप करने से इनकार किए जाने के बाद अब सारी निगाहें...

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बनेंगे एमएलसी? राज्यपाल के पाले में गेंद, हाईकोर्ट का दखल से इनकार
भाषा,मुंबईTue, 21 Apr 2020 07:25 PM
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कोरोना वायरस संकट के बीच महाराष्ट्र बड़ा सवाल यह भी है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे कब और किस तरह विधान परिषद के सदस्य बनेंगे। हाई कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप करने से इनकार किए जाने के बाद अब सारी निगाहें महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर टिकी हैं, जिन्हें उद्धव को विधान परिषद का सदस्य नामित करने के बारे में फैसला लेना है। 

बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को बीजेपी के एक कार्यकर्ता की उस याचिका पर राहत देने से इनकार कर दिया जिसमें ठाकरे को राज्यपाल द्वारा नामित किए जाने के राज्य मंत्रिमंडल के फैसले को चुनौती दी गई थी। भाजपा कार्यकर्ता की याचिका को खारिज करते कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल सिफारिश की कानूनी वैधता पर विचार कर सकते हैं। 

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28 मई तक सदस्य बनना जरूरी
ठाकरे ने 28 नवंबर 2019 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और अभी वह विधानमंडल के किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। संविधान के तहत उन्हें 28 मई 2020 तक किसी सदन का सदस्य बनना जरूरी है। कोरोना वायरस महामारी के कारण हालांकि सभी चुनाव स्थगित हैं ऐसे में राज्य मंत्रिमंडल ने 9 अप्रैल को उन्हें राज्यपाल कोटे से विधान परिषद में नामित किए जाने की सिफारिश की थी। 

किन्हें किया जा सकता है नामित?
संविधान के अनुच्छेद 171 के तहत राज्यपाल विशेष ज्ञान या साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन या समाज सेवा में व्यवहारिक अनुभव रखने वाले को सदन के सदस्य के तौर पर नामित कर सकते हैं। राज्यपाल के कोटे की दो सीटें अभी खाली हैं जो विधानसभा चुनाव से पूर्व एनसीपी विधायकों के इस्तीफा देकर बीजेपी में जाने से खाली हुई थीं। 

अब राज्य में सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा एनसीपी ने इन पदों के लिए साल के शुरू में दो नामों की अनुशंसा की थी, लेकिन राज्यपाल ने उन्हें यह कहकर खारिज कर दिया था कि इन दोनों सीटों का कार्यकाल जून में खत्म हो रहा है इसलिए तत्काल नियुक्ति की कोई जरूरत नहीं है। 

क्या यूपी के चंद्रभान की तरह बने रहेंगे सीएम?
संवैधानिक विशेषज्ञों ने सुप्रीम कोर्ट के 1961 के एक फैसले का उल्लेख किया है जो चंद्रभान गुप्ता के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर नियुक्ति और राज्यपाल की ओर से उन्हें विधान परिषद में नामित किए जाने से संबंधित था। न्यायालय ने उनकी नियुक्ति को बहाल रखा था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि गुप्ता ने कई सालों तक सक्रिय रूप से राजनीति की है जो समाज सेवा के अनुभव के बराबर है इसलिए वह विधानपरिषद में नामित किए जाने योग्य हैं। 

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
सरकार के पास उपलब्ध विकल्पों पर चर्चा करते हुए विधानसभा के पूर्व प्रधान सचिव अनंत कालसे ने कहा कि सरकार को निर्वाचन आयोग से संपर्क करना चाहिए और 27 मई से पहले विधान परिषद की 9 सीटों के द्विवार्षिक चुनाव की मांग करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि या फिर वह राज्यपाल से अनुरोध कर सकती है कि वह 9 अप्रैल को मंत्रिमंडल द्वारा की गई अनुशंसा पर जल्द से जल्द फैसला करें। 

कालसे ने कहा कि सरकार हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट भी जा सकती है और उससे राज्यपाल को निर्देश देने की मांग कर सकती है। उन्होंने कहा कि अदालत ने पूर्व के फैसलों में कहा है कि मंत्रिमंडल की ओर से की गई अनुशंसाएं राज्यपाल के लिए बाध्यकारी हैं। 

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