शरद पवार की इच्छा साथ लड़ते रहें चुनाव पर सवाल है कि MVA में अब कितनी जान बाकी?
Maharashtra Politics: शिवसेना की विचारधारा हिंदुत्व है, लेकिन अन्य दो दलों की मत सेक्युलर रहा है। टकराव का एक उदाहरण औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव करने का फैसला भी है।

शिवसेना में विधायकों की बगावत से झटका खाई महाविकास अघाड़ी के भविष्य पर सवाल बना हुआ है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने आगे भी साथ चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है, लेकिन क्या मौजूदा हालात में ऐसा संभव है? एक ओर जहां सरकार गंवा कर विधायकों के लिहाज से शिवसेना ने नेतृत्व खो दिया है। वहीं, कांग्रेस के भी कई बार गठबंधन से नाराजगी की खबरें आती रही हैं। पूरी स्थिति को विस्तार से समझते हैं...
शरद पवार ने क्या कहा था?
राकंपा प्रमुख ने रविवार को औरंगाबाद में पत्रकारों के साथ बातचीत में कहा था कि इसे लेकर अभी कोई योजना नहीं है। उन्होंने कहा था, 'यह मेरी व्यक्तिगत इच्छा है कि MVA भविष्य के सभी चुनाव साथ मिलकर लड़े। इसे लेकर तीन पार्टियों की तरफ से चर्चा की जानी बाकी है। फिलहाल, इस दिशा में कोई फैसला नहीं लिया गया है।' हालांकि, किसी अन्य पार्टी ने ताजा बयान पर प्रतिक्रिया नहीं दी है।
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विचारधारा की उलझन में फंसती शिवसेना
MVA में संख्याबल के मामले में सबसे आगे शिवसेना को हालिया बगावत से बड़ा नुकसान हुआ है। ऐसे में पार्टी के गठबंधन में नेतृत्व पर भी सवाल है। इसके अलावा सांसदों की तरफ से बगावत की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा रहा है। ऐसे में यह देखा जाना जरूरी हो जाएगा कि विचारधारा के मामले में अलग समझी जाने वाली शिवसेना की गठबंधन में नई जगह क्या होगी। साथ ही सीट शेयरिंग का फॉर्मूला भी कैसे तय होगा।
दरअसल, शिवसेना की विचारधारा हिंदुत्व है, लेकिन अन्य दो दलों की मत सेक्युलर रहा है। टकराव का एक उदाहरण औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव करने का फैसला भी है। खबरें आई थी कि कई कांग्रेस कार्यकर्ता आखिर में लिए गए फैसले से खुश नहीं हैं।
क्या पवार का कद भी घटा है?
महाराष्ट्र के सबसे युवा मुख्यमंत्री का रिकॉर्ड रखने वाले पवार फिलहाल राज्य की राजनीति के सबसे वरिष्ठ हैं। MVA को बनाने में भी उनकी अहम भूमिका मानी जाती है। लेकिन एकनाथ शिंदे समेत अन्य विधायकों की बगावत से MVA को उबारने में पवार फैक्टर भी बेअसर रहा है। हालांकि, उन्होंने कई बैठकें की और हालात सुधरने का भरोसा जताया, लेकिन ढाई साल में ही सरकार गिर गई।
इसके अलावा शिंदे के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के दौरान भी पवार गठबंधन जारी रखने को लेकर जवाब देने से बचते रहे। दूसरी ओर शिवसेना और कांग्रेस ने MVA को बरकरार रखने की बात कही थी।
कांग्रेस में अंदरूनी खींचतान के साथ MVA से नाराजगी भी
गठबंधन में संख्याबल के लिहाज से भी कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी है। इसी बीच पार्टी में आंतरिक कलह की भी खबरें आती रही हैं। ताजा उदाहरण राज्यसभा चुनाव में देखने को मिला जब महाराष्ट्र कांग्रेस के महासचिव आशीष देशमुख ने इमरान प्रतापगढ़ी की उम्मीदवारी के चलते इस्तीफा दे दिया था। इसके अलावा पार्टी MVA के काम करने के तरीके से भी नाराज थी।
बालासाहब थोराट और अशोक चव्हाण जैसे वरिष्ठ नेता गठबंधन में पार्टी के घटते कद पर असंतोष जता चुके हैं। उन्होंने खुलकर दावा किया था कि ठाकरे कांग्रेस से बातचीत के बगैर खुद ही फैसले लेते हैं। इधर, प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख नाना पटोले भी इस बात पर जोर देते रहे हैं कि पार्टी 2024 विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ेगी।
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BMC चुनाव बनेंगे अहम मोड़
अहम माने जाने वाले बृह्नमुंबई महानगरपालिका चुनाव भी नजदीक हैं। मानसून के बाद बीएमसी चुनाव की संभावनाएं जताई जा रही हैं। ऐसे में कांग्रेस और राकंपा दोनों ही दल खुलकर चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं। खास बात है कि निकाय पर लंबे समय से शिवसेना का राज है।
NCP और कांग्रेस की बनती नहीं!
मई में ही पटोले ने राकंपा पर धोखा देने के आरोप लगाए थे। खास बात है कि उस दौरान एनसीपी ने गोंदिया जिला परिषद चुनाव में भाजपा से हाथ मिलाया था। पटोले ने कहा था, 'गठबंधन में होने के बावजूद एनसीपी ने मालेगांव, भिवंडी और कई अन्य जगहों पर कांग्रेस की जमीन हथियाई। कल एनसीपी ने अध्यक्ष चुनने के लिए गोंदिया जुला परिषद में भाजपा से हाथ मिला लिया। उन्होंने कांग्रेस की पीठ में छुरा मारा है।'
इसके अलावा फ्लोर टेस्ट में भी अशोक चव्हाण समेत कांग्रेस के 11 विधायक गैर हाजिर रहे थे। बाद में उन्होंने अनुपस्थिति का कारण ट्रैफिक को बताया था। उस दौरान शिंदे सरकार के पक्ष में 164 वोट डाले गए थे। जबकि, विपक्ष के खाते में 99 वोट रहे थे। खास बात है कि इससे पहले स्पीकर के चुनाव में MVA को 107 सदस्यों का समर्थन मिला था।
राकंपा वही है, कांग्रेस देश भर में घट रही है
बीते विधानसभा में राकंपा ने कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन किया था और 54 सीटों पर जीत हासिल की थी। अब शिवसेना भी 15 विधायकों पर आ गई है। ऐसे में संभावना कम हैं कि राकंपा बराबर सीट बांटने पर तैयार हो जाए। साथ ही दोनों अन्य पार्टियां भी गठबंधन में पवार की पार्टी के नीचे काम करने से बचने की कोशिश कर सकती है।
दूसरी ओर, कांग्रेस खुद ही देशभर में मुश्किल में नजर आ रही है। हाल ही में पार्टी के गोवा में भी बड़ी संख्या में विधायक संपर्क से बाहर हो गए थे। सत्ता के हिसाब से देखें, तो पार्टी केवल छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सरकार में है। इसके अलावा झारखंड में भी गठबंधन सरकार में वह शामिल है। हालांकि, खबरें आती रही हैं कि कांग्रेस नेता झारखंड मुक्ति मोर्चा से खुश नहीं हैं।
आंकड़े समझें
साल 2019 में महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटोमें से भाजपा ने 25, शिवसेना ने 23, कांग्रेस ने 26 और राकंपा ने 22 पर चुनाव लड़ था। नतीजों के अनुसार, भाजपा को 23 सीटों पर जीत मिली। जबकि, शिवसेना 18 सीटों पर विजयी रही। राकंपा के नाम 4 और कांग्रेस को एक सीट हासिल हुई। विधानसभा चुनाव में 288 सीटों के लिए हुए रण में भाजपा 105, शिवसेना 56, राकंपा 54 और कांग्रेस 44 पर थी।
