यह कैसा लोकतंत्र है, प्रोफेसर पर कार्रवाई की मांग कर रही पुलिस को कोर्ट ने सुनाया
मौके पर मौजूद निरीक्षक ने प्रधानाचार्य से प्राध्यापक के खिलाफ विभागीय जांच करने का अनुरोध किया। याचिका में कहा गया कि एक पुलिस अधिकारी के अनुरोध पर ऐसी जांच शुरू करना अवैध है।
बंबई उच्च न्यायालय ने दिवंगत कार्यकर्ता गोविंद पानसरे की पुस्तक ‘शिवाजी कोण होता’ का उल्लेख करने वाली एक प्रोफेसर के खिलाफ कार्रवाई का अनुरोध करने पर सातारा पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने पुलिस से सवाल किया कि यह कैसा लोकतंत्र है और क्या प्रोफेसर के खिलाफ कोई अपराध बनता है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज के. चव्हाण की खंडपीठ डॉ. मृणालिनी अहेर की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में सातारा जिले के एक थाने के उपनिरीक्षक द्वारा अगस्त 2023 में भेजे गए पत्र को चुनौती दी गई है। पुलिस ने शुक्रवार को अदालत को बताया कि पत्र बिना शर्त वापस लिया जाएगा जिसके बाद याचिका का निपटारा कर दिया गया।
प्राध्यापक ने याचिका में दावा किया कि पिछले साल अगस्त क्रांति दिवस (नौ अगस्त) पर एक प्रोफेसर ने प्रसिद्ध हस्तियों पर व्याख्यान दिया था। व्याख्यान के दौरान छात्रों का एक वर्ग उत्तेजित हो गया क्योंकि उन्हें लगा कि उक्त हस्तियों के बारे में कुछ अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया गया है। याचिका के अनुसार, व्याख्यान के दौरान मौजूद रहीं प्राध्यापक ने दावा किया कि उन्होंने स्थिति को शांत करने का प्रयास किया और ऐसा करने के लिए पानसरे की पुस्तक का हवाला दिया। प्राध्यापक ने दावा किया कि कुछ ‘अति उत्साही’ श्रोताओं ने आरोप लगाया कि वह साथी प्रोफेसर के व्यवहार की निंदा करने के बजाय उसका समर्थन कर रही हैं।
मौके पर मौजूद निरीक्षक ने प्रधानाचार्य से प्राध्यापक के खिलाफ विभागीय जांच करने का अनुरोध किया। याचिका में कहा गया कि एक पुलिस अधिकारी के अनुरोध पर ऐसी जांच शुरू करना अवैध है। उच्च न्यायालय की पीठ ने पुलिस निरीक्षक से प्रश्न किया कि क्या उन्होंने पुस्तक पढ़ी है और पूछा कि क्या याचिकाकर्ता के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के बावजूद कोई अपराध बनता है। महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 16 फरवरी 2015 को पानसरे को गोली मार दी गई थी और 20 फरवरी को उनकी मौत हो गई थी।