
महाराष्ट्र सदन घोटाले में आरोपियों को मिली HC से राहत, छगन भुजबल का भी आया था नाम
संक्षेप: ईडी की ओर से अधिवक्ता श्रीयश ललित ने दलील दी कि उन्हें पहले ही जुलाई 2021 में ट्रायल कोर्ट द्वारा एंटी-करप्शन ब्यूरो के मामले से बरी कर दिया गया है। ऐसे में PMLA की कार्यवाही जारी रखने का कोई आधार नहीं बचता।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) के महाराष्ट्र सदन घोटाले मामले में दो मुख्य आरोपियों के खिलाफ लगे आरोप हटा दिए हैं। यह वही मामला है जिसमें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के मंत्री छगन भुजबल तथा उनके परिवार का भी नाम सामने आया था। यह मामला वर्ष 2005 का है, जब राज्य की कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने दिल्ली में नया महाराष्ट्र सदन भवन बनाने का ठेका के.एस. चमंकर एंटरप्राइजेज को दिया था। यह कंपनी प्रमुख आरोपियों कृष्णा और प्रसन्ना चमंकर की है। आरोप था कि यह ठेका बिना किसी निविदा निकाले दिया गया और उस समय लोक निर्माण विभाग (PWD) का जिम्मा छगन भुजबल के पास था।

बीजेपी-शिवसेना सरकार के सत्ता में आने के बाद यह मामला दर्ज हुआ। उस समय एनसीपी विपक्ष में थी। भुजबल और चमंकर बंधुओं को 2021 में इस मामले से बरी कर दिया गया था। हालांकि, चमंकर भाइयों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर 2016 में दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम (PMLA) के तहत दाखिल चार्जशीट को रद्द करने की मांग की थी।
ईडी की ओर से अधिवक्ता श्रीयश ललित ने दलील दी कि उन्हें पहले ही जुलाई 2021 में ट्रायल कोर्ट द्वारा एंटी-करप्शन ब्यूरो के मामले से बरी कर दिया गया है। ऐसे में PMLA की कार्यवाही जारी रखने का कोई आधार नहीं बचता। वहीं, ईडी की वकील मनीषा जगताप ने इसका विरोध किया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के अनुसार भले ही आधारभूत अपराध रद्द हो जाए, PMLA की कार्यवाही स्वतंत्र रूप से जारी रह सकती है।
लेकिन न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और न्यायमूर्ति राजेश एस. पाटिल की खंडपीठ ने कहा, "यदि किसी व्यक्ति को निर्धारित अपराध से अंतिम रूप से बरी कर दिया गया है या सक्षम न्यायालय द्वारा आपराधिक मामला रद्द कर दिया गया है तो उसके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का कोई मामला नहीं बन सकता।"
अदालत ने यह भी कहा कि जुलाई 2021 के बरी किए जाने के आदेश को चार साल से अधिक समय तक चुनौती नहीं दी गई और वह अब अंतिम रूप से लागू हो चुका है।





