
दशहरा रैली रद्द करें, इस पर खर्च होने वाला धन बाढ़ पीड़ितों को भेजिए; भाजपा की उद्धव ठाकरे से मांग
संक्षेप: भाजपा नेता केशव ने एक्स पर पोस्ट में कहा, ‘मराठवाड़ा भयंकर बाढ़ से जूझ रहा है। लोग अपना सब कुछ खो चुके हैं। उद्धव ठाकरे पहले ही पांच जिलों में तीन घंटे का दौरा कर चुके हैं और प्रभावितों के दर्द व पीड़ा पर अपनी चिंता व्यक्त की है।’
महाराष्ट्र बीजेपी यूनिट के मुख्य प्रवक्ता केशव उपाध्याय ने शिवसेना यूबीटी से अपनी वार्षिक दशहरा रैली रद्द करने की मांग की है। उन्होंने पार्टी चीफ उद्धव ठाकरे से कहा कि इस पर होने वाला खर्च मराठवाड़ा में बाढ़ राहत के लिए इस्तेमाल करें। केशव ने आरोप लगाया कि जब ठाकरे राज्य के मुख्यमंत्री थे, तो वह काम करने में विफल रहे और घर पर ही बैठे रहे। उन्होंने कहा कि यह प्रायश्चित करने का समय है।

महाराष्ट्र के कई हिस्से भारी बारिश से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। इसके कारण आई बाढ़ से काफी नुकसान हुआ है। इनमें आमतौर पर सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित रहने वाला मराठा क्षेत्र भी शामिल है। दशहरा रैली आयोजित करना ठाकरे परिवार और शिवसेना के लिए एक पुरानी परंपरा रही है। इस साल भी वह 2 अक्टूबर को दशहरा के अवसर पर मुंबई के शिवाजी पार्क में रैली को संबोधित करने वाले हैं।
बाढ़ ग्रस्त इलाकों का दिया हवाला
भाजपा नेता केशव ने एक्स पर पोस्ट में कहा, 'मराठवाड़ा भयंकर बाढ़ से जूझ रहा है। लोग अपना सब कुछ खो चुके हैं। उद्धव ठाकरे पहले ही पांच जिलों में तीन घंटे का दौरा कर चुके हैं और प्रभावितों के दर्द व पीड़ा पर अपनी चिंता व्यक्त की है। अब कार्रवाई का समय है। उन्हें दशहरा रैली रद्द कर देनी चाहिए। वह राशि बाढ़ पीड़ितों पर खर्च करनी चाहिए। इससे उनकी सहानुभूति को अभिव्यक्ति मिलेगी।' उन्होंने आगे कहा कि यह प्रायश्चित करने का समय है। रैली रद्द करना और धनराशि को भेज देना, लोगों के प्रति उनकी सच्ची चिंता को दर्शाएगा।
रैली की जरूरत पर भाजपा ने उठाए सवाल
केशव ने ठाकरे की वार्षिक रैली में बोले जाने वाले विषयों की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि अतीत में शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के कार्यकाल में यह आयोजन अपनी वैचारिक दशा-दिशा के लिए जाना जाता था। उन्होंने कहा, 'अब यह रैली उसी पटकथा को दोहराने तक ही सीमित हो गई है, जिसमें दूसरों को गद्दार बताने और उनकी पार्टी को चुराने के आरोप लगाए जाते हैं। इस तरह की नाटकबाजी के लिए साधारण कार्यकर्ताओं पर लाखों रुपये का बोझ क्यों डाला जाना चाहिए, जबकि यही विलाप सामना में रोजाना किया जाता है।'





