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चक्रवर्ती राजगोपालाचारी: दक्षिण भारत में हिंदी की जड़ें जमाने वाले मनीषी

तमिलभाषी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी हिंदी को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए आजीवन संघर्षशील रहे। सबसे पहले गैर-हिंदीभाषी राज्यों में से एक तत्कालीन मद्रास प्रांत में हिंदी की शिक्षा अनिवार्य कराने का श्रेय...

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी: दक्षिण भारत में हिंदी की जड़ें जमाने वाले मनीषी
नई दिल्ली, लाइव हिन्दुस्तानThu, 13 Sep 2018 06:57 PM
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तमिलभाषी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी हिंदी को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए आजीवन संघर्षशील रहे। सबसे पहले गैर-हिंदीभाषी राज्यों में से एक तत्कालीन मद्रास प्रांत में हिंदी की शिक्षा अनिवार्य कराने का श्रेय उन्हें जाता है। उनका मानना था कि हिंदी ही एकमात्र भाषा है, जो देश को एक सूत्र में बांध सकती है। देश के एकमात्र भारतीय गवर्नर जनरल रहे  राजनेता, वकील, लेखक व दार्शनिक राजगोपालाचारी का जन्म 10 दिसंबर 1878 को तत्कालीन मद्रास प्रांत के सलेम जिले के थोरापल्ली गांव में हुआ था। पढ़ाई के बाद वे राजनीति में सक्रिय हुए और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए।

1937 में उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने कौंसिल का चुनाव जीता तो मद्रास प्रांत के मुख्यमंत्री बना दिए गए। तब उन्होंने मद्रास प्रांत में हिंदी को लाने का समर्थन किया तो उग्र विरोध हुआ और हिंसा में दो लोगों की मौत भी हुई। उस वक्त तो वह हिंदी को मुकाम नहीं दिला सके, लेकिन दक्षिण में इसके प्रचार-प्रसार के लिए प्रयास करते रहे। राजाजी के नाम से विख्यात रहे राजगोपालाचारी ने कई मौलिक कहानियां लिखीं। साथ ही, कुछ दिनों तक महात्मा गांधी के अखबार 'यंग इंडिया' का संपादन भी किया। 

1952-1954 तक पुन: मद्रास प्रांत के मुख्यमंत्री रहे और इस दौरान उन्होंने हिंदी को माध्यमिक स्तर की शिक्षा में अनिवार्य कराया। 'भारत रत्न' से सबसे पहले राजाजी को ही 1954 में नवाजा गया। 28 दिसंबर 1972 को अंतिम सांस लेने से पहले राजाजी ने दक्षिण भारत में हिंदी को लोकप्रिय बनाने की नींव रख दी थी। उन्होंने अलग-अलग भाषाओं में रामायण, महाभारत और गीता का अनुवाद भी अपने ढंग से किया।
-पंकज विशेष

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