मध्य प्रदेश में एक तरफ पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग से लेकर राजनीतिक दलों की तैयारियां जोरों से चल रही हैं लेकिन नगरीय निकायों में महापौर और अध्यक्षों के चुनाव कैसे होंगे, इसको लेकर अभी तक असमंजस है। सरकार सीधे चुनाव कराने या पार्षदों द्वारा महापौर-अध्यक्ष को चुने जाने के विकल्पों में से किसी को एक का चयन नहीं कर पाई है। सरकार के प्रवक्ता मंत्री नरोत्तम मिश्रा के बयान को माने तो अभी तक इस संबंध में कोई भी अध्यादेश राजभवन नहीं भेजा गया है जिससे नगरीय निकाय चुनाव का आरक्षण अधर में अटकने की संभावना है।
सुप्रीम कोर्ट के दो सप्ताह में चुनाव कराने के आदेश के बावजूद मध्य प्रदेश में अभी तक सरकार यह फैसला नहीं कर पाई है कि नगरीय निकाय चुनाव में महापौर और अध्यक्षों का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से हो या अप्रत्यक्ष प्रणाली से इनका चुनाव कराया जाए। महापौर और अध्यक्षों का चुनाव पिछले दो दशक से सीधे चुनाव के माध्यम से हो रहा है। दिग्विजय सिंह सरकार के समय यह चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से पार्षदों द्वारा कराया जाता है। मगर शिवराज सरकार अभी तक इसको लेकर कोई फैसला नहीं कर पाई है। गृह मंत्री और सरकार के प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा का कहना है कि सरकार ने नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत, ग्राम पंचायत, जनपद और जिला पंचायत का कोई भी ऐसा अध्यादेश अभी तक राजभवन को नहीं भेजा गया है।
क्या है प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रणाली व्यवस्था
नगरीय निकाय में महापौर और अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होता है तो उसमें फिर महापौर और अध्यक्ष के लिए वार्ड पार्षदों की तरह चुनाव होंगे। तब महापौर व वार्ड पार्षद के अलग-अलग मतपत्र या ईवीएम का इस्तेमाल किया जाएगा। अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर व अध्यक्ष के चुनाव में निर्वाचित पार्षदों द्वारा उनका चयन किया जाता है। ऐसी स्थिति में महापौर या अध्यक्ष का वार्ड पार्षद होना जरूरी होता है। जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जिला पंचायत सदस्यों में से किसी एक को अन्य जिला पंचायत सदस्यों द्वारा बहुमत के आधार पर किया जाता है। इसी तरह जनपद अध्यक्ष का चुनाव भी होता है।