सुनिये सरकार! उज्जैन रेप पीड़िता बच्ची की गुहार; पीड़ा ऐसी कि छलनी हो जाए दिल
उज्जैन रेप पीड़िता के साथ वारदात को हुए कई दिन बीत चुके हैं। इस रिपोर्ट में एक नजर उसके परिवार के हालात पर... साथ ही उस गांव के लोगों की बदहाल जिंदगी पर जो खराब हालत में जीवन जीने को मजबूर हैं।

मध्य प्रदेश के सतना जिले में अपने घर से लगभग 300 मीटर दूर, शाम ढलते ही एक कमजोर बच्ची दो प्लास्टिक के कंटेनर लेकर एक हैंडपंप की ओर धीरे-धीरे बढ़ रही है। साथ में उसकी चाची भी मौजूद है जो लड़की को जल्दी करने के लिए कहती है क्योंकि उन्हें अंधेरा होने से पहले खाना बनाने के लिए घर पानी लेकर लौटना होता है। यह कहानी है उस दुष्कर्म पीड़िता बच्ची के गांव की जहां आजादी के 70 वर्षों बाद भी दलित समुदाय के लोगों को अछूत माना जाता है। दुनिया की चमक-दमक से दूर इस गांव के दलित आज भी बुनियादी जरूरतों से मरहूम होकर बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
ऑटोरिक्शा चालक की हैवानियत का शिकार
बमुश्किल एक महीने पहले, ऑटोरिक्शा चालक की हैवानियत की शिकार 13 साल की बच्ची को खून से लथपथ और अर्ध-नग्न हालत में सड़कों पर मदद की गुहार लगाते हुए देखा गया था। ऑटोरिक्शा चालक ने बच्ची को मदद करने का भरोसा दिया था। इस पर भरोसा कर के बच्ची उसके साथ गई थी और दरिंदे की हैवानियत का शिकार हो गई थी। अपने दादा से डांट पड़ने के बाद बच्ची घर से भाग गई थी और उज्जैन पहुंची गई थी।
टांके अभी तक नहीं हटाए गए
उज्जैन के एक अस्पताल में इलाज के बाद बच्ची 12 अक्टूबर को घर लौट आई। उसके निजी अंगों पर लगे टांके अभी तक नहीं हटाए गए हैं। बच्ची की मदद के लिए बड़े-बड़े वादे किए गए थे। आज आलम यह है कि बच्ची एक त्रासदी भरा जीवन जी रही है। उज्जैन में लोगों ने बच्ची भटकती रही थी लेकिन किसी ने दया नहीं दिखाई। मौजूदा वक्त में भी घर पर उनके प्रति ज्यादा सहानुभूति नहीं है। खासकर ऊंची जातियों के बीच दलितों की स्थिति बेहद खराब है।
बिजली पानी तक नहीं, प्रशासन की आंखों पर पट्टी
इलाके में आज भी दलित भेदभाव का शिकार हैं। आलम यह कि दलितों को एक अलग हैंडपंप से पानी लाना पड़ता है। दलितों की बस्ती में बिजली नहीं है। लड़की के दादा ने कहा कि वे सतना में अछूत मानी जाने वाली अनुसूचित जाति दोहर समुदाय से हैं। यदि मैंने 24 सितंबर की सुबह बच्ची को नहीं डांटा होता तो वह घर नहीं छोड़ती। उन्होंने बदहाल सिस्टम पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब वह शाम को गांव से करीब दो किमी दूर जटवारा थाने में शिकायत दर्ज कराने पहुंचे तो पुलिसकर्मियों ने उनको खुद ही बच्ची को तलाश करने के लिए कहा।
पुलिस तेजी दिखाती तो बचा ली जाती मासूम
शिकायत के एक दिन बाद गुमशुदगी की एफआईआर दर्ज की गई। बच्ची के दादा ने कहा कि यदि पुलिस ने मेरी शिकायत पर कार्रवाई की होती तो लड़की को ट्रेन में ही बरामद किया जा सकता था। इससे वह दुष्कर्म की वारदात का शिकार होन से बच जाती। वहीं जटवारा थाना प्रभारी श्वेता मौर्य ने कहा कि रात में बच्ची के दादाजी थाने आए थे। एक पुलिसकर्मी को उनके घर भेजा गया था लेकिन घर पर कोई नहीं मिला। बाद में हमने त्वरित कार्रवाई की। बताया जाता है कि 24 सितंबर को, बोलने में अक्षम लड़की घर से 3 किमी दूर स्कूल जा रही थी।
मदद के नाम पर छला
24 सितंबर को उसके दादा ने उसे घर जाने के लिए कहा। बाद में सुबह करीब 10 बजे जब उसके दादा बकरियां चराने चले गए तो वह घर से निकल गई। वह जटवारा रेलवे स्टेशन पहुंची जहां से वह सतना और फिर उज्जैन के लिए ट्रेन में सवार हो गई। बच्ची उज्जैन में उतरी और रेलवे स्टेशन से बाहर आई तब एक ऑटो चालक ने उसे मदद की पेशकश की। वह बच्ची के मुंह पर हाथ रखकर उसे एक सुनसान जगह पर ले गया और उसके साथ दुष्कर्म की वारदात को अंजाम दिया।
खून लतफत वह भटकती रही
पीड़िता के दादा कहते हैं कि आरोपी ने बच्ची को महाकाल मंदिर के पास छोड़ दिया। 25 सितंबर की सुबह किसी ने बच्ची की मदद नहीं की, सड़क पर खून लतफत वह भटकती रही। पीड़िता का भाई जो दुखी लग रहा था उसने कहा- हम वर्षों से भेदभाव का सामना कर रहे हैं। ऊंची जातियों में मेरी बहन के लिए कोई सहानुभूति नहीं है क्योंकि हम दोहर (मवेशी चराने वाले) समुदाय से हैं। परिवार ने दावा किया कि सरकार से परिवार को एकमात्र मदद 600 रुपये प्रति माह सामाजिक न्याय पेंशन के तौर पर मिल रही है, क्योंकि पीड़िता मानसिक रूप से अस्वस्थ है।
कैसे सुरक्षित करें बच्ची का भविष्य?
दादा ने कहा- इस घटना के बाद सभी राजनीतिक दलों के नेता उनकी छोटी सी झोपड़ी में मदद का भरोसा देने पहुंचे। कुछ लोगों ने आर्थिक रूप से मदद की लेकिन मुझे नहीं पता कि बच्ची का भविष्य कैसे सुरक्षित किया जाए। गांव के अन्य लोगों ने सोचा कि चुनाव नजदीक होने के कारण इस घटना से इलाके का विकास होगा जबकि इसमें कोई सच्चाई नहीं है। दलित रजक समुदाय के एक व्यक्ति ने कहा कि ट्रांसफार्मर की खराबी के कारण पिछले तीन महीने से उनके दलित मोहल्ले में बिजली नहीं है। कोई भी सुनने वाला नहीं है।
गांव के लोग भेदभाव के शिकार
गांव के सरपंच राजपूत समुदाय से हैं। बस्ती के लोगों ने उन पर केवल उच्च जाति के राजपूत गांव की भलाई के लिए काम करने का आरोप लगाया। उच्च जाति के इलाकों में नियमित बिजली की आपूर्ति की जा रही है। उन्होंने शिकायत करते हुए कहा कि राजपूतों के पास गांव के उनके हिस्से में कुछ हैंडपंप हैं जबकि दलितों के लिए केवल एक हेंडपंप है। यह हेंडपंप दलितों के घर 300 मीटर दूर हैं। गांव में 1,900 मतदाता हैं जिनमें से लगभग आधे दलित हैं, लेकिन गांव के उनके हिस्से और ऊंची जाति के राजपूतों के हिस्से के बीच विकास के बड़े अंतर को साफ देखा जा सकता है।
दलितों के लिए कच्ची सड़क भी नहीं
गांव के पूर्व सरपंच बृजभान सेन ने कहा- उच्च जाति के लोगों के पास पक्की सड़क है जबकि दलित समुदाय के लोगों के लिए कच्ची सड़क भी नहीं है। भेदभाव यहां जीवन का हिस्सा है। बृजभान एक दशक पहले तब निर्वाचित हुए थे जब सरपंच की सीट दलितों के लिए आरक्षित थी। आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश में दलितों के खिलाफ अपराध राष्ट्रीय औसत से अधिक हैं। 2021 में देश में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध की 50,900 घटनाओं में से, 7,211 अकेले मध्य प्रदेश से दर्ज की गई थीं। इससे मध्य प्रदेश राजस्थान और उत्तर प्रदेश के बाद अनुसूचित जाति के खिलाफ सबसे अधिक अपराध दर वाला राज्य बन गया है।
पंचायत सचिव बोले- कोई भेदभाव नहीं
मध्य प्रदेश में 2021 में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध दर 63.6 फीसदी थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 25.3 फीसदी था। राज्य की आबादी में दलित 16 फीसदी हैं और 230 विधानसभा सीटों में से 35 फीसदी उनके लिए आरक्षित हैं। वहीं पंचायत सचिव संतोष नामदेव ने भेदभाव के आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि गांव में दलित समाज के लोग बिजली बिल का भुगतान नहीं करते हैं। यही नहीं गांव के किसी दलित ने उज्वला योजना के तहत रसोई गैस सिलेंडर के लिए आवेदन नहीं किया है। हर गांव की अपनी परंपरा है। कोई भेदभाव नहीं है। रेप पीड़िता का गांव कांग्रेस के गढ़ चित्रकूट विधानसभा में आता है।




