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शिवराज सरकार का जनजातीय प्रेम जारी, मध्य प्रदेश में अब पातालपानी का नाम टंट्या भील स्टेशन

मध्य प्रदेश में राज्य सरकार का जनजातीय प्रेम लगातार जारी है और बिरसा मुंडा जयंती पर हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति करने के फैसले के बाद अब पातालपानी का नाम टंट्या भील करने का ऐलान किया गया...

शिवराज सरकार का जनजातीय प्रेम जारी, मध्य प्रदेश में अब पातालपानी का नाम टंट्या भील स्टेशन
भोपाल, लाइव हिंदुस्तानSat, 27 Nov 2021 03:51 PM

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मध्य प्रदेश में राज्य सरकार का जनजातीय प्रेम लगातार जारी है और बिरसा मुंडा जयंती पर हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति करने के फैसले के बाद अब पातालपानी का नाम टंट्या भील करने का ऐलान किया गया है। बड़ौदा अहीर में गौरव यात्रा का शुभारंभ करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने  की और बताया कि इसका प्रस्ताव रेल मंत्रालय को भेजा गया है। सीएम ने इंदौर में एक चौराहे को टंट्या चौराहा तो आईएसबीटी का नाम भी उनके नाम पर करने की घोषणा की।

गौरव यात्रा के शुभारंभ कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा पहुंचे थे। जब उनका स्वागत किया जाने लगा तो उन्होंने मंच पर माइक संभालते हुए कहा कि आज नेताओं का स्वागत नहीं होगा बल्कि टंट्या मामा के वंशजों का होगा। इसके बाद अपने उदबोधन में मुख्यमंत्री चौहान ने कांग्रेस  पर निशाना साधा। 

कांग्रेस ने एक ही खानदान का नाम रोशन किया
मुख्यमंत्री ने कहा कि कांग्रेस ने हमेशा एक ही खानदान के नाम को रोशन किया। आदिवासी यूनिवर्सिटी बनाई भी तो उसका नाम जनजातीय वर्ग के महान नेता के नाम पर नहीं बल्कि इंदिरा गांधी का नाम दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने इतिहास में कभी बिरसा मुंडा, टंट्या मामा भील जैसे जनजातीय समाज के किसी भी व्यक्ति के बारे में नहीं पढ़ाया गया। इस ऐतिहासिक गलती को भाजपा सुधारेगी और परतंत्रता के समय जनजातीय समाज के जिन लोगों ने बलिदान दिया उसे भी पढ़ाया जाएगा। 

गौरव यात्रा में टंट्या भील का परिचय बताएंगे
मुख्यमंत्री ने कहा कि टंट्या मामा भील की गौरव यात्रा चार दिसंबर को पातालपानी पहुंचेगी। इस बीच यह गांव-गांव में जाएगी और वहां टंट्या मामा भील के बारे में ग्रामीणओं को बताएगी। चौहान ने कहा कि टंट्या भील ने परतंत्रता की बेड़ियों के खिलाफ आवाज उठाई थी और उन्हें षड़यंत्रपूर्वक राखी बांधकर एक मुंहबोली बहन ने अंग्रेजों को पकड़वाया था। उन्हें जबलपुर में फांसी दी गई।  उनके बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता। 

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